Followers
Wednesday, August 28, 2013
Monday, August 26, 2013
भीमबैठका -शैल चित्र
ये चित्र आदि मानव द्वारा भीमबैठका की गुफाओं की दीवारों पर हज़ारों साल पहले उकेरे गये थे ! जब वह जंगली जानवरों से या बेरहम मौसम की मार से बचने के लिये इन शैलाश्रयों में शरण लेता होगा ! आज ये चित्र हमारी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवँ पुरातात्विक विरासत हैं ! इस धरोहर को हमें बहुत सम्हाल कर संरक्षित करना है ! मानव की एक वन्य जीव से लेकर सामाजिक प्राणी होने तक की गाथा ये चित्र हमें सुनाते हैं ! लीजिये आप भी आनंद लीजिये इस चित्र कथा का ! स्थान के ववरण के लिये कृपया इस लिंक पर जायें !
http://sudhinama.blogspot.in/2013/08/blog-post_26.html
साधना वैद
भीमबैठका - आदि मानव के शैल चित्र
पिछले माह एक अत्यंत सुंदर एवँ मनोरम स्थान को देखने का अवसर मिला ! यह है
भीमबैठका जिसे सन् २००३ में वर्ल्ड हेरीटेज साईट में सम्मिलित किया गया है ! मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दक्षिण में ४५
किलोमीटर्स की दूरी पर विन्ध्याचल पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर व उससे आगे
सतपुडा पर्वतमाला के वृहद् क्षेत्र में यह अद्भुत शैलाश्रय दूर-दूर तक फैले हुए
हैं ! भीमबैठका रातारानी अभयारण्य की सीमा में स्थित है ! ऐतिहासिक, पौराणिक,
पुरातात्विक एवँ सांस्कृतिक सभी दृष्टियों से यह जगह अत्यंत महत्वपूर्ण है ! यहाँ
की गुफाओं में प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान समय से दो हज़ार साल पहले तक के
शैल चित्र आज तक सुरक्षित एवं सरंक्षित मिले हैं जो मानव के पाषाण युग से लेकर एक
सामाजिक प्राणी होने तक की क्रमिक विकास गाथा को अपने चित्रों के माध्यम से सुनाते
हैं !
यह स्थान पौराणिक दृष्टि से भी इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह माना जाता है कि अपने
अज्ञातवास की अवधि में पांडवों ने इस स्थान पर अपना ठिकाना बनाया था और यहाँ की
चट्टानों पर भीम बैठा करते थे ! इसीलिये इस स्थान का नाम भीमबैठका पड़ा ! यह भी एक
रोचक तथ्य है कि उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक कई स्थानों पर भगवान
राम की पर्णकुटी, सीता जी की रसोई और भीम तथा अर्जुन व अन्य पाण्डवों की उपस्थिति
के कई प्रमाण आज भी मिल जाते हैं ! उस युग में जब आम जनों के द्वारा वाहनों का
प्रयोग करने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं राम लक्ष्मण तथा सीता एवँ पांडवों ने
सम्पूर्ण भारत के सघन वन प्रांतरों की पैदल यात्रा किस तरह की होगी यह विचार आज भी
चकित कर देता है ! भारत के आर्कियोलोजिकल
दस्तावेजों में सन १८८८ में इसे बौद्ध धार्मिक स्थल के रूप में उल्लेखित किया गया
था !
