Wednesday, August 31, 2011

तुम कुछ तो कहते








मैंने तो अपना सब कुछ तुम पर हारा था ,

तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !


जाने कितने सपनों का मन पर साया था ,

जाने कितने नगमों में तुमको गाया था ,

जाने क्यों हर मंज़र में तुमको पाया था ‘

जाने क्यों बस नाम तुम्हारा दोहराया था ,

मैंने तो अपना हर सुख तुम पर वारा था ,

तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !


जाने कितनी रातें आँखों में काटी थीं ,

जाने कितनी पीड़ा लम्हों में बाँटी थी ,

जाने कितने अश्कों की माला फेरी थी ,

जाने कितने किस्सों में चर्चा तेरी थी ,

तुमने था जो दर्द दिया मुझको प्यारा था ,

तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !


दुःख ने जैसे दिल का रस्ता देख लिया है ,

अश्कों ने आँखों में रहना सीख लिया है ,

मन के सूने घर में बस अब मैं रहती हूँ ,

अपनी सारी व्यथा कथा खुद से कहती हूँ ,

बाँटोगे हर सुख दुःख कहा तुम्हारा ही था ,

तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !


अब न किसीसे मिलने को भी मन करता है ,

अब न किसीसे कहने को कुछ दिल कहता है ,

अब मुझको प्यारी है अपनी ये तनहाई ,

सूनापन , रीतापन अपनी ये रुसवाई ,

मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था ,

तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !


साधना वैद

Sunday, August 28, 2011

हर जीत के लिये हिंसा की ज़रूरत नहीं


अहिंसा में कितनी ताकत होती है और शान्ति और प्रेम का कवच कितना कारगर होता है अन्ना के आंदोलन ने इस बात को सिद्ध कर दिया है ! बात बात पर उग्र होकर भड़क जाने वाली हमारी जनता ने नि:शस्त्र विरोध की शक्ति को पहचान लिया है और इसका सम्पूर्ण श्रेय युग पुरुष अन्ना हजारे जी को जाता है ! आश्चर्य नहीं होता आपको को हर पल गिरगिट की तरह रंग बदलते सियासी चेहरों की वादा खिलाफी, विश्वासघात और धोखेबाजी के प्रमाण सामने आने के बाद भी लाखों की संख्या में उपस्थित किसी भी व्यक्ति ने अपना आपा नहीं खोया ! किसीने तैश में आकर एक कंकड भी नहीं फेंका और किसीने भी कहीं पर कोई दंगा फसाद नहीं किया ! यह आंदोलन सिर्फ दिल्ली में ही नहीं हो रहा था बल्कि भारत के हर शहर हर गाँव में व्यापक रूप से फैला हुआ था ! यहाँ तक कि इस आंदोलन का उजाला तो विश्व के सुदूर स्थित अनेकों देशों तक फैला हुआ था ! लेकिन कहीं से भी हिंसा की कोई भी खबर नहीं आई ! क्या यह एक अभूतपूर्व एवं चमत्कारिक घटना नहीं है ! जबकि यहाँ तो कुछ वर्षों से यही परम्परा सी हो गयी है कि ज़रा ज़रा सी बात पर उत्तेजित होकर चुटकियों में बसों में आग लगा दी जाती है, कारों के शीशे तोड़ दिए जाते हैं, विरोधियों के पुतले फूंके जाते हैं और सड़कों पर घंटों के लिये मीलों लंबे जाम लगा दिए जाते हैं ! यह करिश्मा एक गांधीवादी तथा दृढ़ इच्छाशक्ति वाले आत्मजयी नेता की नसीहतों एवं मार्गदर्शन का परिणाम है !

