मैंने तो अपना सब कुछ तुम पर हारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
जाने कितने सपनों का मन पर साया था ,
जाने कितने नगमों में तुमको गाया था ,
जाने क्यों हर मंज़र में तुमको पाया था ‘
जाने क्यों बस नाम तुम्हारा दोहराया था ,
मैंने तो अपना हर सुख तुम पर वारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
जाने कितनी रातें आँखों में काटी थीं ,
जाने कितनी पीड़ा लम्हों में बाँटी थी ,
जाने कितने अश्कों की माला फेरी थी ,
जाने कितने किस्सों में चर्चा तेरी थी ,
तुमने था जो दर्द दिया मुझको प्यारा था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
दुःख ने जैसे दिल का रस्ता देख लिया है ,
अश्कों ने आँखों में रहना सीख लिया है ,
मन के सूने घर में बस अब मैं रहती हूँ ,
अपनी सारी व्यथा कथा खुद से कहती हूँ ,
बाँटोगे हर सुख दुःख कहा तुम्हारा ही था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
अब न किसीसे मिलने को भी मन करता है ,
अब न किसीसे कहने को कुछ दिल कहता है ,
अब मुझको प्यारी है अपनी ये तनहाई ,
सूनापन , रीतापन अपनी ये रुसवाई ,
मिटा न पाई बस जो, नाम तुम्हारा ही था ,
तुम्हें अगर स्वीकार न था तुम कुछ तो कहते !
साधना वैद