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Friday, May 31, 2019

परास्त रवि



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(१)
आततायी सूर्य का, यह अनचीन्हा रूप
लज्जित भिक्षुक सा खड़ा, क्षितिज किनारे भूप !
(२)
बाँध धूप की पोटली, काँधे पर धर मौन 
क्षुब्ध मना रक्ताभ मुख, चला जा रहा कौन !
(३)
बुन कर दिनकर थक गया, धूप छाँह का जाल
साँझ हुई करघा उठा, घर को चला निढाल !
(४)
करना पड़ता सूर्य को, सदा अहर्निश काम 
देश-देश जलता फिरे, बिना किये विश्राम !
(५)
ढूँढ रहा रवि प्रियतमा, गाँव, शहर, वन प्रांत
लौट चला थक हार कर, श्रांत, क्लांत, विभ्रांत !  
(६)
आँखमिचौली खेलता, दिनकर दिन भर साथ
परछाईं भी शाम को, चली छुड़ा कर हाथ !



साधना वैद 



Thursday, May 30, 2019

प्रदूषण घटायें - पर्यावरण बचायें



पैदल चलें
हवा को शुद्ध रखें
रिक्शे में बैठें 

दोस्ती निभाएं 
प्रदूषण घटायें 
साथ में जायें 

दूरियाँ बढ़ीं 
तो वाहन भी बढ़े
धुआँ भी बढ़ा 

कारें ही कारें 
दिखतीं सड़क पे 
हवा में धुआँ 

थोड़ी सी दूरी 
पैदल तय करें 
धुएँँ से बचें 

कोई और क्यों 
प्रदूषण का दोषी 
खुद को देखें 

चन्दा सूरज 
धुएँँ की चादर में 
धुँधले दिखें 

पेड़ लगायें 
प्रदूषण घटायें  
प्राण बचायें 

बीमार हुए 
धूम्रलती के संग 
घर वाले भी 

ग्रहण करें
आपका छोड़ा धुआँ 
होवें बीमार 

करे अस्वस्थ
आपके अपनों को 
आपकी लत 

छोड़ें व्यसन 
बीड़ी सिगरेट का 
चैन से जियें 

हुआ अनर्थ 
आपके व्यसन से 
बच्चा बीमार 



साधना वैद

Sunday, May 26, 2019

छोटी सी दुनिया




थी वो छोटी सी दुनिया
गिने चुने थोड़े से लोग
चिर परिचित से जाने पहचाने चहरे
बेहद प्यारे बेहद अज़ीज़
कोई चन्दा कोई सूरज
तो कोई ध्रुव तारा
जैसे सारा आकाश हमारा
जब दिल भर आता
किसीके भी सामने
दुःख की गगरी खाली कर दी
और अतुल्य प्रेम के अमृत से
लबालब भर लाये उसे
जीवन जीने की एक
नयी शुरुआत करने के लिए
ऐसे थे रिश्ते ऐसा था नेह हमारा
जैसे सारा संसार हमारा !
अब इतनी बड़ी दुनिया
ना ओर न छोर बस शोर ही शोर
आसपास लोगों की भीड़ ही भीड़
जाने कितने गड्ड मड्ड होते चेेहरे
एकदम भावहीन, सपाट और बेगाने 
सब अपरिचित, अनचीन्हे, अनजाने
कोई किसीकी बात नहीं सुनता
अपने ही अंतर के शोर से जैसे
सबके कान सुन्न हो गए हैं !
प्रदूषण की मटियाली आँधी में
न चाँद दिखता है ना सूरज
ना कोई ध्रुव तारा
दूर हो गया हमसे आकाश हमारा
रिश्ते बिखर गए
प्रेम विटप मुरझा गया
अपनी वेदना की शिला
अपने ही गले से बाँधे
डूब रहे हैं हम दुःख की
अतल गहराइयों में
जहाँ कोई नहीं है हमारा
छिन गया है हमसे
वो बेहद प्यारा संसार हमारा !  



