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Monday, February 29, 2016

आ गया बसंत है


मंगल गाओ 
ऋतुराज पधारे 
द्वार सजाओ ! 

फूलों के बाण
 सकुचाई सी प्रिया 
मुग्ध मदन !

दूर मंज़िल 
उदास मधुमास 
तुम न पास ! 

जता देते हैं 
भ्रमर के सुगीत 
बसंत आया ! 

प्रेम दिवस 
चिरंतन प्रेम को 
बौना बनाए ! 

रंगों का खेल 
खेल रही प्रकृति 
फूलों के संग ! 

आम का बौर 
सुरभित पवन 
कूके कोकिला ! 

अल्पना सजी 
घर आँगन द्वारे 
साँझ सकारे ! 

पुकारे धरा 
आ गया बसंत है 
गाये गगन 
आ गया बसंत है 
आ गया बसंत है !



साधना वैद





Friday, February 26, 2016

घर फूँक तमाशा




     देश में कहीं कुछ हो जाये हमारे मुस्तैद उपद्रवकारी हमेशा बड़े जोश खरोश के साथ हिंसा फैलाने में, तोड़ फोड़ करने में और जन सम्पत्ति को नुक्सान पहुँचाने में सबसे आगे नज़र आते हैं । अब तो इन लोगों ने अपना दायरा और भी बढ़ा लिया है । वियना में कोई दुर्घटना घटे या ऑस्ट्रेलिया में, अमेरिका में कोई हादसा हो या इंग्लैंड में, हमारे ये ‘जाँबाज़’ अपने देश की रेलगाड़ियाँ या बसें जलाने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाते । विरोध प्रकट करने का यह कौन सा तरीका है समझ में नहीं आता । यह तो हद दर्ज़े का पागलपन है ।
     आजकल यह रिवाज़ सा चल पड़ा है कि सड़क पर कोई दुर्घटना हो गयी तो तुरंत रास्ता जाम कर दो । जितने भी वाहन आस पास से गुज़र रहे हों उनको आग के हवाले कर दो फिर चाहे उनका दुर्घटना से कोई लेना देना हो या ना हो और घंटों के लिये धरना प्रदर्शन कर यातायात को बाधित कर दो । किसी अस्पताल में किसी के परिजन की उपचार के दौरान मौत हो गयी तो डॉक्टर के नर्सिंग होम में सारी कीमती मशीनों को चकनाचूर कर दो और डॉक्टर और उसके स्टाफ की जम कर धुनाई कर दो । जनता का यह व्यवहार कुछ विचित्र लगता है । हद तो तब हो जाती है जब अपना आक्रोश प्रदर्शित करने के लिये ये लोग आम जनता की सहूलियत और ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वर्षों के प्रयासों और जद्दोजहद के बाद जैसे तैसे जुटायी गयी बुनियादी सेवाओं को अपनी वहशत का निशाना बनाते हैं ।
आम जनता के मन में यह भ्रांति गहराई तक जड़ें जमाये हुए है कि सारी रेलगाड़ियाँ, बसें या सरकारी इमारतें ‘सरकार’ की हैं जो कोई दूसरे पक्ष का व्यक्ति है और उसके सामान की तोड़ फोड़ करके वे अपना बदला निकाल सकते हैं । हम सभी यह जानते हैं कि हमारा देश अभी पूरी तरह से सुविधा सम्पन्न नहीं हुआ है । अभी भी किसी क्षेत्र की किसी ज़रूरत को पूरा करने के लिये सरकार को एड़ी चोटी का ज़ोर लगाना पड़ता है और उस सुविधा का उपभोग करने से पहले आम जनता को भारी मात्रा में टैक्स देकर धन जुटाने में अपना योगदान करना पड़ता है तब कहीं जाकर दो शहरों को जोड़ने के लिये किसी बस या किसी रेल की व्यवस्था हो पाती है या किसी शहर में बच्चों के लिये स्कूल या मरीज़ों के लिये किसी अस्पताल का निर्माण हो पाता है । लेकिन चन्द वहशी लोगों को उसे फूँक डालने में ज़रा सा भी समय नहीं लगता । अपने जुनून की वजह से वे अन्य तमाम नागरिकों की आवश्यक्ताओं की वस्तुओं को कैसे और किस हक से नुक्सान पहुँचा सकते हैं ? जो लोग इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं क्या वे कभी रेल से या बस से सफर नहीं करते ? अपने परिवार के बच्चों को स्कूलों में पढ़ने के लिये नहीं भेजते या फिर बीमार पड़ जाने पर उन्हें अस्पतालों की सेवाओं की दरकार नहीं होती ? फिर बुनियादी ज़रूरतों की इन सुविधाओं को क्षति पहुँचा कर वे किस तरह से एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभा रहे होते हैं ?

