Tuesday, June 7, 2011
क्या कह डाला बाबाजी !
यह क्या कह डाला बाबाजी ,
'भ्रष्टाचारियों को हो आजीवन कारावास
या उन्हें चढ़ा दो फाँसी '!
आपने तो अपने भक्तों और
समर्थकों से खूब बजवा ली ताली ,
लेकिन यह भी तो सोचा होता
अगर सचमुच कहीं ऐसा हो गया तो
अपना इंडिया तो हो जायेगा इस
तथाकथित "क्रीम" से पूरी तरह खाली !
सत्ता में क्या वाकई ऐसे मंत्री भी होंगे
जिन्होंने इस बहती गंगा में
कभी भी ना धोये होंगे अपने हाथ ,
और शायद ही प्रशासन में कोई
ऐसा बचा होगा जिसने ना दिया होगा
कभी इन भ्रष्ट मंत्रियों का साथ !
पैसे और रसूख का फ़ायदा उठा
कॉरपोरेट वर्ल्ड के कई दिग्गज
भी तो स्विस बैंक्स के सामने
लाइन लगाये खड़े हैं ,
और कई छोटे बड़े नेता अभिनेता भी
उनका अनुसरण कर
साष्टांग दण्डवत की मुद्रा में
उसी राह में पड़े हैं !
अच्छा है बाबाजी
अगर सच में ऐसा हो गया तो
कुछ तो सारे के सारे ही सपरिवार
भाई बंधुओं और मित्रमंडली के साथ
जेल में पिकनिक मनायेंगे ,
और जो कुछ कम भाग्यशाली रह
फाँसी के फंदे पर चढ़ गये
वे नर्क की रसोई में
सारे नाते रिश्तेदारों के साथ बैठ कर
कोई नयी खिचड़ी पकायेंगे !
आखिर उन्होंने यहाँ भी तो यही
तय किया था कि जो भी बीन बटोर कर
हड़पेंगे मिल बाँट कर खायेंगे ,
अब नर्क के कारावास में
अपनी करतूतों की सज़ा भी वो
साथ-साथ ही पायेंगे !
साधना वैद
चित्र गूगल से साभार --
अक्षरश: सत्य कहा है .. बेहद सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteपाप का घड़ा अब फूटने को तैयार है बस थोड़ा सा धीरज और बनाये रखिये |
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सही लिखा है आपने |
वर्तमान परिपेक्ष्य पर करारा व्यंग्य ,,,सुंदर काव्य प्रस्तुति..।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteकुछ तो सारे के सारे ही सपरिवार
ReplyDeleteभाई बंधुओं और मित्रमंडली के साथ
जेल में पिकनिक मनायेंगे ,
और जो कुछ कम भाग्यशाली रह
फाँसी के फंदे पर चढ़ गये
वे नर्क की रसोई में
सारे नाते रिश्तेदारों के साथ बैठ कर
कोई नयी खिचड़ी पकायेंगे
बहुत बढ़िया....
bilkul sahi kaha aapne sach bayaan karati hui satic rachanaa.bahut achcha likha aapne.badhaai sweekaren.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks
बहुत ही सामयिक और करारा व्यंग्य...
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
साधना जी तब तो बाबा समेत कोई नही बचेगा\ भारत मे प्रलय के आसार दिख रहे हैं।
ReplyDeleteआदरणीय साधना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सार्थक लिखा है आपने |
....बहुत सुन्दर
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteगर हो गया ऐसा तो दिखेंगे वो लोंग जिनको नहीं मिलती दो जून की रोटी , जो नहीं दे सकते रिश्वत नौकरी पाने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत सशक्त व्यंग ... अच्छी प्रस्तुति
बहुत खूब! बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत व्यंग सामयिक भी , बधाई
ReplyDeletebadhia vyang ...
ReplyDeletesamsamayik rachna.
बहुत सुन्दर रचना,
ReplyDeleteसादर विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मै भी सोच रहा था, कि अगर ऎसा हो गया तो सरकार कोन चलायेगा? इस देश की पुलिस का क्या होगा सब बेरोजगार हो जायेगे बेचारे ? क्योकि ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा जी धन्यवाद
साधना जी,
ReplyDeleteइस सामूहिक राष्ट्र साधना का फ़ल अवश्य मिलकर रहेगा. देर-सबेर जरूर होगी, लेकिन मिलेगा अवश्य.
इस अवसर पर राष्ट्रकवि दिनकर जी की पंक्तियाँ कहता हूँ :
कुछ पता नहीं, हम कौन बीज बोते हैं.
है कौन स्वप्न, हम जिसे यहाँ ढोते हैं.
पर, हाँ वसुधा दानी है, नहीं कृपण है.
देता मनुष्य जब भी उसको जल-कण है.
यह दान वृथा वह कभी नहीं लेटी है.
बदले में कोई दूब हमें देती है.
पर, हमने तो सींचा है उसे लहू से,
चढ़ती उमंग को कलियों की खुशबू से
क्या वह अपूर्व बलिदान पचा वह लेगी?
उद्दाम राष्ट्र क्या हमें नहीं वह देगी?
ना यह अकाण्ड दुष्कांड नहीं होने का
यह जगा देश अब और नहीं सोने का.
जब तक भीतर की गाँस नहीं काढती है.
श्री नहीं पुनः भारत मुख पार चढ़ती है
कैसे स्वदेश की रूह चैन पायेगी?
किस नर-नारी को भला नींद आयेगी?....
*
ReplyDeleteलेटी को लेती पढियेगा और काढती को कढती पढ़ें.
बहुत सही लिखा है |"सत्ता में क्या वाकई ---
ReplyDeleteना धोए होंगे अपने हाथ "
'अब नर्क के कारावास में ---साथ साथ ही पाएंगे "
बहुत सटीक प्रस्तुति |
बधाई
आशा
bahut achhi saamyik rachanaa .
ReplyDeleteकरारा व्यंग्य...
ReplyDeletebehtreen bhavabhivyakti....sadhuwad swikaren...
ReplyDeleteशायद ही प्रशासन में कोई
ReplyDeleteऐसा बचा होगा जिसने ना दिया होगा
कभी इन भ्रष्ट मंत्रियों का साथ !
यथार्थ