इकबाल
का एक शेर है –
बर्बाद
गुलिस्तां करने को तो एक ही उल्लू काफी था
हर
शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा !
भारतीय
राजनीति के फलक पर यह शेर इन दिनों बिलकुल सटीक बैठता है ! घोटालों की लंबी
फेहरिस्त में आज एक और नया नाम जुड़ गया है रेल गेट घोटाला ! यू पी ए 2 में तो
घोटालों की बरसात थमने का नाम ही नहीं ले रही है ! हमारे विश्वप्रसिद्ध मौनी बाबा अर्थशास्त्री,
जिनकी ईमानदारी का डंका भी बड़ी ज़ोर से पीटा जाता था, उन्होंने अपने देश को दस सालों में दिवालिया बना
कर विश्व प्रसिद्ध घोटालेबाज और बेईमान देशों की सूची में सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा
दिया !
भ्रष्टाचार
निवारण के सन्दर्भ में बहुत से भ्रम और उम्मीदें अब चकनाचूर हो चुकी हैं ! सोचा था
देश में शिक्षा के प्रसार के बाद जब पढ़े लिखे नेता राजनीति में आयेंगे तो इस दुखी
और दीन हीन देश के आँसू पोंछेंगे और कष्टों को कम करेंगे ! परन्तु हुआ क्या ? जितना
उच्च शिक्षित और प्रोफेशनल नेता उतना ही बड़ा घोटाला ! घोटालों के नाम गिना कर आपका
अमूल्य समय बर्बाद करना नहीं चाहती ! बच्चे-बच्चे की ज़बान से इन दिनों तेज़ाब फिल्म
के ‘एक दो तीन’ वाले गीत की तरह इन घोटालों की गिनती आप सुन सकते हैं ! अफ़सोस इस
बात का है कि हमारे चुने हुए इन ‘अनमोल रत्नों’ ने देश को किस गर्त में पहुँचा
दिया है !
भला हो अपनी मीडिया का और इलेक्ट्रोनिक तकनीक का जिसके माध्यम से सबकी पोल
तो कम से कम अब खुल रही है और जनता के सामने भेड़ का मुखौटा पहन कर आने वाले नेताओं
के भेड़ियों वाले चहरे बेनकाब हो रहे हैं ! यह भी सच है कि अब तो चुनाव भी करीब हैं
! हमको नये नेता चुनने का अवसर मिलेगा लेकिन अच्छे नेता चुनना उतना ही मुश्किल
होगा जितना बासी सब्जियों की ढेर में से छाँट-छाँट कर कम खराब और काम चलाऊ सब्जी
छाँटना ! और मेरे हिसाब से तो सब्जी छाँटना तो फिर भी आसान है क्योंकि वह जैसी है
आपके सामने है ! चुनाव के प्रत्याशियों में से अच्छे प्रत्याशी का चयन करना बहुत
टेढ़ी खीर है क्योंकि किसके मन में क्या है या जीतने के बाद वह किस तरह से गिरगिट की तरह रंग बदलेगा यह अनुमान लगाना और भी
मुश्किल होता है !
अभी
तो गुलिस्तां के हर पेड़ और हर शाख पर रोशनी डाली ही नहीं गयी है ! इस गुलशन को
उजाड़ कर अपने छोटे-छोटे घोंसलों की जगह आलीशान महल बनाने के मंसूबे मन में दबाये ना जाने कितने और उल्लू वहाँ छिपे
बैठे मिल जायेंगे यह कहना मुश्किल है ! जिनके हाथों में हमने में रोशनी करने के लिये
मशाल थमाई थी और इन लुटेरे उल्लुओं को मार भगाने के लिये सारे इंतजाम करके दिये थे
वे या तो नींद में गाफिल हैं या गाँधीजी के बंदरों की तरह तटस्थ भाव से आँख कान और
मुँह बंद किये बैठे हैं ! ना उन्हें कुछ गलत सुनाई देता है, ना दिखाई देता है, ना
ही वे किसीके खिलाफ मुँह खोलने की हिम्मत करते हैं ! वे बस बेमतलब की बयानबाजी कर
रहे हैं या एक दूसरे को देख कर खों-खों कर रहे हैं ! कहेंगे भी कैसे ! जिसके खिलाफ
मुँह खोलेंगे वह ना जाने किस-किस की काली करतूतों का हमराज़ है और डर है कि ना जाने
किस-किस के चेहरों से नकाब उतरने का खतरा सामने आ जाये ! इसीलिये नेताओं ने सोच रखा है कि भला इसी में है
कि चुप्पी साध लो ! ना किसीके लेने में रहो ना देने में ! हमारे मौनी बाबा भी इसी
बात में यकीन रखते हैं कि ---
किस-किस
को याद कीजिये, किस-किस को रोइये,
आराम
बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइये !
साधना
वैद
सच है.. हमारे चुने हुए इन ‘अनमोल रत्नों’ ने देश को किस गर्त में पहुँचा दिया है ! सार्थक लेख..
ReplyDeleteकिस-किस को याद कीजिये, किस-किस को रोइये,
ReplyDeleteआराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइये !
aaj in shabdo ko main bhi likhanaa chahati thi ..... wo kahate hain dil se chaaho to ho jata hai ..... main nahi likhi aap likh din ........shukriya didi .......
किस-किस को याद कीजिये, किस-किस को रोइये,
ReplyDeleteआराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइये !
सही है ..
एक हो तो सजा दी जा सकती है !!
सटीक लेख
ReplyDelete
ReplyDeleteसटीक और सार्थक प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
आज की ब्लॉग बुलेटिन देश सुलग रहा है... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसब अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं ...चाहे कितना भी होशियार रहे जनता लेकिन फिर उल्लू बनती है ....
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति
उल्लू ही उल्लू हैं शाखों पर .........अब अंजामे गुलिस्ता का क्या सोचना !
ReplyDeleteसच ही कहा है
ReplyDeleteकिस किस को याद कीजिए किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज है मुंह ढक कर सोइए |
आप कितनी भी लानत भेजे उनपर कोइ भी असर
नहीं होगा |वे हैं thick skinned .
आशा
उम्दा ही नही बल्कि बहुत उम्दा कथन.
ReplyDeletesamyik lekh.....
ReplyDeleteसम-सामयिक घटनाओं पर बेहद सशक्त आलेख ...
ReplyDeleteसादर
समसामयिक आलेख बहुत सुंदर चित्रण !!
ReplyDelete*हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
Deleteइस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
समसामयिक आलेख बहुत सुंदर चित्रण !!
ReplyDeleteआखिरी शेर सही है ...
ReplyDeleteसमझ नहीं आता क्या होने वाला है देश का ... या ऐसे ही चलने वाला है ...
जब सब भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो मौनी बाबा किस किस से निपटें, किस किस को रखें निकालें.
ReplyDeleteजिस देश को भगवान् भरोसे चलना है , वहां मुंह ढक कर सोना ठीक ही है !
ReplyDeleteसामयिक घटनाओं पर सशक्त आलेख
ReplyDeleteयहीं गलती गालिब बार बार करता गया
ReplyDeleteधूल चहरे पर थी और बार बार आईना साफ करता गया