इस आंदोलन ने लोगों को यह सिखलाया है कि संयम और शान्ति के साथ विवेकपूर्ण आचरण करके ही अपनी माँगों को मनवाया जा सकता है उग्र होकर नहीं ! जब तक आप क़ानून अपने हाथ में नहीं लेते आप सर्वशक्तिमान हैं लेकिन क़ानून का उल्लंघन करते ही आप अपनी सारी शक्ति खो बैठते हैं और अपने विरोधी के हाथों में सारी ताकत सौंप देते हैं ! कानून तोड़ते ही आप अपराधी बन जाते हैं और पुलिस आपको किसी ना किसी धारा के अंतर्गत निरुद्ध कर गिरफ्तार कर ले जाती है ! आपकी इन्साफ की लड़ाई को यहीं विराम लग जाता है और सही होने के बावजूद आप गुनाहगार सिद्ध हो जाते हैं और गलत होने के बावजूद आपका विरोधी सबकी सहानुभूति लूट कर ले जाता है और जीत उसके हिस्से में आ जाती है ! लेकिन जब आप विरोधी के आक्रमण को शान्ति एवं संयम के साथ झेल लेते हैं तो उस थोड़े से समय के लिये तो आपको अन्याय सहना पड़ जाता है लेकिन विरोधी अपनी सारी ताकत उसी समय खोकर पूरी तरह से असहाय हो जाता है ! अन्ना ने शान्ति के साथ अहिंसात्मक विरोध का जो नुस्खा जनता को थमा दिया है उसने उन्हें भली प्रकार सिखा दिया है कि जब तक वे संयमित एवं शांत रहेंगे अपनी हर गलती, हर भूल का खामियाजा स्वयं विरोधी को ही भुगतना पड़ेगा ! अन्ना को बेवजह बिना किसी गलती के जेल में डालना हार के रास्ते पर विरोधी का पहला कदम था और अन्ना का निर्विरोध चुपचाप जेल में चले जाना जीत की राह पर अन्ना का पहला कदम था ! भारतवासियों की ही नहीं वरन सारे विश्व की सहानुभूति अन्ना के साथ उसी पल हो गयी और हर ओर से पैनी प्रतिक्रियाएं आनी आरम्भ हो गयीं ! सरकार को सबकी तीखी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा ! हडबडाहट में वे एक के बाद एक गलतियाँ करते रहे और जनता तथा अन्ना हँसते मुस्कुराते, गीत गुनगुनाते और भजन गाते हुए और देशभक्ति की अलख जगाते हुए शांति के साथ उन्हें मुँह की खाते हुए देखते रहे ! बारह दिनों तक सिलसिलेवार इसी तरह की गलतियाँ दोहराई जाती रहीं और हर बार अन्ना व जनता के संयम और धैर्य के सामने सरकारी नुमाइंदे निरस्त्र होते रहे और अपने शब्दों को खुद ही चबाते रहे ! कहीं कोई पुतला नहीं जला, कहीं कोई बस नहीं जली, कहीं कोई रेल नहीं रोकी गयी और जीत जनता की झोली में आ गिरी ! क्या इस जीत का जश्न मनाने का आनंद अलौकिक नहीं है !

अहिंसा का अस्त्र गांधीजी ने भी अपनाया था और इसी अस्त्र का सहारा लेकर उन्होंने देश को विदेशी ताकतों से मुक्त करा कर भारत को स्वतन्त्रता की सौगात दिलवा दी ! वे भी अहिंसा के प्रबल समर्थक थे और उग्र और हिंसात्मक विरोध के सख्त खिलाफ थे ! लेकिन अहिंसा और कायरता में क्या फर्क है इसे भी समझना बहुत ज़रूरी है ! गाँधी जी ने भी एक स्थान पर दृढता के साथ कहा था कि यदि कायरता और हिंसा में चुनाव करने की आवश्यकता पड़ेगी तो वे हिंसा का चुनाव करेंगे कायरता का नहीं ! आत्मविश्वास, निर्भीकता, संयम, सुस्थिरता तथा दृढ़ता का सूत्र थाम कर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है ! और इतिहास गवाह है कि हमने अपनी स्वतंत्रता इसी सूत्र को थाम कर प्राप्त की थी ! तब गांधीजी ने हमारा नेतृत्व किया था ! आज अन्ना हमारा नेतृत्व कर रहे हैं और हमें उनके मार्गदर्शन का मान रख कर उनके बताए रास्ते पर चलना चाहिये ! देश के लिये अपनी जान भी कुरबान कर देने का जज्बा हमारे मन में होना चाहिये ! दुश्मन को धूल चटाने के लिये अपने अस्त्रों की धार भी पैनी करनी होगी ! पर याद रहे ये अस्त्र अहिंसा का होना चाहिये हिंसा का नहीं !

