कोरोना महामारी क्या आई गाँवों से रोज़गार की
तलाश में आये मजदूरों के पैरों के नीचे से ज़मीन और सर के ऊपर से छत ही छिन गयी !
कारखानों में ताले पड़ गए ! रहने का कोई ठौर ठिकाना न रहा और पेट की भूख मिटाने के
लिए जब अंटी में पैसे भी बाकी न रहे तो दीनू ने सोचा चलो गाँव ही चले जाएँ ! उसीके
गाँव के और भी कई मजदूर वापिस गाँव को लौट रहे थे ! सोचा उन्हीं के साथ वह भी निकल
जाएगा ! यहाँ तो बीबी बच्चों के रहने खाने का कोई बंदोबस्त ही नहीं रहा ! गाँव
पहुँच जायेंगे तो पेट भरने की फिकर तो कम से कम नहीं रहेगी और कुछ दिन अम्मा बाबू
के साथ भी रह लेगा ! गाँव में अपने छोटे से खेत में जो थोड़ी बहुत फसल होती वह
परिवार के गुज़ारे के लिए काफी हो जाती थी ! इन दिनों तो फसल की कटाई का काम चल रहा
होगा खेतों में ! बाबू को भी तो लॉक डाउन के चलते काम वाले नहीं मिल रहे होंगे ! कैसे
अकेले सम्हालेंगे सब कुछ ! वह गाँव पहुँच जाएगा तो फसल की कटाई में बाबू की मदद कर
देगा !
दीनू की घरवाली सुरतिया को भी अच्छा लगा यह
विचार लेकिन वह पशोपेश में थी कि दो दो छोटे बच्चों के साथ इतना लंबा सफ़र पैदल
कैसे तय होगा ! फिर यही सोच कर तसल्ली कर ली कि जो सबके साथ होगा वही उनके साथ भी
होगा ! दोनों ने झटपट अपना सारा सामान बाँधा और बच्चों का हाथ थाम गाँव के सफ़र पर
चल दिए ! सात साल का सुरेश उत्साह से भरा दौड़ दौड़ कर आगे चल रहा था लेकिन तीन साल
के गणेश को गोदी में लेकर सुरतिया के लिए जल्दी जल्दी कदम उठाना मुश्किल हो रहा था
! दीनू के पास तो कपडे लत्तों के संदूक के अलावा घर गृहस्थी के ज़रूरी ज़रूरी सामान
का बोझा ही बहुत अधिक था ! कहीं किसीके पास रखने का ठिकाना नहीं था तो साथ ही ले
आये ! एक ख़याल कहीं यह भी था दिल में कि अबकी बार गाँव में ही काम काज खोजने की
कोशिश करेगा दीनू ! शहर में दर ब दर की ठोकरें खाने अब वह नहीं आयेगा !
कई घंटों से चलते चलते वे लोग थकान भूख और
प्यास से बेहाल हो रहे थे ! साथ वाले श्रमिक काफी आगे निकल गए थे ! छोटे बच्चों के
कारण इनकी रफ़्तार धीमी थी ! थोड़ा बहुत चना
चबैना जो साथ लेकर चले थे अब ख़त्म हो चुका था ! पानी की बोतल भी खाली हो चुकी थी !
सुरतिया का थकान से बुरा हाल था ! घिसी पिटी चप्पल की पतली तली धधकती ज़मीन की
गर्मी से ज़रा सा भी बचाव नहीं कर पा रही थी ! उसके पैर जले जा रहे थे ! गणेश थक कर
सो गया था तो और भारी हो गया था ! सुरेश भी दीनू का हाथ थाम गोदी में लेने की
गुहार लगा रहा था ! भूख और प्यास से सबका बुरा हाल था ! लेकिन सब चुपचाप बढ़े जा
रहे थे ! जानते थे कि खाने की पोटली खाली हो चुकी है ! दीनू का मन दुःख से भरा हुआ
था ! सुरतिया निढाल हो चुकी थी ! जब टाँगों ने आगे बढ़ने से बिलकुल इनकार कर दिया
तो वह गणेश को लेकर सड़क किनारे की एक पुलिया पर बैठ गयी !
‘अब और न चल सकत हैं सुरेस के बापू ! कहीं ते
पानी मिल जाए तो पिल्बाय दो ! छोरा को भी मुँह उतर रऔ है !”
दीनू समझ रहा था ! सड़क पर कोई वाहन भी तो आता
जाता दिखाई नहीं दे रहा था ! ना कोई पानी की प्याऊ या हैण्ड पम्प ही दिख रहा था ! कहाँ
से लाये पानी ? उसने खोजी नज़रों से दूर तक निगाह दौड़ाई ! कोई बस्ती आस पास थी शायद
! दूर सड़क से लगा हुआ एक बड़ा सा मकान दिखाई दे रहा था ! कुछ आस बँधी ! कम से कम
पानी तो मिल जाएगा यहाँ !
“नेक सुस्ता ले थोड़ी देर सुरतिया ! बस थोड़ा सा
और चल ले ! देख उतै एक बड़ो सो मकान दिख रऔ है ! वहाँ पानी तो ई मिल जाएगो बच्चन को
!”
सुरतिया ने आस भरी नज़रों से मकान की ओर देखा और
हिम्मत बाँध कर उठ खड़ी हुई ! मन में कहीं उम्मीद बँधी बड़े लोगों का घर दीखता है शायद
कुछ खाने को भी मिल जाए ! बच्चों ने सुबह बची खुची डबल रोटी के ही दो चार टुकड़े
निगल लिए थे चाय के साथ ! भूख और धूप से चेहरा कैसा कुम्हला गया है ! सुरतिया की
आँखों में पानी आ गया जिसे उसने दीनू की नज़र बचा कर अपनी धोती के पल्लू से सुखा
लिया !
किसी बड़े आदमी की कोठी मालूम पड़ती थी ! बड़ा सा
हरा भरा लॉन था ! गेट के पास एक छोटा सा सर्वेंट क्वार्टर भी दिखाई दे रहा था !
दीनू ने हिम्मत करके गेट का लैच खोल कर अन्दर कदम रखा ! बाहर की भीषण गर्मी से
बचने के लिए शायद सब घरों के अन्दर बंद थे ! दीनू के पीछे पीछे सुरतिया भी अन्दर
चली आई ! धड़कते दिल से दीनू ने दरवाज़े की घंटी दबा दी !
थोड़ी देर में दरवाज़े की बमुश्किल दो इंच की फाँक
खुली और चहरे पर मास्क और आँखों पर सुनहरी फ्रेम का चश्मा चढ़ाए एक अधेड़ महिला ने
बाहर झाँका ! “कौन है ? क्या काम है ?’” फिर दीनू और दीनू के पीछे सुरेश और गणेश
को सम्हालती सुरतिया को देख कर वह एकदम आपे से बाहर हो गयी !
“कौन हो तुम लोग ? अन्दर कैसे आये ? यह वाचमैन
क्या करता रहता है ? कोई भी घर में घुसा चला आता है इसे कुछ पता ही नहीं चलता !
चलो चलो ! पहले तो गेट से बाहर जाओ ! जो कुछ कहना है वहाँ से कहो !”
अकस्मात इस फायरिंग से दीनू और सुरतिया घबरा गए
थे ! दीनू ने बड़ा साहस बटोर कर रिरियाते हुए कहा, “माँजी, छोटे छोटे बच्चा हैं साथ
में ! बड़ी दूर से आये हैं ! बड़ी प्यास लगी है थोड़ा पानी मिल जाता तो बड़ी किरपा
होती !”
महिला माथे पर त्यौरियाँ चढ़ा ज़ोर से दहाड़ी, “राम सिग राम सिंग !“ हाथ में पकड़े हुए फोन से
उसने कोई नंबर मिलाया ! एकदम से आउटहाउस का दरवाज़ा खुला और डंडा हाथ में सम्हाले
वाचमैन भागता हुआ आया !
“आपने बुलाया मेम साब ?“
“क्या करते रहते हो तुम ? कोई भी घुसा चला आ
रहा है घर में तुम्हें कुछ पता ही नहीं चलता ! निकालो बाहर इनको ! अभी सारा घर
सेनीटाईज करवाया था थोड़ी देर पहले ! जाने कहाँ से चले आ रहे हैं पूरा घर सर पर
उठाये ! और सीधे अन्दर तक आ गए ! तुम क्या कर रहे थे ? तुमको कैसे पता नहीं चलता
है कुछ भी ? सब गंदा कर दिया ! हटाओ इन्हें यहाँ से !”
रामसिंग ने दीनू और सुरतिया को बाहर जाने का
इशारा किया !
“सॉरी मेम साब गलती हो गयी ! आप आराम करिए मैं
देखता हूँ इनको !” और दरवाज़ा खटाक से बंद हो गया अन्दर से ! प्यास से बेहाल सुरतिया
की आँखों से आँसू बहने लगे ! सुरेश भी माँ के घुटनों से लिपट कर बिलख पडा ! दीनू
अपमानित सा खडा हुआ था ! इतने बड़े घर की शरण में आया था सोचा था घड़ी दो घड़ी आराम
कर लेंगे बाहर ही बरामदे में फिर चल पड़ेंगे आगे ! धूप कम हो जायेगी तो बच्चों का
जी ठिकाने आ जाएगा ! लेकिन यहाँ तो पानी भी ना मिला वह तो थोड़े बहुत खाने की आस
लगाए था ! उसका चेहरा उतर गया !
राम सिंग से इन लोगों की दुर्दशा देखी नहीं गयी
! वह सबको अपने कमरे में ले गया ! कमरे में पंखा चल रहा था ! इन सबको थोड़ी राहत
मिली लेकिन भूख प्यास थकान और अपमान ने उनकी बोलती बंद कर दी थी !
