धूल के गुबार के साथ धीमे-धीमे धुँधले से होते जाते कदमों के निशाँ, हर पल हर क्षण दूर हो नेपथ्य में विलीन सी हुई जाती पैरों की आहट पल-पल कमज़ोर होती जाती मुट्ठी की पकड़ से छूटने को आतुर अतीत की कड़वी मीठी स्मृतियों के बेनाम से दस्तावेज़ दूर आसमान के जर्जर आँचल में उखड़े पैबंद की तरह टंका उदास सा चाँद फिज़ाओं में ठिठकती ठहरती गुमसुम सी हवाऐं निशब्द, निस्पंद, नीरव सहमे से खडे अवसादग्रस्त पेड़ पौधे यामिनी के आँसुओं की अटूट धार से भीगी धरा की गीली-गीली सी दूब ! कायनात की हर शै आशंकित है ! कहीं यह जीवन के एक और अध्याय के समापन का संकेत तो नहीं !