इन दिनों टी वी पर अनेकों चैनल्स चल रहे हैं
और हर चैनल पर अनेकों धारावाहिक, रीयलिटी शोज़ और कॉमेडी सीरियल्स चल रहे हैं जो
मनोरंजन के नाम पर निम्न स्तरीय भाषा, अश्लील और फूहड़ हास्य तथा घटिया विचारों के
वाहक बन अपसंस्कृति को परोसने में संलग्न हैं ! आश्चर्य इस बात का है कि इस तरह के
स्तरहीन कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए हरी झंडी कौन दिखाता है जबकि यह सर्वमान्य
सत्य है कि भारतीय समाज में एक टी वी ही पारिवारिक मनोरंजन का इकलौता माध्यम है और परिवार में हर
उम्र के सदस्य होते हैं जो प्राय: ऐसे कार्यक्रमों के प्रसारण के समय एक साथ एक कमरे में
बैठने पर असहज महसूस करने लगते हैं !
टी वी धारावाहिकों की भाषा बहुत ही आपत्तिजनक
होती जा रही है ! यथार्थ के नाम पर आजकल संवादों में हर तरह की गालियों का जी भर कर प्रयोग
किया जाता है ! आजकल कलर्स पर एक धारावाहिक चल रहा है जिसमें दो स्त्रियाँ
जातिसूचक संबोधनों के साथ चीख-चीख कर एक दूसरे को खूब जली कटी सुनाती हैं ! आरम्भ
होने से पहले ही इस धारावाहिक के विज्ञापन में कई दिनों तक इन्हीं संवादों को इतना
दोहराया गया कि धारावाहिक देखने की इच्छा ही खत्म हो गयी ! चलिये यह मान भी लें कि
कहानी का पात्र समाज के जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है वह वर्ग ऐसी ही भाषा का
प्रयोग करता है तो क्या इस घटिया चलन को रोकना हमारी प्राथमिकता नहीं होनी चाहिये
?
कहानी तक तो बात फिर भी हजम की जा सकती है हद तो तब हो जाती है जब अत्यंत माननीय
माने जाने वाले प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय सेलीब्रिटीज़ इस तरह की भाषा का अनुमोदन करते
दिखाई देते हैं ! कुछ समय पूर्व प्रसारित नृत्य के एक रीयलिटी शो के एक माननीय जज
कलाकारों की सर्वोत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये अपनी प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार देते
थे, ‘यह आपकी बहुत ही बदतमीज़ परफॉर्मेंस थी !’ बताइये किसीकी तारीफ़ करने का भला यह
कौन सा अंदाज़ हुआ ! टी वी से गोंद की तरह चिपके रहने वाले नादान बच्चे तो यही
सीखेंगे कि जब टी वी पर बड़े-बड़े लोग इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं तो इसमें
कोई ग़लत बात कैसे हो सकती है !
एक अन्य बात जो मुझे बहुत अखरती है कि हास्य
के नाम पर इन दिनों पुरुष कलाकार स्त्रियों की वेशभूषा पहन कर अभिनय करने के लिये
आ जाते हैं और घटियापन एवं अश्लीलता की सारी हदें पार कर जाते हैं ! कार्यक्रम में
साक्षात्कार के लिये आये हुए मेहमान कलाकार और दर्शक सभी जानते हैं कि स्त्री के
वेश में ये पुरुष कलाकार हैं इसलिए इन कलाकारों को तो जैसे पूरी तरह से फ्लर्ट करने
की छूट ही मिल जाती है ! ये कार्यक्रम इतने स्तरहीन एवं असहनीय हो जाते हैं कि
जैसे ही स्टेज पर इनका आगमन होता है तुरंत ही टी वी स्विच ऑफ कर देना ही उचित लगता
है ! अफ़सोस होता है कि हमारा सेन्स ऑफ ह्यूमर इतना खराब हो चुका है कि हम बिना कोई
आवाज़ उठाये इतने स्तरहीन कार्यक्रम झेले जाते हैं और समाज पर होने वाले इसके
नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिये कोई कदम नहीं उठाते !
समाज में कोई भी संदेश प्रसारित करने के लिये
टी वी एक बहुत ही सशक्त माध्यम है ! यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग समाज
में जागरूकता, चेतना एवं उत्थान के प्रचार प्रसार के लिये करते हैं या फिर मनोरंजन
की काली पट्टी आँखों पर बाँध समाज में अपसंस्कृति फैलाने के लिये करते हैं ! यह
नहीं भूलना चाहिये कि अधिकांश परिवारों में मनोरंजन का एक मात्र साधन यह टी वी ही
है इसलिए इसमें प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की गुणवत्ता का ध्यान रखना हमारी
सर्वोपरि प्राथमिकता होनी चाहिये ! सूचना और प्रसारण मंत्रालय को भी इस ओर ठोस कदम
उठाने की आवश्यकता है कि जिन कार्यक्रमों को प्रसारण की अनुमति मिल रही है वे किस
स्तर के हैं और उनमें कितनी रचनात्मकता है ! केवल बड़े-बड़े प्रोडक्शन हाउसेज़ के नाम
से प्रभावित होना आवश्यक नहीं होता ! कार्यक्रम
कितना उच्च स्तरीय है और समाज के हित में है या नहीं यह सुनिश्चित करना अधिक आवश्यक हो जाता है !
आशा है आप भी मेरी बात से अवश्य ही सहमत होंगे !
साधना वैद