दोहा मुक्तक
1
भ्रष्ट आचरण का
लगा, नेताजी को रोग,
फल इनकी करतूत
का, भुगतें बाकी
लोग,
जंगल के इस राज
में खुदगर्जी आबाद,
जनता भूखी
डोलती, नेता छप्पन भोग !
2
रूखी सूखी में कटे, जिनके बीते साल,
सत्ता मिलते ही हुए, कैसे मालामाल,
नेता बनते ही हुए, तेवर बड़े अजीब,
कुर्सी पाते ही चलें, ये शतरंजी चाल !
3
नेताजी ने देश का, क्या कर डाला हाल,
खुद भोगें सुविधा सभी, जनता है बदहाल,
माल सूत कर बढ़ गया, नेता जी का पेट,
घोटालों से बचे तो, पूछें जन का हाल
!
4
रामराज का हो गया, सच में बंटाढार,
नेता मद में चूर हैं, जनता है लाचार,
कौन सुने किससे कहें, मुफलिस की फ़रियाद,
नेता जी करवा रहे, जग में जयजयकार !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद