घरेलू गैस के छ: सिलेंडर – एक अजीबोगरीब फैसला !
इस
फैसले के पीछे की कहानी जानना चाहेंगे ?
पिछले
दिनों सूचना के अधिकार के तहत यह हकीकत सामने आई कि ऊँचे पदों पर आसीन लोगों और जन
नेताओं द्वारा घरेलू गैस का उपयोग औसत से कहीं अधिक किया जा रहा है जो समझ से परे
है ! पिछले साल में इन वी आई पीज़ को सप्लाई किये गये सिलेंडरों की संख्या पर ज़रा गौर कीजिये !
मायावती
– 91
मुलायम
सिंह यादव – 108
लालू
प्रसाद यादव – 43
रामविलास
पासवान – 45
के.
जी. बालकृष्णन – 60 ( चीफ जस्टिस )
प्रणीत
कौर – 77 ( मिनिस्टर ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स )
हामिद
अंसारी – 170 ( उपराष्ट्रपति )
ऐ.
राजा – 89
नितिन
गडकरी – 35
के.
पी. एस. गिल – 79
सलमान
खुर्शीद – 62
शरद
पवार – 31
सुखबीर
सिंह बादल – 31
सुरेश
कलमाड़ी – 63
मोहन
सिंह – 52 ( रेनबैक्सी वाले )
समीर
जैन – 39 ( बोनेट कोलमैन के )
सुनील
मित्तल – 27 ( भारतीय ग्रुप )
आदि
आदि आदि .....
और
‘मैन ऑफ द मैच’ रहे – नवीन जिंदल – 369
यह
हकीकत देख कर चकरा गया ना आपका भी सर ?
उसके
बाद क्या हुआ ? हर बार की तरह पार्लियामेंट की स्टैन्डिंग कमेटी गठित की गयी जिसने
सिफारिश की कि छ: लाख प्रतिवर्ष से अधिक आय वाले आम नागरिक, एम पी, एम एल ए व संवैधानिक
पदों पर बैठे विशेष व्यक्तियों को प्रतिवर्ष सिर्फ छ: सिलेंडर ही रियायती दरों पर
दिये जाएँ बाकी लोगों को आज के नियम के अनुसार इक्कीस दिन में एक के हिसाब से साल
के १८ सिलेंडर दिये जाएँ ! लेकिन आम जनता के साथ होता क्या है आप जानते हैं ना ? इक्कीस दिन के बाद तो गैस बुक की जाती है उसके बाद लगभग 10 - 12 दिन के बाद भी यदि गैस सप्लाई कर दी जाये तो इंसान खुद को खुशकिस्मत समझता है ! बहुत पूछने पर एक रटा रटाया जुमला हवा में उछाल दिया जाता है कि "सप्लाई ही नहीं आ रही है कंपनी से तो हम क्या कर सकते हैं !" हाँ ब्लैक में यही सिलेंडर यथेष्ट मिल जाते हैं ! तो देखा आपने आम जनता के लिये कहने भर को १८ सिलेंडर सालाना का प्रावधान है जबकि वास्तविकता में मिलते तो उसे केवल ९ – १० सिलेंडर ही हैं !
पर
देखिये ना इतना बड़ा देश, इतने सारे काम और इतने वयोवृद्ध नेता ! कहाँ से इतनी
ऊर्जा लायें कि पूरे देश में किसको देना है और किसको नहीं देना है इसकी लिस्ट बना
सकें और सिलेंडरों के दुरुपयोग को रोक पायें ! और भी तो ज़रूरी काम हैं जैसे अपनी
कुर्सी बचाना, घोटालों पर पर्दा डालना और प्रतिद्वंदियों की टाँग खींचना इत्यादि !
तो इस सबका उन्होंने आसान तरीका ढूँढ लिया ! उनकी नज़र में आम जनता के सारे लोग बड़े
आदमी हैं और सब अमीर हैं ! जनता मालिक है और वे सेवक ! मालिक का कद और ओहदा तो
हमेशा बड़ा ही होता है और सेवक का छोटा तो कर दिये सबके सिलेंडर छ: ! भली करेंगे
राम !
अब
इस समस्या के हल की तरफ विचार किया जाये ! सरकार के अनुसार उसकी सबसे बड़ी समस्या
है एल पी जी के सिलेंडर पर दी जाने वाली सब्सीडी के कारण बजट पर पड़ने वाला बोझ !
हकीकत यह है कि कुल सप्लाई का आधा ही आम आदमी के पास पहुँचता है ! बाकी आधे ढाबों,
होटलों, कारखानों, हलवाइयों और टैक्सियों, स्कूल वैन्स व बड़े सिलेंडर से निकाल कर
छोटे सिलेंडर भरने वाले धंधों में खप जाता है ! मज़े की बात यह है ये सब
तथाकथित गैर कानूनी रूप से गैस का इस्तेमाल करने वाले लोग एल पी जी को ब्लैक में ही खरीदते हैं !
यानी कि यदि सरकार खुद ब्लैक कर रही होती तो यह धन उसके घाटे की पूरी भरपाई कर
देता ! लेकिन यह धन फिलहाल बिचौलियों की जेबों में जाता है ! बिजिनैस सेन्स कहता
है कि दो किलो और दस किलो के सिलेंडर की एक नयी सप्लाई लाइन चालू की जाये और कैश
एंड कैरी की तर्ज़ पर खुले आम मँहगी दरों पर गैस को बेचा जाये ! उसके ग्राहक वे ही लोग
होंगे जो आज भी ब्लैक में सिलेंडर खरीदते हैं
!
इसी
तरह का प्रयोग दिल्ली में दूध की सप्लाई पर हुआ था ! सरकारी डेयरी से दूध लेना हो
तो चार पैकिट्स माँगने पर तीन ही मिलते थे ! यानी कि पच्चीस प्रतिशत सप्लाई कम
होती थी ! लेकिन वही दूध के पैकिट ब्लैक में अधिक मूल्य पर जितने चाहो उतने मिल
जाते थे ! इस समस्या का यह हल निकाला गया कि दूध की एक मँहगी सरकारी सप्लाई
व्यवस्था शुरू की गयी जिसे मदर डेयरी कहा जाता है ! यहाँ मँहगा दूध खुले आम जितना
चाहो उतना मिलना शुरू हुआ ! जो लोग पहले ब्लैक में मँहगा दूध खरीदते थे वे अब मदर
डेयरी का दूध बिना अपराध बोध के खरीदने लगे ! ब्लैक का पैसा अब सरकारी खजाने में
जाने लगा ! जनता भी खुश सरकार भी खुश ! यही पॉलिसी गैस सिलेंडरों के साथ भी
निश्चित रूप से कामयाब होगी ! लेकिन इस ओर तवज्जो देने की फुर्सत किसे है ! इस समय तो नेताओं का सारा ध्यान जोड़ तोड़ कर सरकार को गिरने से बचाने में और मौके का फ़ायदा उठा अपनी गोट फिट करने में लगा हुआ है !
साधना
वैद