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Monday, February 28, 2011
मैं खड़ी हूँ आज भी उस मोड़ पर
Monday, February 21, 2011
आये थे तेरे शहर में
आये थे तेरे शहर में मेहमान की तरह,
लौटे हैं तेरे शहर से अनजान की तरह !
सोचा था हर एक फूल से बातें करेंगे हम,
हर फूल था मुझको तेरे हमनाम की तरह !
हर शख्स के चहरे में तुझे ढूँढते थे हम ,
वो हमनवां छिपा था क्यों बेनाम की तरह !
हर रहगुज़र पे चलते रहे इस उम्मीद पे,
यह तो चलेगी साथ में हमराह की तरह !
हर फूल था खामोश, हर एक शख्स अजनबी,
भटका किये हर राह पर गुमनाम की तरह !
अब सोचते हैं क्यों थी तेरी आरजू हमें,
जब तूने भुलाया था बुरे ख्वाब की तरह !
तू खुश रहे अपने फलक में आफताब बन,
हम भी सुकूँ से हैं ज़मीं पे ख़ाक की तरह !
साधना वैद
Friday, February 18, 2011
छज्जू का चौबारा
छज्जू के चौबारे में काव्य पाठ
बहुत दिनों से आप सबके साथ अपने इस सुखद अनुभव को बाँटने के बारे में सोच रही थी लेकिन अन्य भौतिक प्राथमिकताओं के चलते यही काम पिछड़ जाता था ! आज तो आपको 'छज्जू के चौबारे' में लेकर अवश्य जाना है जहाँ कला और साहित्य की निर्मल धारा अविरल प्रवाहित होती है और वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति उस ज्ञान गंगा में गोते लगा कर पूर्णत: निर्मल एवं पवित्र हो जाता है !
पिछले साल जून माह में मैं अपने बेटे के पास अमेरिका गयी थी ! कैलीफोर्निया स्टेट के सेनोज़े शहर में वह रहता है ! सेनोज़े सैनफ्रांसिस्को से लगभग ४० मील दूर है ! यह एक बहुत ही खूबसूरत और प्यारा स्थान है ! यहाँ पर रहने वाले अधिकतर भारतीय सॉफ्टवेयर के फील्ड में कार्यरत हैं ! मैंने जो विशिष्ट बात वहाँ पर नोट की वह यह थी कि सभी एक दूसरे के साथ बहुत प्यार और सहयोग के साथ रहते हैं और एक दूसरे का बहुत ख्याल रखते हैं ! सेनोज़े,
सनी वेल, सैंटाक्लारा, कूपरटीनो, फ्रीमोंट आदि आस पास के छोटे-छोटे टाउन हैं जिनकी सारी व्यवस्थाएं तो अलग हैं लेकिन फिर भी वे एक ही शहर की लोकेलिटी जैसे लगते हैं !
अमेरिका में आम नागरिकों के कितने और क्या अधिकार हैं और वे उनका कितनी अच्छी तरह से सदुपयोग करते हैं अगर यह देखना है तो एक बार अमेरिका जाना होगा और सूक्ष्मता से इसका अध्ययन करना होगा ! विशेष रूप से वृद्ध लोगों का कितना ध्यान रखा जाता है और उनको कितनी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं इसके बारे में जान कर सभी चकित रह जायेंगे ! सीनियर सिटीजंस के लिये वहाँ हर टाउन में चंद क्लब बनाए जाते हैं जिनमें उस एरिया के बुज़ुर्ग व्यक्तियों को लगभग ना के बराबर धन लेकर सदस्य बनाया जाता है ! ये सभी सदस्य हर रोज दिन में ११ बजे से २-३ बजे तक एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और साथ में बैठ कर एक दूसरे के साथ सुख दुःख बाँटते हैं और अन्य कई तरह की गतिविधियों में संलग्न रहते हैं ! किसी दिन सब मिल कर पिकनिक पर जाते हैं , किसी दिन योग की क्लासेज लगती हैं, किसी दिन पिक्चर का कार्यक्रम होता है तो किसी दिन साहित्यिक गतिविधि की सरगर्मी दिखाई देती है ! कूपर्टीनो के सीनियर सिटीजंस के क्लब में हर बुधवार के दिन 'छज्जू का चौबारा' सजाया जाता है जिसमें सभी सदस्य भाग लेते हैं ! कोई कहानी तो कोई कविता, कोई गीत तो कोई संस्मरण, कोई किसी गंभीर विषय पर भाषण तो कोई जोक्स सुना कर सबका मनोरंजन करता है ! वहाँ जाकर तीन चार घण्टे कैसे बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता ! सभी सदस्य बाद में एक साथ लंच लेकर अपने घर को प्रस्थान करते हैं जो उन्हें बहुत ही नॉमीनल रेट्स पर मुहैया कराया जाता है ! जो सदस्य दूर से आते हैं उन्हें लाने व घर तक छोडने के लिये कन्वेयांस की व्यवस्था भी होती है !