जय भारत ! वंदे मातरम् !

साधना वैद

Wednesday, August 24, 2011

एक आम आदमी की कहानी

अन्ना हजारे जी के राष्ट्रव्यापी आंदोलन ने कितने भुक्तभोगियों के ज़ख्मों पर मरहम लगाया है और उनका यह अभियान कब सफल होगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन करोड़ों भारतीयों की पीड़ा को, जो भ्रष्टाचार की गिरफ्त में फँस कर भौतिक नुकसान उठाने के साथ साथ अपना सुख चैन और शान्ति भी गँवा चुके हैं, को उन्होंने आवाज़ अवश्य दी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता ! आज आपके सामने अपनी एक पुरानी पोस्ट प्रस्तुत कर रही हूँ जो शब्दश: शत प्रतिशत सत्य है !

जीवन
के महासंग्राम में दिन रात संघर्षरत एक आम इंसान के कटु अनुभव से अपने सुधी पाठकों को अवगत कराना चाहती हूं और अंत में उनके अनमोल सुझावों की भी अपेक्षा रखती हूँ कि उन विशिष्ट परिस्थितियों में उस व्यक्ति को क्या करना चाहिये था ।
मेरे एक पड़ोसी के यहाँ चोरी हो गयी । चोर घर में ज़ेवर, नकदी और जो भी कीमती सामान मिला सब बीन बटोर कर ले गये । पड़ोसी एक ही रात में लाखपति से खाकपति बन गये । उस वक़्त उनको जो आर्थिक और मानसिक हानि हुई उसका अनुमान लगाना तो मेरे लिये मुश्किल है लेकिन उसके बाद उन्हें सालों जो कवायद करनी पड़ी और जिस तरह से न्याय पाने की उम्मीद में वे पुलिस की दुराग्रहपूर्ण कार्यप्रणाली की चपेट में आकर थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा लगा कर चकरघिन्नी बन गये इसे मैने ज़रूर देखा है । चोरी की घटना के बाद उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखा दी । तीन चार दिन तक लगातार जाँच की प्रक्रिया ‘ सघन ‘ रूप से चली । परिवार के सदस्यों सहित सारे नौकर चाकर और पड़ोसियों तक के कई कई बार बयान लिये गये । फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट, फोटोग्राफर्स के दस्तों ने कई बार घटनास्थल पर फैले बिखरे सामान, अलमारियों के टूटे तालों, और टूटे खिड़की दरवाज़ों का निरीक्षण परीक्षण किया । नगर के सभी प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकार पड़ोसी के ड्राइंग रूम में सोफे पर आसीन हो घटना की बखिया उधेड़ने में लगे रहे । इस सबके साथ साथ इष्ट मित्र , रिश्तेदार और पास पड़ोसी भी सम्वेदना व्यक्त करने और अपना कौतुहल शांत करने के इरादे से कतार बाँधे आते रहे और चाय नाश्ते के दौर चलते रहे ।
अंततोगत्वा इतनी कवायद के बाद इंसपेक्टर ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर मुकदमा दायर कर दिया । पड़ोसी महोदय ने चैन की साँस ली । उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी बेटी के ब्याह से फारिग हुए हैं । अब पुलिस वाले चंद दिनों में चोरों को पकड़ लेंगे और चोरी गये सामान की रिकवरी हो जायेगी और सब कुछ ठीक हो जायेगा । उन्हें क्या पता था कि असली मुसीबत तो अब पलकें बिछाये उनकी प्रतीक्षा कर रही है ।
