बंद घर के दरवाज़े,
बंद दिल के दरवाज़े
घंटी बजा जब भी
अन्दर आई
पग ठिठके, मन उमड़ा,
हूक सी उठी दिल में
और
जाने क्यों अम्मा
तेरी
बहुत याद आई !
कीमती फानूस, मंहगा कालीन
बीच में सोफे में
जड़े बौने से हम
ऐसे में न जाने
क्यों अम्मा
आँगन में बीचों बीच
पड़ी
तेरी बान की वो झूले
सी खटिया
और तेरी गोद में सिर
धरे की हुई
दुनिया जहान की वो
ढेर सारी बातें
बहुत याद आईं !
शिमला मसूरी से
ठन्डे कमरे
तरह तरह के शरबत जूस
ड्रिंक्स
काँच की कीमती
क्रॉकरी और
सेवादारों की फ़ौज इन
सबके बीच
जाने क्यों अम्मा
हौदी के पानी से
तराई किया हुआ
सोंधी-सोंधी
खुशबू से महकता आँगन
और मिट्टी के कुल्हड़
में
तेरे हाथ की बनी
खुशबूदार लस्सी
बहुत याद आई !
अचानक जो पहुँचे तो
सतही बातों के संग
रेस्टोरेंट का
ज़ायकेदार खाना और
बाज़ार की
मंहगी मिठाई जब खाई
तो
जल्दी-जल्दी में पकी
तेरे हाथों की
चूल्हे की गरमागरम
रोटी,
आलू मटर की चटपटी
सब्ज़ी,
धनिये की चटनी और
गुड़ मक्खन की छोटी
सी डली
बहुत याद आई !
औपचारिक हेलो हाय और
रस्मी स्वागत भी जब
मेज़बान की
खीझ और ऊब ना छिपा
पाए तो
असीम प्यार के साथ
माथे पर जड़ी तेरी
अनगिनत पप्पियाँ
और खुशी से छलछलाती
तेरी आँसू भरी आँखें
बहुत याद आईं !
युग बदल गए अम्मा
रिश्ते भले ही ना
बदले हों
इंसान बदल गए,
तौर तरीके बदल गए
रस्मो रिवाज़ बदल गए
और
लोगों के अंदाज़ बदल
गए !
इंसान की हैसियत और
औकात
भले ही बढ़ गयी लेकिन
उसकी कीमत घट गयी
क्योंकि
अब जो कुछ है उसके
पास
सब सतही है, दिखावटी है
और बनावटी है
न वहाँ अपनापन है
न आत्मीयता
जानती हो क्यों
अम्मा ?
वो इसलिए कि अब
इंसान की
फितरत बदल गयी !
साधना वैद