मेरे अंतस के मनाकाश पर
दूर क्षितज की रक्तिम रेखा पर हर सुबह
स्वर्ण बिंदु से तुम उदित हो जाते हो !
नहीं जानती भोर तुम्हारे उदित होने से होती है
या तुम मेरे जीवन को आलोकित करने के लिए
भोर की प्रतीक्षा करते हो !
किन्तु यह परम सत्य है
तुम्हारा प्रचुर प्रकाश मुझे असीम ऊर्जा से
भर जाता है और मुझे जीवन का हर रंग
भला लगने लगता है !
फिर संध्या होते होते पुन: एक
निस्तेज स्वर्ण बिंदु से तुम
मेरे अन्तस्तल में हिलोरें लेते
अतल सागर की गहराइयों में
निमग्न हो जाते हो !
लेकिन फिर तुरंत ही असंख्य बिन्दुओं से तुम
एक बार फिर मेरे मन के आकाश में
तारे बन कर छा जाते हो और
मैं सितारों भरी उस चूनर को ओढ़ कर
आश्वस्त हो जाती हूँ कि
तुम हो मेरे पास मुझे घेरे हुए
अपनी बाहों के सुरक्षा कवच में और मैं
अपलक देखती रहती हूँ उस चंद्र बिंदु को
और ढूँढती रहती हूँ उसमें तुम्हारी छवि
न जाने क्यों !
साधना वैद
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ReplyDeleteसच में सूर्य का तेज मानव जीवन का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू है। जो हमेशा हम सभी में सदा ही अपने जीवन के प्रति सकारात्मकता के भाव को एक नई ऊर्जा प्रदान कर बनाये रखता है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद पल्लवी जी ! आभार आपका !
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 06 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रिय सखी ! हृदय से आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन
ReplyDeleteबहुत प्यारी और कोमल रचना.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जेनी जी ! आभार आपका !
Deleteउम्दा रचना |खूबसूरत अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया आपका जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteबहुत सुन्दर ,बहुत प्यारी पंक्तियाँ। शुक्रिया और आभार
ReplyDeleteजी ! हृदय से धन्यवाद आपका अजय जी ! बहुत बहुत आभार !
Deleteहार्दिक धन्यवाद महाजन जी ! बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रेखा जी ! हृदय से आपका बहुत बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर ! बहुत देर कर दी हुज़ूर आते आते !
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