चित्र - गूगल से साभार

साधना वैद

Friday, May 24, 2019

चुनावी रेस




सिंहासन तक पहुँचने के लिए
आरम्भ होने ही वाली है रेस !
मैदान में प्रतियोगिता के लिए
हो चुके हैं सारे प्रबंध और
रास्तों पर बिछा दिए गए हैं
कुशल कारीगरों के हाथों बने हुए
बड़े ही खूबसूरत और कीमती खेस !
लक्ष्य तक पहुँचने के लिए  
सारे प्रत्याशी हैं बेकरार
और अपने अपने गलीचों पर खड़े
बेसब्री से कर रहे हैं
रेस के शुरू होने का इंतज़ार !
जिन प्रत्याशियों के चलने के लिए
बिछाए गये हैं ये
एक से बढ़ कर एक
नायाब और शानदार गलीचे
उन प्रत्याशियों की
किस्मत के पहिये बड़ी कारीगरी से
छिपे हैं इन्हीं गलीचों के नीचे !
उन पहियों की डोर है
देश की जनता के हाथ में और
प्रत्याशियों का भाग्य भी
जुड़ा हुआ है उस डोर के साथ में !
सब मंत्रमुग्ध से गलीचों की
सुन्दरता को नैनों से पी रहे हैं
और स्वयं सिंहासनारूढ़ हो  
अपने ही राज्याभिषेक के
स्वप्न को जैसे कल्पना में जी रहे हैं !
रेस आरम्भ हो चुकी है
प्रतिभागी जी जान से ऊपर नीचे
आगे पीछे ताबड़तोड़ दौड़ रहे हैं
लेकिन यह क्या हुआ
लक्ष्य तक तो कुछ ही पहुँच पाए
बाकी धरा पर औंधे मुँह पड़े
गहरी-गहरी साँसें छोड़ रहे हैं !
कुछ ही खुश नसीब थे जो
सुर्ख कालीन पर पैर धरते
सिंहासन तक पहुँच पाए
बाकी के पैरों के नीचे से
जनता ने कालीन खींच लिए
और अब उनकी व्यथा कथा
भई हमसे तो वरनी न जाए  !



साधना वैद

Thursday, May 16, 2019

छाया




जीवन के मरुथल में
अनवरत कड़ी धूप में चलते चलते
तपती सलाखों सी सूर्य रश्मियों को
अपने तन पर सहने की इतनी
आदत हो गयी है कि
अब मुझे किसी छाया की
दरकार नहीं रह गयी है !
वैसे भी सामने फैला पड़ा है
रेत का अनंत असीम समंदर
जिसमें दूर दूर तक न कोई
मरुद्यान दिखाई देता है
ना ही शीतल छाँह का कोई ठौर
कि अपने झुलसे तन को
थोड़ी सी तो राहत दे सकूँ !
तभी तो छाया के लिए  
अपने दुखों की चादर को ही
खूँटों से बाँध कर  
एक वितान बना लिया है मैंने
कि उसके साये में तनिक
विश्राम कर सकूँ !
शीतल जल पीने के लिए  
अपने ही श्रम सीकरों को
एकत्रित कर सुराही में भर लिया है
कि तृषा से चटकते अपने अधरों को
तनिक गीला कर सकूँ !  
और अपने अशक्त रुग्ण पंखों को
अपने ही हाथों से बार बार सहला कर
एक बार फिर पुनर्जीवित कर लिया है
कि वे हौसलों की उड़ान भरने के लिए
एक बार फिर तैयार हो सकें  
क्योंकि मंज़िल अभी दूर है
और सफ़र बहुत लंबा है !