इस क्लब में मुझे मेरे बेटे के मित्र आनंद की मम्मी श्रीमती राजलक्ष्मी ने बड़े प्यार के साथ आमंत्रित किया था ! मैं उनके आग्रह पर वहाँ गयी तो थी लेकिन मन में बहुत घबराहट और दुविधा सी थी कि मैं तो किसीसे भी परिचित नहीं हूँ कैसे सबके साथ समय बिताऊँगी ! क्योंकि इस कार्यक्रम में केवल सीनियर्स ही भाग ले सकते हैं इसलिए मेरे बेटे या बहू कविता में से कोई भी वहाँ मेरे साथ रुक नहीं सकता था ! कविता मुझे उस क्लब में छोड़ कर चली गयी थी ! राजलक्ष्मी जी से भी यह मेरी पहली मुलाक़ात ही थी ! मुझे यही चिंता हो रही थी कि मैं उन्हें पहचानूंगी कैसे ! लेकिन वहाँ पहुँच कर पल भर में ही मेरी सारी चिंता काफूर हो गयी थी ! कविता ने शायद उन्हें कॉल करके बता दिया था कि मैं वहाँ पहुँच गयी हूँ और राजलक्ष्मी जी फ़ौरन मुझे रिसीव करने बाहर आ गयी थीं ! उन्होंने सबसे मेरा परिचय करवाया ! फिर तो जिस प्यार और जोश के साथ वहाँ सबने मेरा स्वागत किया वह अनुभव मैं जीवन भर भूल नहीं पाऊँगी ! "छज्जू के चौबारे' में सब एक से बढ़ कर एक अपनी रचनाएं सुना रहे थे ! साथ ही चाय कॉफी के दौर चल रहे थे ! बीच में ही जाकर राजलक्ष्मी ने मेरा नाम अनाउंस करवा दिया ! मुझे स्टेज पर बुला कर कविता सुनाने का अनुरोध किया गया ! मुझे इस तरह कवि गोष्ठियों में काव्य पाठ करने का कोई अनुभव नहीं है लेकिन उस दिन बच निकलने की कोई राह दिखाई नहीं दे रही थी ! अंतत: मैंने अपनी दो कवितायें सुनाईं ! जिन्हें सबने बहुत सराहा और पसंद किया ! लगातार देर तक तालियाँ बजती रहीं ! वह पल मेरे जीवन का सबसे रोमांचकारी पल था ! उस दिन उस क्लब में जाना मेरे लिये बहुत ही सुखद अनुभव था ! मैं यही देख रही थी कि यहाँ विदेशी धरती पर भी ये सारे वृद्ध जन कितने खुश हैं शायद इसलिए कि इन्हें अपनी इच्छानुसार जीने के भरपूर अवसर मिल रहे हैं ! इनका अपना अस्तित्व है, अपनी पहचान है, अपनी मर्जी है और ये अपने मन के मुताबिक़ स्वच्छंदता से अपना जीवन जीने के लिये सक्षम हैं ! हमारे देश में हम अपने बुजुर्गों के लिये ऐसी सस्थाएं क्यों नहीं बना सकते जहाँ उन्हें भी घुटन भरी ज़िंदगी से बाहर निकलकर खुली हवा में साँस लेने का अवसर मिल सके और वे भी अपनी कलात्मक अभिरुचियों को निखार सकें !