“कहाँ जा रहे हो इतनी धूप में छोटे छोटे बच्चों
के साथ ?” पानी का जग दीनू की और बढाते हुए राम सिंग ने पूछा ! राम सिंग से जग
लेते हुए दीनू की आँखों में कृतज्ञता छलक उठी ! थैले से गिलास निकाल सबसे पहले
उसने सुरेश को पानी दिया ! फिर सुरतिया की ओर बढ़ाया ! सबसे आखीर में उसने ओक से ही
पानी पी लिया ! गणेश अभी भी बेसुध सो रहा था ! रामसिंग की सहानुभूति ने दीनू को
द्रवित कर दिया ! राम सिंग के सामने उसने अपनी सारी व्यथा कथा उड़ेल दी ! पहले
कोरोना की मार, कारखानों की तालाबंदी, खुद की बेरोज़गारी का आलम और फिर जब रहने और
खाने पीने का भी कोई बंदोबस्त नहीं रहा तो कैसे उसने अपने गाँव लौटने का फैसला
लिया सब कहानी उसे सुना दी !
पानी पीकर जी कुछ शांत हो गया था ! पंखे की हवा
से कुछ शान्ति मिल गयी थी ! उसने उठने का उपक्रम किया ! लेकिन तभी राम सिंग ने उसे
रोक लिया,
“अभी रुक जाओ थोड़ी देर ! घंटा दो घंटा आराम कर
लो फिर चले जाना धूप भी उतर जायेगी तब तक !’”
दीनू को बाल बच्चों की भूख की चिंता सता रही थी
! राम सिंग से कैसे कहता यह बात ! लेकिन पंखे की हवा में आँखें तो उसकी भी मुँदी
जा रही थीं !
“नहीं भैया ! बड़ो उपकार तुम्हारो ! पानी मिल गऔ
तो प्रान मिल गए जैसे ! निकल जइहैं धीरे धीरे तो संजा तक कोई न कोई ठिकाने पहुँच
ही जइहैं ! चल सुरतिया ! ले अबकी तू ये
संदूक धर ले मूड़ पे गनेसवा को मैं ले लउंगो !”
“अरे ठहरो भाई !” रामसिंग ने उसे प्यार के साथ
कंधे से पकड़ कर बिठा दिया ! फिर दूसरे कमरे से एक थाली में जो कुछ भी खाने पीने का
सामान उसकी रसोई में रखा हुआ था वह सब उठा लाया !
“अकेला हूँ यहाँ कोई बनाने खिलाने वाला नहीं है
! वरना तुम्हें भूखा नहीं जाने देता ! जो कुछ है वह बच्चों को खिला दो ! अच्छा हुआ
आज केले बेचने वाला आ गया तो ले लिए थे मैंने ! कभी कुछ बनाने का मन ना हो तो केले
से बड़ा सहारा हो जाता है !“ रामसिंग ने हँसते हुए कहा ! अब तक दीनू भी नॉर्मल होता
जा रहा था ! थाली में ६-७ केले, एक बड़ी ब्रेड, एक अचार की शीशी और उबले आलू की
सूखी सब्जी रखी हुई थी ! पोलीथीन की एक थैली में कुछ मीठे बिस्किट भी थे ! दीनू
संकुचित हो गया !
“भैया, ऐसो लगत है आप तो सबई उठा लाये चौका से
हमरे काजे ! फिर आप का खाई हो संजा को ?”
“अरे तुम इसकी फिकर ना करो ! हम तो यहीं रहते
हैं हम सब इंतजाम कर लेंगे ! पहले तुम लोग खा लो ! मैं देखता हूँ कुछ और मिल जाए
तो !”
“अरे नहीं भैया ! जे तो भोत है हम सबके काजे !
आप बैठो अब ! हुई जईहै सबको काम इसीमें !” शरमाते सकुचाते सबने भर पेट खाना खा
लिया ! सुरतिया खाना खाने के बाद एक कोने में लुढ़क गयी थी ! दीनू राम सिंग के साथ
अपने सुख दुःख बाँट रहा था ! सुरेश गणेश के साथ मस्ती कर रहा था ! राम सिंग को
अपने कमरे में होने वाली यह रौनक अच्छी लग रही थी कि उसके फोन की घंटी घनघना उठी !
“जी मेम साब आया अभी !”
मालकिन का फोन आ गया था ! दरवाज़ा खुलते ही
सुरेश ने भी बाहर दौड़ लगा दी ! मेम साहब की दहाड़ फिर सुनाई दी !
“राम सिंग, ये भिखमंगे यहाँ क्या कर रहे हैं !
गये नहीं अभी तक ? क्या करते रहते हो तुम ? कोई काम नहीं होता तुमसे ठीक से !”
दीनू का कलेजा काँप गया कि तभी राम सिंग की
आवाज़ आई !
“मेम साब ! हमारी शरण में आये थे तो ऐसे कैसे
भगा देता ! प्यासे को पानी और भूखे को रोटी ना दो तो अगले कई जन्मों तक भगवान्
हमें भी भूखा प्यासा रखता है धरती पर ऐसा शास्त्रों में लिखा है ! एक बार कथा
सुनाते वक्त पंडित जी ने बताया था गाँव में !”
दीनू ने अपनी रिसती हुई आँखों पर गमछा रख लिया
था !
चित्र - गूगल से साभार
साधना वैद