साधना वैद  



Wednesday, May 15, 2019

बदलाव की सुखद बयार




रोज़ सुबह की चाय के साथ समाचार पत्र उठाती हूँ और कुछ ही देर में विरक्त होकर एक तरफ डाल कर किसी और काम में मन रमाने की कोशिश करती हूँ ! रोज़ वही ह्त्या, लूट, छेड़ छाड़, बलात्कार, दुर्घटनाओं और अलग-अलग पार्टियों के छोटे बड़े नेताओं की बेमतलब बयानबाजियों के समाचारों से इतनी ऊब हो गयी है कि अखबार की ओर देखने का भी मन नहीं करता ! लेकिन आज एक इतनी बढ़िया खबर पढ़ने को मिली कि दिल बाग़-बाग़ हो गया ! सोचा आप सबके साथ भी शेयर कर ही लूँ ताकि जो नहीं पढ़ सके वे भी यहाँ पढ़ कर खुश हो जाएँ !
किस्सा कुछ यूँ है कि एक शहर में किसी लड़की के विवाह का आयोजन था ! बरात का भोज चल रहा था ! भोजन के किसी आइटम में नमक मिर्च की मात्रा को लेकर वाद विवाद हो गया ! वाद विवाद ने झगड़े का रूप ले लिया ! मामले ने इतनी तूल पकड़ ली कि मार पीट की नौबत आ गयी और घराती व बराती आपस में भिड़ गए ! ताज्जुब की बात यह है कि आज के युग में भी ऐसे नमूने लोग हमारे समाज में मौजूद हैं जो खाने के किसी आइटम में नमक मिर्च कम या ज्यादह हो जाने पर इस तरह से रंग में भंग करने की हिमाकत भी कर सकते हैं ! खैर मारे गुस्से के तमतमाए लड़की के पिता ने अपनी लड़की ब्याहने से इनकार कर दिया और बारात बिना दुल्हन के वापिस लौटने लगी ! वापिस जाने से पहले दूल्हे ने अपनी होने वाली दुल्हन को फोन किया कि अगर शादी करना चाहती हो तो मेरे साथ चलो ! और लड़की अपने पिता और घर वालों की रजामंदी के खिलाफ बरात के साथ ससुराल चल दी ! बारातियों ने स्थानीय लोगों से मदद माँगी जिसके लिए सब सहर्ष तैयार हो गए और एक मंदिर में जाकर विधि विधान के साथ विवाह का कार्यक्रम संपन्न हुआ ! एक पड़ोसी दम्पत्ति ने कन्यादान किया ! मंदिर में बैंड बाजे शहनाई इत्यादि के अभाव को भी बड़ी खूबसूरती के साथ मंदिर के बाहर बैठे चंद सपेरों ने अपनी बीन बजा कर पूरा कर दिया !
इस रोचक किस्से को पढ़ कर वाकई मन प्रसन्न हो गया ! ज़माने में बदलाव की सुखद बयार चलने लगी है ! लड़कियाँ अब बेजान मेज़ कुर्सी की तरह नहीं रह गयी हैं जिन्हें माता पिता जहाँ चाहें रख दें और जब चाहें हटा दें ! वे अपने फैसले खुद लेने लगी हैं और बात अगर ग़लत हो तो माता पिता का विरोध भी कर सकती हैं ! शाबाश है ऐसी बेटियों को ! आप स्वयं पढ़ें इस समाचार को !
साधना वैद

Sunday, May 12, 2019

माँ



मातृृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 


मीठी सी तान
सुनहरा वितान
  चूमती माथा  

प्रभाती गाती
संसृति को जगाती
हमारी माता

बाँटती सुख
बटोरती है दुःख
 माता हमारी  

चुनती काँटे
बिखेरती है फूल
माता हमारी

प्यार के बोल 
आशीष शारदे का
माता की वाणी

माता की गोदी 
है शैया सर्वोत्तम 
कैसी सुहानी! 


शाश्वत प्रेम 
ममता की मूरत 
मैया हमारी 

देवों की वाणी 
चन्दन सी पावन 
मैया  हमारी 

होना उॠण
तेरी अनुकम्पा से 
कहाँ संभव 

बच्चे हैं तेरे 
आश्रित तुझ पर  
सारा जीवन 




साधना वैद 







Saturday, May 11, 2019

गुलमोहर – मेरा आइना




मेरे सबसे अच्छे दोस्त
मेरे हमदम, मेरे हमराज़,  
मेरे हमनवां, मेरे हमखयाल,
मेरे प्यारे गुलमोहर
हैरान हूँ कि कैसे तुम्हें
मेरे दिल के हर जज़्बात की
खबर हो जाती है
और ना जाने कैसे
मेरे दिल की हर पोशीदा बात
तुम्हारे सुर्ख फूलों की जुबानी
सरे आम हो जाती है !
मृदुल वासंती हवा के
पहले परस के साथ ही
तुम भी पुलकित हो उसी तरह
शर्मा कर लाल हो जाते हो
जैसे नवोढ़ा प्रियतमा की तरह
प्रियतम के प्रथम स्पर्श से
संकुचित हो कभी मैं
सुर्ख हो गयी थी !
मानसिक संताप की बेला में
अंतर में धधकते दावानल के
भीषण ताप को भी तुम्हारे
सुर्ख फूल ही इतनी मुखर
अभिव्यक्ति देते से लगते हैं
कि मुझे यकीन होने लगता है
कि मेरी आहों की आँच
इतनी दूर से भी उन्हें भी
महसूस तो ज़रूर हो रही होगी !   
विरह विदग्ध हृदय की वेदना
की बाढ़ जब अश्रुओं के रूप में
मेरी आँखों से ढलती है
तो तुम्हारे इन्हीं रक्तिम पुष्पों में  
मुझे अपने सूजे हुए
लाल सुर्ख नेत्रों का अक्स  
दिखाई देने लगता है !
सच है प्यारे गुलमोहर
तुम हर तरह से जैसे
मेरा ही आइना हो !
इसीलिये तो तुम्हारे
हर रूप हर रंग में
मुझे अपना ही प्रतिबिम्ब
दिखाई देता है !



