यह बिलकुल सत्य है कि पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करते करते किसी भी समारोह में फूलों का गुलदस्ता देना अब बहुत अधिक प्रचलन में आ गया है ! किसीके प्रति अपनी सद्भावना एवं आदर भाव को व्यक्त करने के लिए यह एक सर्वमान्य, सुन्दर, सुरुचिपूर्ण एवं स्वस्थ परम्परा है ! अंग्रेज़ी में एक मुहावरा भी है, “Say it with flowers”.लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इन फूलों का जीवन बहुत अल्पावधि का होता है और दो तीन दिन बाद ही ये सारे सुन्दर फूल कूड़े के ढेर पर फेंक दिए जाते हैं साथ ही हज़ारों रुपये भी कूड़े के ढेर को समर्पित हो जाते हैं ! फूलों के स्थान पर सब्जियाँ देने का प्रस्ताव भी मुझे कुछ विशेष अच्छा नहीं लगा ! आजकल समाज की जैसी व्यवस्था है प्राय: परिवार बहुत छोटे छोटे हो गए हैं ! किसी समारोह में अगर दस पंद्रह लोगों ने भी सब्जी की बास्केट उपहार में दे दी तो उपहार पाने वाले के सामने कितनी बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी उन्हें इस्तेमाल करने की ! कोई बड़ा कलाकार हुआ तो उसे तो सब्जी की दूकान लगाने की आवश्यकता पड़ जायेगी ! छोटे से परिवार में फल फ्रूट या सब्जी की खपत ही कितनी होती है ! अधिक से अधिक एक डेढ़ किलो ! एक तो समारोह स्थल से घर ले जाने की समस्या फिर ज़रा सोचिये उनके घर में २५-३० किलो सब्जी और फल आ जायेंगे तो वे क्या करेंगे ! फूल तो मुरझाने के बाद फेंक भी दिए जाते हैं लेकिन फल और सब्जियों को तो फेंकना भी गवारा नहीं होगा न ही इतनी खाई जा सकेंगी ! मोहल्ले पड़ोस में बाँटने की मुसीबत और मढ़ दी जाए उस सम्मानित व्यक्ति पर ! मेरे विचार से सबसे अच्छा उपहार पौधों का ही होता है ! हरे भरे छायादार वृक्षों के या खूबसूरत फूलों के पौधे उपहार स्वरुप दिए जाने चाहिए ताकि पर्यावरण का भी संरक्षण हो, प्रदूषण भी घटे और हरियाली भी भरपूर हो जाए ! सोचिये ज़रा शहर में कितने सम्मान समारोह रोज़ होते हैं ! सम्मानित व्यक्तियों को नीम, पीपल, बरगद, आम, अमरुद, जामुन इत्यादि के पौधे उपहार स्वरुप दिए जाएँ तो शहर की तस्वीर ही बदल जायेगी ! कितना वृक्षारोपण होगा और शहर की वायु शुद्ध हो जायेगी ! पौधे उपहार स्वरुप देने से धन की भी बर्बादी नहीं होगी बल्कि उपहार देने वाले के धन का सच्चे अर्थों में सदुपयोग ही होगा ! सम्मानित व्यक्ति के घर में भी अनुपयोगी उपहारों का ढेर नहीं लगेगा ! धरती माँ और प्रकृति भी प्रसन्न हो जायेगी ! पंछी पखेरुओं की दुआ लगेगी और इतने फूलों को भी असमय पेड़ों से नहीं तोड़ना पड़ेगा ! फूल वृक्षों पर ही शोभित होते हैं, घूरे पर नहीं !
साधना वैद