क़ई दिन की उठा पटक के बाद उन्होंने चार पाँच दिन बाद ऑफिस की ओर रुख किया । मेरे पड़ोसी एक प्राइवेट कम्पनी में प्रोडक्शन इंजीनियर हैं । इतने दिन की अनुपस्थिति के कारण कम्पनी के काम काज का जो नुक्सान हुआ उसकी वजह से उन्हें बॉस का भी कोप भाजन बनना पड़ा । खैर जैसे तैसे उन्होंने पटरी से उतरी गाड़ी को फिर से पटरी पर चढ़ाने की कोशिश की और अपने सारे दुख को भूल फिर से जीवन की आपाधापी में संघर्षरत हो गये ।
लेकिन अब एक कभी ना टूटने वाला कोर्ट कचहरी का सिलसिला शुरु हुआ । आरम्भ में हर हफ्ते और फिर महीने में दो – तीन बार केस की तारीखें पड़ने लगीं । हर बार वे ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़े आशान्वित हो कोर्ट जाते कि इस बार कुछ हल निकल जायेगा लेकिन हर बार बाबू लोगों की जमात और वकीलों के दल बल को चाय पानी पिलाने के चक्कर में और सुदूर स्थित कचहरी तक जाने के लिये गाड़ी के पेट्रोल का खर्च वहन करने में उनके चार - पाँच सौ रुपये तो ज़रूर खर्च हो जाते लेकिन केस में कोई प्रगति नहीं दिखाई देती । केस की तारीख फिर आगे बढ़ जाती और वे हताशा में डूबे घर लौट आते । यह क्रम महीनों तक चलता रहा ।
परेशान होकर पड़ोसी ने पेशी पर कोर्ट जाना बन्द कर दिया । चोरी की घटना बीते तीन साल हो चुके थे । ना तो किसी सामान की बरामदगी हुई थी ना ही कोई चोर पकड़ में आया था । चोरी के वाकये को वे एक बुरा सपना समझ कर सब भूल चुके थे और नये सिरे से जीवन समर में कमर कस कर जुट गये थे कि अचानक कोर्ट से नोटिस आ गया कि मुकदमें की पिछली तीन तारीखों पर पड़ोसी कोर्ट में नहीं पहुँचे इससे कोर्ट की अवमानना हुई है और अगर वे अगली पेशी पर भी कोर्ट नहीं पहुँचेंगे तो उनके खिलाफ सम्मन जारी कर दिया जायेगा । ज़िसने चोरी की वह चोर तो आराम से मज़े उड़ा रहा था क्योंकि वह कानून की गिरफ्त से बाहर था और पुलिस तीन सालों में भी उसे पकड़ने में नाकाम रही थी । पर जिसका सब कुछ लुट चुका था वह तो एक सामाजिक ज़िम्मेदार नागरिक था वह कहाँ भागता ! इसीलिये उस पर नकेल कसना आसान था । लिहाज़ा उसे ही कानूनबाजी का मोहरा बनाया गया । अंधेर नगरी चौपट राजा ! नोटिस पढ़ कर पड़ोसी के होश उड़ गये । फिर भागे कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने । कई दिनों की कवायद के बाद अंततोगत्वा पाँच हज़ार रुपये की रिश्वत देकर उन्होने अपना पिंड छुड़ाया और अज्ञात चोरों के खिलाफ अपना मुकदमा वापिस लेकर इस जद्दोजहद को किसी तरह उन्होंने विराम दिया ।
अपने पाठकों से मैं उनकी राय जानना चाहती हूँ कि इन हालातों में क्या पड़ोसी को भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का दोषी माना जाना चाहिये ? अगर वे उसे ग़लत मानते हैं तो उसे मुसीबत का सामना कैसे करना चाहिये था इसके लिये उनके सुझाव आमंत्रित हैं जो निश्चित रूप से ऐसे ही दुश्चक्रों में फँसे किसी और व्यक्ति का मार्गदर्शन ज़रूर करेंगे ।

साधना वैद

Tuesday, August 23, 2011

मंज़िल







बस

फूलों की पंखुड़ी की तरह

एक नाज़ुक सा ख़याल ,

स्पंज की तरह भीगा-भीगा सा

एक चाहत का जज्बा ,

मन पर चहलकदमी करती

अतीत के मधुर पलों को दोहराती

ढेर सारी खट्टी मीठी यादें ,

दिल के टी वी स्क्रीन पर

हर लम्हा बदलती

बीते पलों की बेहद मोहक

खूबसूरत तस्वीरें !