साधना वैद
Tuesday, February 15, 2011
कल रात ख्वाब में
मैं तुम्हारे घर के कितने पास
पहुँच गयी थी !
तुम्हारी नींद ना टूटे इसलिये
मैंने दूर से ही तुम्हारे घर के
बंद दरवाज़े को
अपनी नज़रों से सहलाया था
और चुपके से
अपनी भीगी पलकों की नोक से
उस पर अपना नाम उकेर दिया था !
सुबह को जब तुमने दरवाजा खोला होगा
तो उसे पढ़ तो लिया था ना ?
तुम्हारे घर की बंद खिड़की के बाहर
मैंने अपने आँचल में बंधे
खूबसूरत यादों के सारे के सारे पुष्पहार
बहुत आहिस्ता से नीचे रख दिये थे !
सुबह उठ कर ताज़ी हवा के लिये
जब तुमने खिड़की खोली होगी
तो उनकी खुशबू से तुम्हारे
आस पास की फिजां
महक तो उठी थी ना ?
तुम्हारे घर के सामने के दरख़्त की
सबसे ऊँची शाख पर
अपने मन में सालों से घुटती एक
लंबी सी सुबकी को
मैं चुपके से टाँग आई थी
इस उम्मीद से कि कभी
पतझड़ के मौसम में
तेज़ हवा के साथ
उस दरख़्त के पत्ते उड़ कर
तुम्हारे आँगन में आकर गिरें तो
उनके साथ वह सुबकी भी
तुम्हारी झोली में जा गिरे !
तुम अपने बगीचे की क्यारी में
पौधे रोपने के लिये जब
मिट्टी तैयार करोगे तो
तुम वहाँ मेरे आँसुओं की नमी
ज़रूर महसूस कर पाओगे
शायद मेरे आँसुओं से सींचे जाने से
तुम्हारे बाग के फूल और स्वस्थ,
और सुरभित, और सुन्दर हो जायें !
अपने मन में उठती भावनाओं को
गीतों में ढाल कर मैंने
खामोशी के स्वरों में
मन ही मन दोहरा लिया था !
कहीं मेरी आवाज़ से, मेरी आहट से
तुम्हारी नींद ना टूट जाये
मैं चुपचाप दबे पाँव वापिस लौट आई थी !
मेरे वो सारे गीत सितारे बन के
आसमान में चमक रहे हैं
तुम जब आसमान में देखोगे
तो हर तारा रुँधे स्वर में
तुमसे मेरी ही बात करेगा
तुम उन बातों को समझ तो पाओगे ना ?
साधना वैद
Wednesday, February 9, 2011
तम्हें न्याय मिलना चाहिए आरुषी
अन्य कई सबूतों के अलावा किसीने भी इस तथ्य पर शायद गौर करने की ज़रूरत नहीं समझी कि आरुषी का अंतिम संस्कार आनन फानन में क्यों कर दिया गया ! अंतिम संस्कार के बाद फूल चुनने ( अस्थि संचयन ) की प्रक्रिया प्राय: तीसरे दिन की जाती है लेकिन आरुषी के केस में यह क्रिया अंतिम संस्कार के बाद उसी दिन देर रात को ही कर दी गयी और तलवार दंपत्ति उसी रात अस्थि विसर्जन के लिये हरिद्वार चले गये ! क्या यह जल्दबाजी मन में संदेह नहीं जगाती ? आम नागरिकों को ये सभी सूचनाएं समाचार पत्रों या टी वी के द्वारा उपलब्ध होती रही हैं ! कोई आश्चर्य नहीं कि अस्थि विसर्जन के साथ ही ह्त्या के लिये उपयोग में लाये गये हथियारों का भी गंगा में विसर्जन कर दिया गया हो ! बाकी सारे परिस्थितिजन्य साक्ष्य तो विचाराधीन हैं ही ! इतने सारे सबूतों के बाद भी एक मासूम को न्याय नहीं मिल पाता तो धिक्कार है ऐसी न्याय व्यवस्था पर ! समाज का हर वर्ग सांस रोके इस हादसे की जाँच प्रक्रिया पर नज़र गढ़ाए बैठा है ! केस को बेवजह उलझाया गया है और सबूतों से छेड़छाड़ करने के लिये पर्याप्त समय दिया गया है ! लेकिन अब उम्मीद जगी है कि शायद उस मासूम बच्ची को न्याय मिल जाये जो बेवजह किसीकी क्षुद्र एवं विकृत मानसिकता का शिकार हो गयी ! तुम्हें न्याय मिलेगा आरुषी तुम्हें न्याय मिलना ही चाहिए !