निविड़ वन प्रांतर में छिपे हुए इस स्थान की खोज की कहानी भी कम रोचक नहीं
है ! किसी समय उज्जैन के एक प्रोफ़ेसर डॉ. वाकणकर एक बार रेल से यात्रा कर रहे थे
तो उन्होंने भोपाल के पास कुछ इस तरह की चट्टानें व शैलाश्रय देखे जैसे उन्होंने
फ्रांस और स्पेन में देखे थे ! इस स्थान के प्रति उनकी जिज्ञासा जागृत हुई और सन्
१९५७ में कुछ पुरातत्वविदों की टीम को साथ लेकर वे इस स्थान के भ्रमण के लिये
भीमबैठका पहुँचे ! स्थानीय आदिवासियों की सहायता से उन्होंने इन शैलाश्रयों की
अद्भुत चित्रकारी का अपने साथियों के साथ अध्ययन किया और यह देख कर वे चमत्कृत हो गये
कि यहाँ पर पाषाण युग से लेकर दो हज़ार साल पहले तक की उत्कृष्ट चित्रकारी गुफाओं
की दीवारों पर उकेरी हुई थी जो तत्कालीन मानव ने यहाँ रहते हुए अपने फुर्सत के
क्षणों में बनाई होंगी ! भीम बैठका पर लिखे उनके शोध पत्रों ने भारत के
पुरातत्वविदों के साथ-साथ विश्व समुदाय की जिज्ञासा को भी जागृत किया ! सन्१९७१ से
१९७८ तक इस स्थान की प्रोफेसर वाकणकर के अलावा अन्य कई वैज्ञानिकों तथा अध्येताओं
की अगुआई में गहन जाँच पड़ताल की गयी और इसे ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से बहुत
ही महत्वपूर्ण स्थान का दर्ज़ा मिला !
इन चित्रों के गहन अध्ययन से जो सबसे विलक्षण बात सामने आई वह यह है कि पाषाण
युग से लेकर दो हजार साल पहले तक मानव के सामाजिक प्राणी बन जाने तक के क्रमिक
विकास को हम इन भित्ति चित्रों में बनी आकृतियों में आये बदलाव के माध्यम से जान
सकते हैं ! जंगली जानवरों के साथ एक वन्य जीव की तरह रहते हुए वह किस तरह और किन
सोपानों को पार कर एक सभ्य सामाजिक प्राणी के रूप में बदलता गया ये चित्र इसे
दर्शाने में बखूबी कारगर हैं ! भीम बैठका और आसपास के क्षेत्र में ७५० शैलाश्रय
मिले हैं जिनमें से २४३ शैलाश्रय भीम बैठका में हैं तथा १७८ लाखा जुआर क्षेत्र में
हैं ! पर्यटकों के देखने के लिये फिलहाल केवल २२ शैलाश्रय उपलब्ध हैं ! पुरातत्वविदों
के अनुसार इस क्षेत्र में संसार की सबसे पुरानी पत्थर की दीवार और फर्श के अवशेष भी
मिले हैं ! इन चित्रों में लाल, पीले, सफ़ेद रंगों का भी इस्तेमाल हुआ है और आश्चर्य
की बात यह है कि इतने हज़ारों वर्षों के अंतराल के बाद भी अधिकतर गुफाओं में इनके
रंग आज भी स्पष्ट रूप से दृष्टव्य हैं ! कार्बन डेटिंग व भित्ती चित्रों की
विषयवस्तु, आकृतियों व आकार प्रकार के आधार पर इन गुफाओं को सात काल खण्डों में
विभाजित किया गया है !
पहले अपर पैलिओलिथिक काल खण्ड में बड़े साइज़ के जंगली जानवरों जैसे बाघ,
जंगली भैसा व गैंडे आदि के चित्र हैं !
दूसरे मेसोलिथिक काल खण्ड में आकृतियों का आकार अपेक्षाकृत कुछ छोटा हो गया
है और इसमें जानवरों के अलावा मानव आकृतियों के चित्र भी हैं ! इनमें शिकार के
दृश्य व शिकार में इस्तेमाल किये जाने वाले हथियार जैसे धारदार बरछी, तीर कमान,
नुकीली छड़ियां आदि को कुशलता के साथ उकेरा गया है ! इस काल खण्ड के चित्रों में सामाजिकता
की ओर मानव के अग्रसर होने के साक्ष्य स्वरूप, सामूहिक नृत्य, मोर व अन्य पक्षी,
माँ व बच्चे, गर्भवती स्त्री व शिकार किये गये जानवर को लेकर आते हुए मानव के
चित्र शैलाश्रयों की दीवारों पर मिलते हैं !
तीसरे चाल्कोलिथिक काल खण्ड में भी प्राय: भित्तीचित्रों की विषयवस्तु व
आकृतियाँ उसी तरह की थीं जैसी कि मेसोलिथिक पीरियड में मिलती हैं ! इस समय तक उस
समय के मानव का परिचय खेतीबाड़ी से हो चुका था और चित्रों में वस्तु विनिमय के चलन
के दृश्य भी दिखाई देते हैं !
