Friday, June 17, 2011

पानी पर लिखी तहरीरें


पानी पर लिखी तहरीरों की तरह

मेरी चाहतों का वजूद भी

कितना क्षणिक,

कितना अस्थाई है ,

ठीक वैसे ही जैसे

सागर की उत्ताल तरंगों का

एक पल के लिये

क्षणिक आवेश में

बहुत ऊपर उठ परस्पर

प्रगाढ़ आलिंगन में बँध जाना

और अगले ही पल

तीव्र गति के साथ तट से टकरा

बूँद-बूँद बिखर

सागर की अनंत जलराशि में

विलीन हो जाना !

ठीक वैसे ही जैसे

वृक्ष की ऊँची शाखों पर

तेज़ हवा से हिलते पत्तों का

पल भर के लिये

बेहद उल्लसित हो

बहुत आल्हादित हो

परस्पर अंतहीन वार्तालाप में

संलग्न होना और फिर

अगले पल ही हवा के

तीव्र झोंके के साथ द्रुत गति से

उड़ कर नीचे आते हुए

दूर-दूर छिटक कर

धरा पर बिखर जाना !

ठीक वैसे ही जैसे

पानी से भरे किसी नन्हे से

बादल के इस भ्रम का,

कि उसने तो सातों सागरों की

जलनिधि को अपने अंतर में

समेटा हुआ है,

वाष्प बन तिरोहित हो जाना

और उसके उर अंतर को

निचोड़ कर रीता कर जाना

जब उसके कोष की हर बूँद

अषाढ़ की पहली गर्जन के साथ

क्षण मात्र में तपती धरा की

धधकती देह पर गिरती है

और गहरे सागर की

उफनती जल राशि में समा जाती है

पुन: भाप बन जाने के लिये !

मन को अलौकिक आनंद से

विभोर कर देने वाली

पानी पर लिखी ये लकीरें भी तो

ऐसी ही क्षणिक हैं !



साधना वैद

चित्र गूगल से साभार


22 comments:

  1. बहुत ही दार्शिनिक कविता ,मन को अंदर तक भिगो गयी| अच् ही हम सबका अस्तित्व बस इतना ही है|

    ReplyDelete
  2. आपके आध्यात्मिक और दार्शनिक चिंतन से उपजी यह कविता अपने संदेश से हमें आकर्षित करती है।

    ReplyDelete
  3. भले ही चाहतों का वजूद क्षणिक हो पर लहरें तो उठा ही देता है ...और यही पलांश जीने का सबब बन जाता है ... बहुत अच्छी लगी यह रचना ...

    ReplyDelete
  4. बहुत ही दार्शिनिक कविता|

    ReplyDelete
  5. पानी पर लिखी तहरीरों की तरह

    मेरी चाहतों का वजूद भी

    कितना क्षणिक,
    कितना अस्थाई है ,

    प्रथम इन पंक्तियों ने ही झकझोर कर रख दिया...
    आगे की पंक्तियों ने तो पूरी तरह विश्लेषित कर दिया,....बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  6. आकर्षित करती बेहतरीन अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  7. पानी पर लिखी तहरीरों की तरह मेरी चाहतों का वजूद भी कितना क्षणिक, कितना अस्थाई है

    साधना जी ..आपका लेखन पढने के लिए नहीं..आत्मसात कर लेने के लिए होता है ...!!एक बार नहीं ..कई बार पढ़ती हूँ मैं ...और हर बार एक नयी अनुभूति ..मिलती है ...!!
    bahut sunder rachna ...!!

    ReplyDelete
  8. पानी पर लिखी लकीरें बेशक क्षणिक हों लेकिन आदमी इनसे मोह छोद नही पाता। दिल की गहराई से निकले भाव। शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  9. अस्थाई वज़ूद वाली चाहतें कभी कभी दीर्घकालीन संकल्प का आधार भी बन जाती हैं|

    ReplyDelete
  10. ये तो प्रकृति का नियम है
    जिसे हम स्थायी समझते हैं वो भी तो स्थायी नहीं हम आप रिश्ते.....

    ReplyDelete
  11. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
    आशा

    ReplyDelete
  12. अच्छी लगी यह रचना ...

    ReplyDelete
  13. जीवन की क्षणभंगुरता की बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......

    ReplyDelete
  14. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 21 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच-- 51 ..चर्चा मंच

    ReplyDelete
  15. पानी पर लिखी तर्ह्रीरों की तरह मेरी चाहतों का वजूद ...
    कुछ क्षण ऐसे ही होते हैं में जिनमे पूरा जीवन जी लिया जाता है ...
    विचारों का प्रवाह सुन्दर कविता में बहा !

    ReplyDelete
  16. dil ko choonewali,darsanik,yathart batati hui shaander rachanaa.badhaai aapko.




    please visit my blog.thanks.

    ReplyDelete
  17. पानी पे लिखी तहरीरों सा क्षणिक वजूद ... कुछ पल ही सही ये वजूद रहता तो है ... लाजवाब रचना ...

    ReplyDelete
  18. बहुत कुछ दार्शनिक अंदाज में कह गईं आप.

    ReplyDelete
  19. ji han ekantwas bhi khatam ho gaya aur exam bhi.

    aapki kavitaao me aapki srijan kshamta unchaayion ko chhuti hai. bahut sunder sashakt lekhan.

    ReplyDelete
  20. पानी पर लिखी तहरीरों की तरह

    मेरी चाहतों का वजूद भी

    कितना क्षणिक,

    कितना अस्थाई है

    waahh!!!

    uchh star ki daarshnik kavita.....

    jeevan ka kya marm samjhna hoga,
    kaha tak abhilasha ko rakhna hai
    seekhna hoga.....

    ReplyDelete
  21. दार्शनिक अंदाज़ होने के बावजूद विचारों के प्रवाह को दार्शनिकता रोक नहीं पाती......कविता सहज रूप से आगे बढ़ती है.......सुन्दर!!

    ReplyDelete
  22. पानी पर लिखी तहरीरों की तरह
    मेरी चाहतों का वजूद भी
    कितना क्षणिक,
    कितना अस्थाई है ,

    हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ ...सशक्‍त रचना ।

    ReplyDelete