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Wednesday, July 30, 2014

Thursday, July 24, 2014

पिघलती पीर

टूट के बरसो मेघा
बहा ले चलो
मुझे अपने संग
जहाँ मेरे पिया !

कब तक बाट निहारूँ
मेघ भी बरस कर
चुक गये
तुम न आये !

पीर पिघलती है
बादलों से बारिश बन
भिगोती है तन मन
जलाती है जीवन !

घनघोर वर्षा में
दहकता है मन
बिजली की कड़क सुन
दहलता है मन !

आसमान में
फूटता है ज्वालामुखी
उड़ती हैं चिन्गारियाँ
उमड़ता है लावा
धरा पर
लहलहाती है फसल !





साधना वैद

Monday, July 21, 2014

देखें ये साइन बोर्ड्स क्या कहते हैं !

आदतें सुधारें
मालिक कुत्ते से ज़्यादह खतरनाक है
ज़हर ही ज़हर को मारता है
अंतरजाल का स्वादिष्ट विस्तार
अद्भुत चिकित्सक
अपनी घड़ी इस घड़ी से मिला लें
अव्वल दर्जे की बहानेबाजी
कैसे संभव होगा
लिखना ज़रूरी है इंग्लिश मजबूरी है
इंग्लिश की स्पेलिंग या लोहे के चने
अब भी समझे या नहीं
और साबुन गार्ड के पास है
कोई तो माने
गूगल एपिल गठबंधन
पी टी उषा की जय
ज़ू कीपर पशु प्रेमी तो निश्चित है

दुखी आत्मा
कामयाब तरीका
पेंटर को ज़रूर स्कूल भेजें 
फ़र्स्ट पर ही अटक गए

सही फरमाया
मोदी जी कृपया गौर फरमाएं
लकी लॉक
सच्चा शुभचिंतक
मेहमां जो हमारा होता है ..............टॉयलेट ताजमहल आगरा
सरकारी काम कछुए की चाल
सुधारो और सुधर जाओ
सही बात
लंच के लॉन्च होने की पूरी संभावना है
कौन जाए अन्दर खुद ही फैसला करें
इधर कुआं उधर खाई
 
 वीसा सहायक हनुमान जी
नई पीढ़ी से परेशान बेचारे महंत जी
  अगले जन्म का भरोसा मत करिए 
देखा आपने ! मज़ा आया या नहीं ! कुछ साइन बोर्ड्स अपने सन्देश की वजह से , कुछ अपनी भाषा की वजह से कुछ अपनी विट्स की वजह से तो कुछ स्पेलिंग्स की वजह से जाने अनजाने में दिलचस्प बन जाते हैं और हमारा भरपूर मनोरंजन कर जाते हैं ! !
सभी चित्र गूगल से साभार 

साधना वैद

Thursday, July 17, 2014

प्रेमगीत



मेघों ने गुनगुना कर
हवा के लहराते आँचल पर
पानी की सियाही से
एक मधुर सा
प्रेमगीत लिख दिया है !
उत्फुल्ल धरा ने
उल्लसित हो
अपने रोम-रोम में इस
प्यार भरी इबारत को
आत्मसात कर लिया है !
बारिश के इस प्रेमगीत ने
आकुल धरा पर जैसे
जादू सा कर दिया है !
बूंदों के स्नेहिल स्पर्श की
प्यार भरी थपकी से 
उसका म्लान मुख
पल भर में ही
पुलकित हो उठा है !
नवोढ़ा अभिसारिका
की तरह वह
सोलह श्रृंगार कर
और चमचमाती
धानी चूनर ओढ़  
अपने प्रियतम की
प्रतीक्षा में
सजने संवरने लगी है !
इस प्रेम गीत की
मधुर लय पर
सारी सृष्टि ही जैसे
थिरकने लगी है !

साधना वैद


Sunday, July 13, 2014

निर्वासन





हृदय के द्वार पर

बड़ा सा ताला लटका है,

नज़रें किसी और

लक्ष्य पर टिकी हैं

इसीलिये कोई भी संवाद

स्थापित करने में

नाकाम हैं,  

जुबां खामोश है  

शब्द जैसे कहीं

गुम हो गये हैं,

कलम की स्याही

कदाचित सूख गयी है,

और निब या तो

टूट गयी है

या घिस कर

 खराब हो गयी है,

इसीलिये शायद

   ना कोई सन्देश है  

   ना कोई आश्वासन  

 ना कोई आहट है 
ना कोई दस्तक

ना कोई पुकार है

ना कोई आमंत्रण

ना कोई संकेत है

ना कोई दिलासा

कुछ है तो बस

विक्षुब्ध हृदय की चिंता

आशंकित मन की बचैनी

अवमानना के दंश से

घायल मन की घुटन

और

तिरस्कार का गरल

पी लेने के बाद

मृतप्राय अवसन्न

संज्ञाशून्य अस्तित्व !

तुम्हीं कहो

इसे निर्वासन

ना मानूँ

तो और क्या मानूँ !





साधना वैद