    लोगों तक यह संदेश पहुँचना बहुत ज़रूरी है कि जिस सरकारी सम्पत्ति को वे नुक्सान पहुँचाते हैं वह जनता की सम्पत्ति है और उसके निर्माण के लिये उनकी खुद की भी गाढ़े पसीने की कमाई कर के रूप में जब सरकार के पास पहुँचती है तब ये सुविधायें अस्तित्व में आती हैं । इन के नष्ट हो जाने से पुन: इनकी ज़रूरत का शून्य बन जाता है और उसकी पूर्ति के लिये पुन: अतिरिक्त कर भार और उसके परिणामस्वरूप बढ़ने वाली मँहगाई का दुष्चक्र आरम्भ हो जाता है जिसका खामियाज़ा चन्द लोगों की ग़लतियों की वजह से सभी को भुगतना पड़ता है । यह नादानी कुछ इसी तरह की है कि घर में किसी बच्चे की नयी कमीज़ की छोटी सी माँग पूरी नहीं हुई तो वह अपने कपड़ों की पूरी अलमारी को ही आग के हवाले कर दे ।
इस समस्या के समाधान के लिये ज़रूरी है कि जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के नागरिकों को केवल धरना प्रदर्शन का प्रशिक्षण ही ना दें वरन उनके कर्तव्यों के लिये भी उन्हें जागरूक और सचेत करें । नेता गण खुद भी धरना प्रदर्शन और हिंसा की राजनीति से परहेज़ करें और आम जनता के सामने संयमित और अनुशासित आचरण कर अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि जनता के बीच उद्देश्यपूर्ण संदेश प्रसारित हो । रेडियो और टी.वी. चैनल्स पर नागरिकों को इस दिशा में जागरूक करने के लिये समय समय पर संदेश प्रसारित किये जायें और मौके पर तोड़ फोड़ की असामाजिक गतिविधि में लिप्त पकड़े गये लोगों को कठोर दण्ड दिया जाये उन्हें सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ा ना जाये । जब तक कड़े कदम नहीं उठाये जायेंगे हम इसी तरह पंगु बने हुए इन उपद्रवकारियों के हाथों का खिलौना बने रहेंगे ।

साधना वैद

Tuesday, February 23, 2016

बातों की पोटली






(१)
काम क्रोध मद लोभ सब, हैं जी के जंजाल
इनके चंगुल जो फँसा, पड़ा काल के गाल !

(२)
परमारथ की राह का, मन्त्र मानिये एक
दुर्व्यसनों का त्याग कर, रखें इरादे नेक ! 

(३)
माया ममता मोह से, रहें सदा जो दूर  
निकट रहें प्रभु के सदा, सुख पायें भरपूर !

(४)
रिश्ते ये अनमोल हैं, मत कीजे अपमान 
तोल मोल कर बोलिये, देकर सबको मान !

(५)
जिसका अंतस प्रेम औ' करुणा का आगार 
मानवता हित है वही, एक बड़ा उपहार !

(६)
प्रभुजी मुझको दीजिये, बस इतना वरदान 
नैन भरें पर पीर से, पर दुख कसकें प्राण !

(७)
हँसते-हँसते पी लिये, हमने ग़म हर बार 
ऐसे ही तर जायेंगे, भवसागर के पार ! 