साधना वैद  





Friday, May 10, 2019

ज़िंदगी चलती रही


हर जगह, हर मोड़, पर इंसान ठहरा ही रहा,
वक्त की रफ़्तार के संग ज़िंदगी चलती रही ! 

खुशनुमां वो गुलमोहर की धूप छाँही जालियाँ
चाँदनी, चम्पा, चमेली की थिरकती डालियाँ
पात झरते ही रहे हर बार सुख की शाख से
मौसमों की बाँह थामे ज़िंदगी चलती रही !

वन्दना की भैरवी थक मौन होकर रुक गयी ,
अर्चना के दीप की बाती दहक कर चुक गयी ,
पाँखुरी गिरती रहीं मनमोहना के हार की
डोर टूटी हाथ में ले ज़िंदगी चलती रही ! 

खोखले स्वर रह गये और माधुरी चुप हो गयी ,
ज़िंदगी के गीत की पहचान जैसे खो गयी ,
वेदना के भार से अंतर कसकता ही रहा
और टूटी तान सी यह ज़िंदगी चलती रही ! 

चाँद सूरज भाल पर मेरे अँधेरे लिख गये ,
स्वप्न सुंदर नींद में ही तोड़ते दम दिख गये ,
 देवता अभिशाप देके फेर कर मुँह सो गये
दर्द की सौगात देकर ज़िंदगी चलती रही ! 

आत्मा निर्बंध को बंधन नियम का मिल गया ,
पंख टूटी हंसिनी को गगन विस्तृत मिल गया ,
हर कदम पर रूह घायल हो तड़प कर रह गयी
और निस्पृह भाव से बस ज़िंदगी चलती रही !


साधना वैद

Friday, May 3, 2019

मेरी निष्ठा मेरी आराधना




किस तरह बालारुण की  
एक नन्ही सी रश्मि
सागर की अनगिनत लहरों में
प्रतिबिंबित हो उसके पकाश को
हज़ारों गुना विस्तीर्ण कर देती है !
जहाँ तक दृष्टि जाती है
ऐसा प्रतीत होता है मानो  
हर लहर पर हज़ारों सूर्य ही सूर्य
उदित होते जा रहे हैं
जिनका ताप और प्रकाश
हर पल बढ़ता ही जाता है !
जो कदाचित विश्व के कोने-कोने से
अंधकार के अस्तित्व को
मिटा कर ही दम लेने का
   संकल्प धार चुके हैं !  
सारे संसार को ज्योतिर्मय करने वाले
हे भुवन भास्कर  
तुम्हारे इस दिव्य प्रकाश के
असंख्यों वलयों के बीच
एक अभिलाषा लेकर मैं भी खड़ी हूँ
कि सम्पूर्ण रूप से आलोकित
बाह्य जगत के साथ-साथ
मेरे अंतर्मन का अन्धकार भी मिट जाये !
मेरा मन भी आलोकित हो जाये !
हे दिवाकर,
मेरे मन में दृढ़ता से आसन जमाये
इस विकट तिमिर का संहार
तुम कैसे करोगे ?
किस यंत्र से कौन सा छिद्र
तुम मेरे हृदय की ठोस दीवार में करोगे
कि तुम्हारी प्रखर रश्मियाँ
मेरे अंतर्मन के सागर की हर लहर पर
इसी तरह नर्तन कर
हज़ारों सूर्यों का निर्माण कर सकें
और मेरे हृदय में व्याप्त अन्धकार का
समूल नाश हो जाये !
हे दिनकर
संसार में एक अकेली मैं ही नहीं
जो इस अन्धकार में निमग्न है
मुझ जैसे करोड़ों हैं जो प्रति पल
अपने अंतर के अन्धकार से जूझ रहे हैं !
आज तुमसे मेरी यही आराधना है कि
तुम उन सबके मन में भी
ऐसी ज्योति जला दो कि
उनका पथ भी आलोकित होकर
प्रशस्त एवँ सुगम्य हो जाये 
और उन्हें अपना मार्ग 
तलाश करने के लिये
कभी ठोकर न खानी पड़े !
हे ज्योतिरादित्य
आज मेरी निष्ठा, मेरे समर्पण,
मेरी आस्था मेरे विश्वा्स के साथ 
तुम्हारी सामर्थ्य, तुम्हारा पराक्रम,
तुम्हारे अंतस की करुणा
और तुम्हारी दानवीरता 
सभी कसौटी पर कसे हुए हैं 
आज तो तुम्हें स्वयं को 
सिद्ध करना ही होगा मेरे देवाधिदेव !
आज मेरी निष्ठा भी
दाँव पर लगी हुई है !
तथास्तु !



साधना वैद