साथ ही लम्बे-लम्बे

अनचीन्हे अनजान रास्ते ,

दूर तक ना तो

मंज़िल का कोई निशान

ना ही कोई पहचान ,

ना कोई आवाज़

ना ही कोई आहट ,

ना कोई रोशनी की किरण

ना ही किसी विश्वास का उजाला !

समय की गीली रेत पर

तुमने जो निशाँ छोड़े थे

उनकी नमी

मौसमों के प्रखर ताप ने

सारी की सारी

ना जाने कब सोख ली और

वो हालात की आँधी के साथ

उड़ कर अब तो मिट भी गये !

इस गुमनाम सफर की

मंज़िल कहाँ है ,

राह में पड़ाव कहाँ हैं ,

और मेरा लक्ष्य कहाँ है ,

मुझे कुछ तो बताओ !



साधना वैद

Sunday, August 21, 2011

बढ़े चलो













आज देश में देशभक्ति की जैसी उत्ताल तरंगें देखने को मिल रही हैं वह अभूतपूर्व हैं ! आपको सलाम अन्ना आपने सभी भारतीयों को उनकी सुषुप्त शक्ति और शौर्य से परिचित कराया ! उन्हें उनके अधिकारों और दायित्वों का भान कराया और सर्वोपरि भ्रष्ट नेताओं के साथ जुड़ कर अपनी साख खोती गाँधी टोपी की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया ! हमारा तिरंगा इसी तरह संसार में सबसे ऊँचा लहराता रहे और भारत देश की गिनती विश्व के भ्रष्ट राष्ट्रों में नहीं अपितु सबसे महान देशों में हो यही मंगलकामना है !

मातृभूमि ने ललकारा है, बढ़े चलो ,

साँपों ने घेरा डाला है बढ़े, चलो !


दुश्मन घर में ही बैठा है, बढ़े चलो,

शतरंजी चालें चलता है बढ़े, चलो ,

छल बल से सबको ठगता है, बढ़े चलो ,

उसको पाठ पढ़ाना होगा, बढ़े चलो !


शीशा उसे दिखाना होगा, बढ़े चलो ,

झुकना नहीं झुकाना होगा बढ़े, चलो ,

डरना नहीं डराना होगा बढ़े, चलो ,

उसको सबक सिखाना होगा, बढ़े चलो !


मन में जोश जगाना होगा, बढ़े, चलो ,

रगों में खून बहाना होगा, बढ़े चलो ,

स्वाभिमान अपनाना होगा, बढ़े चलो ,

गौरव गान सुनाना होगा, बढ़े चलो !


स्वविवेक को नहीं छोड़ना, बढ़े चलो ,

मर्यादा को नहीं तोड़ना, बढ़े चलो ,

स्वार्थ की रोटी नहीं सेकना, बढ़े चलो ,

मुड़ पीछे नहीं देखना, बढ़े चलो !


माँ का क़र्ज़ चुकाना होगा, बढ़े चलो ,

जीवन सफल बनाना होगा, बढ़े चलो ,

सबका दर्द मिटाना होगा, बढ़े चलो ,

देश का मान बढ़ाना होगा, बढ़े चलो !


अपनी शक्ति को पहचानो, बढ़े चलो ,

देश भक्ति को भी तो जानो, बढ़े चलो ,

आज विश्व को सच दिखला दो, बढ़े चलो ,

अम्बर में झंडा फहरा दो, बढ़े चलो !


जयहिंद जय भारत !


साधना वैद !


चित्र गूगल से साभार