रंगमंच है
ये समूचा संसार
प्रभु की लीला
करने आये
यहाँ अपना काम
हम सब हैं
उँगलियों से बँधी
कठपुतली
नाचना हमें
उस के इशारों
पे
बन के भली
नाचेंगे हम
जैसे वो नचाएगा
जीवन भर
कभी राजा तो
कभी बन के रानी
कभी नौकर
कभी दुलहा
कभी दुलहन तो
कभी बाराती
कभी सिपाही
कभी तुरही वाला
तो कभी हाथी
हमारा काम
नाचना इशारों
पे
जैसे वो चाहे
उसका काम
नचाना डोरियों
पे
जब जी चाहे
मानते हम
हुकुम मालिक का
सर झुका के
खुश हो जाते
सभी देखने वाले
ताली बजाते
हँसते गाते
लोग चले घर को
खेल ख़तम
साथ ही हुआ
कठपुतली का भी
किस्सा ख़तम
साधना वैद