“तो क्या हुआ
मिन्नी......”
नन्हा समर सुबकती
हुई अपनी छोटी बहन को बड़े प्यार से गोदी में समेटने का प्रयास कर रहा था और बातों
से उसका जी बहलाने की कोशिश कर रहा था,
“तो क्या हुआ मिन्नी
जो नदी में बाढ़ आ गयी और सारा गाँव उसमें बह गया मैं तो हूँ ना तेरे पास तेरा ख़याल
रखने के लिए ! मैं तेरा बहुत ध्यान रखूँगा ! हम दोनों राघव काका के पास चलेंगे ! वो
तो कितना प्यार करते हैं हम दोनों से !”
“तो क्या हुआ मिन्नी
जो मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं ! बाबा ने सिखाया था कभी किसीके आगे हाथ मत फैलाना !
मैं राघव काका के चाय के ठेले पे कप धो दिया करूँगा और तेरे लिए ब्रेड ले आया
करूँगा ! हम दोनों मिल कर चाय ब्रेड खाया करेंगे ! ठीक है ना ?”
“तो क्या हुआ मिन्नी
जो बाढ़ के संग हमारे माँ, बाबा, घर, सामान सब बह गया ! मुझे अभी भी वो लोरी याद है
जो माँ हम दोनों को सुलाते समय गाया करती थी ! मैं रोज़ रात को तुझे वह लोरी सुनाया
करूँगा और तू सो जायेगी !”
“तो क्या हुआ मिन्नी
जो हमारे पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं ! मैं तुझे स्कूल की क्लास के
बाहर ले जाया करूँगा और तू टीचर जी की आवाज़ सुन कर बाहर से ही सारी कवितायें और
सबक सीख लेना !”
“तो क्या हुआ मिन्नी........”
नन्हा समर अपनी छोटी
बहन को दुनिया की हर वो खुशी देना चाहता था जिसकी वह हकदार थी ! माता-पिता को खोने
के बाद अनायास ही वह बड़ा जो हो गया था !
सबसे विकराल प्रश्न जो
उसके नन्हे से मस्तिष्क को विचलित कर रहा था वह यही था कि इतने बड़े संसार में अपनी
अबोध बहन के साथ वह जीवित कैसे रहेगा !
साधना वैद