Tuesday, July 26, 2011

कश्ती


विचारों की सरिता में

कविता की कश्ती को

भावनाओं के बहाव की दिशा में

मैं शब्दों की पतवार से खेती

आगे बढ़ी जाती हूँ

इस प्रत्याशा में कि

चाँद सितारे, परिंदे पहाड़,

फूल तितलियाँ, झील झरने,

नदिया सागर, सारी की सारी कायनात,

सूर्योदय और सूर्यास्त ,

सुबह, दोपहर और शाम ,

गहन अंधेरी रातें और चमकीली उजली भोर

सारे इन्द्रधनुषी रंग, और तमाम

कोमल से कोमलतम खयालात,

सारा प्यार और सौंदर्यबोध,

सारा दर्द और संवेदना

और ‘तुम’ मेरी इस नौका में

आकर बैठ जाओगे और

मेरी यह कश्ती

‘नोआ’ की नाव की तरह

रचना के सारे अंकुर

अपने में समेटे बढ़ चलेगी

एक नये सृजन संसार की

तलाश में ,

नित नवीन सृष्टि के लिये !


साधना वैद

21 comments:

  1. बहुत सुंदर बात कही है, सब कुछ समेट कर जो कश्ती बनायीं है उसमें हम भी आ रहे हैं.

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  2. मनभावन नौका विहार .....!

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  3. शानदार लेखन, दमदार प्रस्‍तुति।

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  4. पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है

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  5. बहुत सुन्दर भाव और शब्द चयन |बधाई
    आशा

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  6. नदी में जब विचारों कि कश्ती डाल ही दी तो सारा सौंदर्य तो समाना ही था .. हाँ साथ में "तुम " का बैठना ज़रूरी है ... क्यों कि इसी तुम के साथ जुडी होती हैं संवेदनाएं , दर्द , इन्द्रधनुषी रंग ... बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  7. मेरी यह कश्ती
    ‘नोआ’ की नाव की तरह
    रचना के सारे अंकुर
    अपने में समेटे बढ़ चलेगी
    एक नये सृजन संसार की
    तलाश में ,
    नित नवीन सृष्टि के लिये !
    lazabab pangtiyan........bahut achchi lagi.

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  8. शानदार लेखन, दमदार प्रस्‍तुति.

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  9. इतना कुछ लाद लिया अपनी नाव में तो अब हमारी टिप्प्णी की भी जगह नहीं बची.

    हाँ इन सब के साथ उन ’तुम’ का होना ज्यादा जरुरी है.

    :)

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  10. साधना जी आपकी रचनाओं पर तो मुझसे कुछ कहते नही बनता दिल से भी गहरी संवेदनायें समेट लेते हैं आपके शब्द। बधाई इस रचना के लिये।

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  11. बहुत ही प्यारी कविता।


    सादर

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  12. सुन्दरता से पिरोये गए भाव....
    सादर..

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  13. नमस्कार साधना जी...मै आपसे क्षमा चाहता हूँ कि मै आपके ब्लाग पर निरंतर नहीं आ पाता....क्या करुँ समय अभाव है....पर ऐसा भी नहीं है कि मै हर जगह जाता हूँ पर बस यहाँ नहीं आता......पर इसको मेरी मजबूरी समझे....बहुत ही सही चित्रण किया है आपने....इस कविता में...अध्यात्म भाव को लिये..सुंदर रचना।

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  14. बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  15. सुन्दर शब्दों से सुसज्जित लाजवाब रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! आपकी लेखनी को सलाम!

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  16. कमल की कविता है ...बहुत ही सुन्दर.

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  17. अगर मज़बूत इरादे हों तो हर मंजिल को पाया जा सकता है.
    सुन्दर रचना.

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  18. आपकी पोस्ट की चर्चा सोमवार १/०८/११ को हिंदी ब्लॉगर वीकली {२} के मंच पर की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ / हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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