साधना वैद
Monday, February 7, 2011
मुझे मत पुकारो
उजागर करने के लिये
तेरी यादों की प्रखर ज्वाला को
मन के हर कोने में
प्रज्वलित किया था ,
ये गीली लकड़ियों की कसैली,
सीली-सीली सी आग
कैसे मेरे मन में घुट गयी है
जिसने मेरी आँखें कड़वे
धुँए से भर दी हैं !
मैंने तो मंज़िल तक जाने के लिये
हर फूल, हर पत्ती,
हर शाख, हर पंछी ,
यहाँ तक कि उस दिशा से
आने वाले हवा के हर झोंके से
तेरी रहगुज़र का पता पूछा था ,
लेकिन ना जाने क्यों तब
सबके होंठ सिले हुए थे !
अब जब मुझे इस कड़वे,
कसैले धुँए को झेलने की ,
अनजाने, अनचीन्हे लंबे रास्तों
पर नितांत एकाकी चलने की
और खुद से ही अपने दुःख दर्द
बाँटने की आदत हो गयी है
तो अब तुम पीछे से
मुझे मत पुकारो !
साधना वैद
Wednesday, February 2, 2011
रहनुमां
जब-जब मैंने ज़माने के साथ
सुखों की राह पर कदम दर कदम
संग चलने की कोशिश की है
पता नहीं कहाँ से दुःख पीछे से आकर
मेरा आँचल पकड़ मुझे रोक लेते हैं
और बड़ी हिफाज़त से मुझे
सात तालों में बंद कर
पहरे पर बैठ जाते हैं कि कहीं
किसी सुख की कुदृष्टि मुझ पर
भूले से भी ना पड़ जाये !
जब-जब दर्द की सख्त गिरफ्त से
अपनी उँगली छुड़ा कर
मैंने आगे बढ़ना चाहा है
वह एक ज़िम्मेदार रहनुमां की तरह
मुझे और कस के थाम लेता है
ठीक वैसे ही जैसे मेले की भीड़ में
किसी नन्हें नादान बालक का हाथ
उसका पिता और कस कर पकड़ लेता है
कि बच्चा कहीं उसकी गिरफ्त से छूट न जाये !
जब-जब सुरों में ओज भर कर
मन में ढेर सारी उमंग को
अपने आँचल में बाँध
मैंने प्यार के गीत
गुनगुनाने की कोशिश की है
मेरी सारी हमजोलियाँ
स्मृति, व्यथा, वेदना,
दुविधा, कुंठा, निराशा,
विरक्ति, पीड़ा, हताशा
अपने-अपने साज़ लेकर आ जुटती हैं
मेरे सुर में सुर मिलाने के लिये
और प्यार के गीत कब हार के गीतों में
तब्दील हो जाते हैं
पता ही नहीं चलता !
जब-जब सुरमई शामों में
अपने चहरे को उल्लास और उत्साह के
प्रसाधनों से सजा कर
मैं खुशियों की सितारों जड़ी
जर्क वर्क चमचमाती साड़ी में सजी
अपना चाँद देखने छत पर जाती हूँ
ना जाने कैसे तारों की आँखों से बरसी
आँसुओं की हल्की सी बौछार से
मेरा सारा मेकअप उतर जाता है और
सलमे सितारे जड़ी मेरी चमचमाती साड़ी
पता नहीं कैसे उदासी की
बदरंग जर्जर ओढ़नी बन जाती है
जो मेरे जिस्म को हर तरफ से
बड़ी सावधानी से लपेट कर ढँक लेती है !
साधना वैद