मिथ्या बौद्धिकता,
झूठे अहम और छद्म आभिजात्य
के मुखौटे के पीछे छिपा
तुम्हारा लिजलिजा सा चेहरा
मैंने अब पहचान लिया है
और सच मानो
इस कड़वे सत्य को
स्वीकार कर पाना मेरे लिए
जितना दुष्कर है उतना ही
मर्मान्तक भी है !
मुखौटे के आवरण के बिना
इस लिजलिजे से चहरे को
मैंने एक बार
पहले भी देखा था
पर किसी भी तरह उसे
तुम्हारे लोकरंजित
गरिमामय व्यक्तित्व के साथ
जोड़ नहीं पा रही थी
क्योंकि मैं यह विश्वास
कर ही नहीं कर पा रही थी
कि एक चेहरा तुम्हारा
ऐसा भी हो सकता है !
मेरे लिए तो तब तक
तुम्हारा मुखौटे वाला
चेहरा ही सच था न
और शायद इसीलिये खुद को
छल भी पा रही थी कि
यह लिजलिजा सा चेहरा
तुम्हारा नहीं
किसी और का होगा !
लेकिन अब जब
सारी नग्न सच्चाइयाँ
मेरे सामने उजागर हैं
खुद को छलना मुश्किल है !
और उससे भी मुश्किल है
अपनी इस पराजय को
स्वीकार कर पाना
कि जीवन भर मैंने जिसे
बड़े मान सम्मान,
श्रद्धा और आदर के साथ
अपने अंतर्मन के
सर्वोच्च स्थान पर
स्थापित किया
अपना सबसे बड़ा आदर्श
और पथदर्शक माना
वह सिर्फ और सिर्फ
माटी का एक
गिलगिला सा ढेला है
इससे अधिक कुछ भी नहीं !
झूठे अहम और छद्म आभिजात्य
के मुखौटे के पीछे छिपा
तुम्हारा लिजलिजा सा चेहरा
मैंने अब पहचान लिया है
और सच मानो
इस कड़वे सत्य को
स्वीकार कर पाना मेरे लिए
जितना दुष्कर है उतना ही
मर्मान्तक भी है !
मुखौटे के आवरण के बिना
इस लिजलिजे से चहरे को
मैंने एक बार
पहले भी देखा था
पर किसी भी तरह उसे
तुम्हारे लोकरंजित
गरिमामय व्यक्तित्व के साथ
जोड़ नहीं पा रही थी
क्योंकि मैं यह विश्वास
कर ही नहीं कर पा रही थी
कि एक चेहरा तुम्हारा
ऐसा भी हो सकता है !
मेरे लिए तो तब तक
तुम्हारा मुखौटे वाला
चेहरा ही सच था न
और शायद इसीलिये खुद को
छल भी पा रही थी कि
यह लिजलिजा सा चेहरा
तुम्हारा नहीं
किसी और का होगा !
लेकिन अब जब
सारी नग्न सच्चाइयाँ
मेरे सामने उजागर हैं
खुद को छलना मुश्किल है !
और उससे भी मुश्किल है
अपनी इस पराजय को
स्वीकार कर पाना
कि जीवन भर मैंने जिसे
बड़े मान सम्मान,
श्रद्धा और आदर के साथ
अपने अंतर्मन के
सर्वोच्च स्थान पर
स्थापित किया
अपना सबसे बड़ा आदर्श
और पथदर्शक माना
वह सिर्फ और सिर्फ
माटी का एक
गिलगिला सा ढेला है
इससे अधिक कुछ भी नहीं !
साधना वैद