तस्वीर एक बनाई थी मोहब्बत की कभी ,
हर इक नक्श को पलकों से तब सँवारा था !
वफ़ा के रंग भर दिए थे हर एक गुंचे में ,
हर इक पंखुड़ी पे नाम बस तुम्हारा था !
चाँद से नूर चाँदनी से माँग ली थी हँसी ,
ज़मीं पे दूर तलक खुशनुमां नज़ारा था !
सितारे टाँक लिये थे फलक के चूनर में ,
उन्हीं के नूर से रौशन जहाँ हमारा था !
ख़याल ओ ख्वाब लिये उड़ते थे हवाओं में ,
ज़मीं की सख्त फितरतों को कब निहारा था !
न जाने कैसे कहाँ टूट गये ख्वाब सभी ,
खुली जो आँख तो तनहा सफर हमारा था !
किसीने ने नोच लिये तिनके सब नशेमन के ,
ज़मीं पे बिखरा पड़ा आशियाँ हमारा था !
बहुत थी आरज़ू हमको तुम्हारी उल्फत की ,
बड़ी उम्मीद से हमने तुम्हें पुकारा था !
बहुत थे फासले और मुश्किलें भी थीं ज्यादह ,
खुद अपने आने पे भी बस कहाँ तुम्हारा था !
कहाँ थे फासले मीलों में या कि बस मन में , जो दुःख बस गया इस दिल में वो हमारा था !
साधना वैद