चौथे और पाँचवे प्रागैतिहासिक काल खण्ड में शैल चित्रों में रंगों का भी
शुमार हो गया था ! इस काल खण्ड के चित्र लाल, सफेद और पीले रंगों से सज चुके थे ! यक्ष, वृक्षों की पूजा तथा आकाशीय रथों के चित्र के
माध्यम से तत्कालीन मानव की धार्मिक आस्थाओं एवँ विश्वासों के साक्ष्य भी बखूबी
मिलते हैं ! घोड़े पर सवार आदमी तथा चोंगे की तरह कपडे पहने हुए स्त्रियों की
आकृतियाँ मानव के सभ्यता की ओर अग्रसर होते चरणों के दस्तावेज़ हैं !
छठे व सातवें मध्ययुगीन काल खण्ड के चित्रों में अधिक महीन चित्रकारी के
प्रमाण मिलते हैं ! इन चित्रों के माध्यम से किसी घटना या दृश्य को समझाने का
प्रयास किया गया है ! ये योजनाबद्ध, ज्यामितीय तथा आनुपातिक दृष्टि से उकेरे हुए
बहुत ही उत्कृष्ट चित्र हैं ! भीमबैठका में एक चट्टान का नाम ज़ू रॉक है ! इस पर बाघ, हाथी, भैंसा, साम्भर व
हिरन के चित्र अंकित हैं ! अन्य रॉक पर साँप और मोर, सूर्य तथा हिरन के चित्र
उकेरे गये हैं ! एक दूसरे की कमर में हाथ डाले हुए सामूहिक नृत्य के चित्र बहुत ही
आकर्षक एवँ मनोरम हैं ! हाथों में ढाल और बरछे लिये हुए शिकार की तलाश में निकले
घुड़सवारों के चित्र उस युग के मानव के जीवन की संघर्ष गाथा और उन पर वीरतापूर्वक
काबू पाने की उसकी ज़द्दोज़हद को बखूबी बयान करते हैं ! हज़ारों वर्षों पूर्व कोई आदि
मानव यहाँ शिकार करने के बाद जंगली जानवरों से बच कर अपने फुर्सत के पलों में इन
गुफाओं की दीवारों पर अपने अनुभवों को किस तरह से अभिव्यक्ति दे रहा होगा यह
कल्पना ही एक अकथनीय रोमांच से भर देती है ! हाथ में किसी पेड़ की टहनी की नोक से
उकेरी गयी उसकी ये छोटी बड़ी उल्टी सीधी आकृतियाँ हज़ारों साल बाद वैज्ञानिकों के
लिये शोध का विषय बन जायेंगी इस बारे में तो उसने कभी सोचा भी नहीं होगा ! लेकिन
इतने हज़ारों वर्ष पुरानी अपनी इस धरोहर को देख कर हम अवश्य गर्वित भी हैं और
उल्लसित भी !
भीमबैठका की यह सैर नि:संदेह रूप से बहुत ही आनंदवर्धक, ज्ञानवर्धक व रोचक
रही ! मौसम भी बहुत अच्छा था और समय भी अनुकूल था ! आपको भी अवसर मिले तो यहाँ
ज़रूर जाइयेगा ! निश्चित रूप से वहाँ से लौट कर आप स्वयं को पहले से कहीं अधिक
ऊर्जावान एवँ उत्फुल्ल ही पायेंगे ! यह कहने की आवश्यकता तो नहीं है लेकिन कहीं भी
जाने से पहले यात्रा संबंधी पूरी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध होती है उसका अध्ययन
अवश्य कर लें !
साधना वैद
इस पोस्ट के साथ भीम बैठका की सारी तस्वीरें नहींअटैच हो रही हैं ! शैल चित्रों के लिये मेरी अगली पोस्ट देखें ! मुझे पूरा विश्वास है आपको ज़रूर आनंद आएगा !
Subscribe to:
Posts
(
Atom
)