साधना वैद

Friday, February 19, 2016

"सम्वेदना की नम धरा पर" - आदरणीया बीना शर्मा जी की नज़र से





साधना जी उस व्यक्तित्व का नाम है जो जीवन भर अपनी साधना और साफगोई के लिए जाना जाता है | बात लगभग सात वर्ष पूर्व की है जब लेखिका और उनके ब्लॉग ‘सुधीनामा से मेरा नया-नया परिचय हुआ था | उनके लेखन में एक विचित्र सा आकर्षण  मैंने हमेशा अनुभव किया | अतिशयोक्ति नहीं होगी यदि मैं कहूँ कि उन दिनों मुझे उनकी हर एक रचना एक नए लोक में ले जाती थी |
 और आज जब उनकी रचनाओं के संग्रह की पांडुलिपि मेरे हाथों में है तो मुझे बहुत रोमांच हो रहा है | क्या गजब का लिखती हैं आप | दुनिया का कोई कोना उनकी लेखनी से अछूता नहीं रहा | पहले उनके गद्य विधा में लिखे विचार लोगों के दिलों में जागरूकता लाते थे और उनकी कवितायें तो मानो पाठक को हरी मखमली घास पर ले जाती हैं | जैसा जुझारू उनका व्यक्तित्व है वैसा ही उनका लेखन हजारों  साल के जमे कुहासे को चीर देता है | संयत भाषा में उनका मन अपने को उड़ेलता ही नहीं पाठक को विगलित भी कर देता है |
    पूरी की पूरी जिंदगी १५१ कविताओं में सिमट आई है | आप विषय सूची पर एक निगाह तो डालिए जीवन के सभी रंग उपस्थित हैं |बिटिया’,शुभकामना’,टूटे घरौंदे’, ‘अब और नहीं’,मेरा परिचय’,वेदना की राह पर’,मैं तुम्हारी माँ हूँ’, ‘ममता की छाँव’, ‘मैं वचन देती हूँ माँ’,  ‘पुराने जमाने की माँ’ और ‘गृहणी’ के रूप में पूरी की पूरी कायनात आपके आगे आ जाती है | संघर्ष का परचम लहराती कविताएँ जीवन के लिए वह पाथेय दे जाती हैं जिनसे जीवन मार्ग सुगम हो जाता है | उनकी कवितायेँ आपको केवल स्वप्न लोक में ही नहीं ले जातीं बल्कि जीवन के कठोर सत्य का उद्घाटन कराती हैं | समाज की हर घटना उनकी कविता का वर्ण्य विषय बन जाती है | यह संग्रह तो बहुत पहले प्रकाश में आ जाना चाहिये था पर जब जागो तभी सवेरा |
   कविताओं का यह संकलन वर्तमान पीढ़ी के लिए नया सन्देश है ! दुखों से घबरा कर भागना सहज है पर संघर्ष कर उन्हें अपनी उपलब्धि बना लेना हर किसी के बस का नहीं होता |
 साधना जी का काव्य संकलन बहुत जल्दी पाठकों के हाथ में हो ऐसी मेरी कामना है | अशेष शुभकामनाओं के साथ |  
    बीना शर्मा 
  (प्रोफ़ेसर बीना शर्मा)
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा 
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Sunday, February 14, 2016

दर्द की इबारतें



दर्द की
टेढ़ी मेढ़ी इबारतें
वक्त के सीने पर
सुर्ख हर्फों में
हर रोज़ उकेरती हूँ !
एक बार तो तुम
मुड़ कर देखो
मैं किस तरह
हर रोज़
जी जी कर मरती
और मर मर कर जीती हूँ !
मुँदी पलकों तले
सुहाने से सपनों की
सुकुमार सी पौध
हर रात रोपती हूँ
और सुबह होते ही
यथार्थ की प्रखर आँच से
जलती झुलसती
उस पौध को
अपने ही हाथों से
उखाड़ फेंकती हूँ !
मुद्दत से जानती हूँ
नींद में देखे हुए
सुहाने सपनों का
हकीकत की दुनिया में
यही हश्र होता है !
दर्द की इबारतों को भी
वक्त के सीने पर
इसी तरह उकेरना होता है
ताकि लंबे समय तक
मैं उन्हें पढ़ कर
दोहराती रहूँ और
यह सबक मेरी
अंतरात्मा पर भी
इतनी अच्छी तरह
खुद जाये कि
मैं उसे कभी
भूल ही न पाऊँ !

साधना वैद 

Thursday, February 11, 2016

नमन माँ शारदे



ऐ हंसवाहिनी
माँ शारदे
दे दो ज्ञान !
सद्मति और संस्कार से
अभिसिंचित करो
हमारे मन प्राण !
गूँजे दिग्दिगंत में
चहुँ ओर
तुम्हारा यश गान !
शरण में आये माँ
उर में धर
तेरा ही ध्यान !
तू ही मान हमारा माँ
तू ही अभिमान !
हर लो तम और
जला दो ज्ञान की
ज्योति अविराम !
दूर कर दो माँ
जन जन का अज्ञान !
चरणों में
शीश नवाऊँ मैं
स्वीकार करो माँ
मेरा प्रणाम !

साधना वैद