शीर्षक आपको निश्चित ही अजीब लग रहा होगा लेकिन क्या किया जाए जब दो विशिष्ट प्रकार के अनुभव एक ही दिन एक के बाद एक हो जाएँ तो उन्हें अलग करने की भूल ना ही की जाए तो ही अच्छा है ना ! तो चलिए पहले चलते हैं रोज गार्डन में !
सेनोज़े की एक बेहद खूबसूरत लोकेलिटी में नैगली एवेन्यू स्ट्रीट पर यह रोज गार्डन स्थित है ! जैसे-जैसे उसके पास गाड़ी पहुँच रही थी हवा का हर झोंका और सुरभित और मादक होता जा रहा था ! बहुत ही साफ़ सुथरी जगह ! ना कहीं शोर शराबा ना आइसक्रीम, चना जोर गरम, गोलगप्पे या गुब्बारे वालों का जमघट ना आदमियों की भीड़भाड़ ! लेकिन सड़क पर करीने से कारों की लंबी कतार पार्किंग में लगी हुई थी ! अच्छा भी लग रहा था और आश्चर्य भी हो रहा था ! भारत से अमेरिका आने पर शुरुआती दिनों में ऐसे छोटे-छोटे सुखद शॉक अक्सर लोगों को लगते हैं ! फिर वे जब इस शांत और सौन्दर्यपूर्ण वातावरण को आत्मसात कर उसकी आदत डाल उसमें आनंद खोजने लगते हैं तो भारत लौटने पर उन्हें इससे भी बड़े कई दुखद शॉक लगते हैं जिनके साथ ताल मेल बिठाने में उन्हें अधिक तकलीफ होती है ! खैर ! मैंने यह तय किया है कि तुलना नहीं करूंगी ! हमारा देश फिर हमारा ही देश है ना ! दूसरे के लॉन की हरियाली को देख कर क्या खुश होना !
तो चलिए रोज गार्डन के अंदर चलते हैं ! बेहद सुन्दर और व्यवस्थित ढंग से सुनियोजित हर क्यारी के गुलाब अपने अनुपम सौंदर्य और सौरभ से अपनी और आकर्षित कर रहे थे ! गेट पर छोटे-छोटे गुलाबी गुलाबों की बेल चढ़ाई गयी है जो फूलों से लदी हुई थी ! अंदर प्रवेश करते ही कुछ दूरी पर एक दिलकश पानी का फव्वारा आमंत्रित करता सा बहुत ऊँचाई तक अनवरत पानी की फुहार फेंकने में व्यस्त था ! गार्डन में हर रंग के गुलाबों की अलग-अलग क्यारियाँ हैं ! फूलों का साइज़ देख कर मन मुग्ध हो गया ! सुर्ख लाल, सफ़ेद, पीले, गुलाबी, पीच, नारंगी रंगों के गुलाबों की विस्तृत क्यारियां सामने पसरी हुई थीं और हम सब उनकी सुगंध, उनकी खूबसूरती और उनके आकार को मंत्रमुग्ध से देखे जा रहे थे ! इनके अलावा कई किस्म के शेडेड गुलाबों की वैराइटी भी यहाँ देखने को मिल जाती हैं ! बच्चे भाग-भाग कर यहाँ वहाँ कुलाँचे भरते रहे ! और हम हर फूल, हर क्यारी को कैमरे में कैद करने की कोशिश में सही एंगिल की तलाश में जगह बदलते रहे ! गुलाबों की हज़ारों किस्मों के अलावा बाग में अनेकों प्रकार के फलों के पेड़ हैं जो उस समय फलों से लदे हुए थे ! आडू, खुबानी, नीबू, टैंजरीन आदि प्रमुख हैं ! रोज गार्डन के पीछे की तरफ बहुत विशाल मैदान जैसा है जो करीने से कटी हुई दूब की हरीतिमा से हुल्साया सा लग रहा था ! इसे लोग अक्सर बर्थडे, शादी, विवाह आदि की पार्टीज के लिए भी बुक कर लेते हैं !
रोज गार्डन एक बहुत ही खूबसूरत रिहाइशी इलाके में स्थित है ! यहाँ के सारे मकान विक्टोरियन आर्किटेक्ट के अनुपम उदाहरण हैं ! और यहाँ शहर के अति विशिष्ट और धनाढ्य लोग रहते हैं ! रोज गार्डन की सैर यादगार रही ! बाहर निकलने पर कुछेक वृद्ध शौक़ीन लोग अपने कुत्तों को सैर कराने के लिए सड़क के किनारे बने ख़ूबसूरत फुटपाथ पर टहलते हुए दिखाई दिये ! यह भी एक दिलचस्प नज़ारा था ! ताज्जुब हुआ कि कि कुत्ते कितने अनुशासन के साथ अपने मालिकों के साथ चल रहे थे ! कहीं कोई जोर ज़बरदस्ती या डाँट फटकार की आवाज़ नहीं ! मालिक किसी से बात करने के लिये रुक जाये तो कुत्ता भी शांति से आस पास के नजारों में व्यस्त हो जाता ! कुत्ते के गले में बँधी रस्सी के छोर और मालिक के हाथ में पकडे हुए दूसरे छोर में पर्याप्त ढील होती ! अपने यहाँ भी लोगों को देखा है सडक पर कुत्तों को घुमाते हुए ! पता ही नहीं चलता कि मालिक कुत्ते को घुमा रहा है या कुत्ता मालिक को ! रस्सी से खिंचे हुए बस मालिक जी कुत्ते के पीछे हाँपते-काँपते दौड़ते हुए नज़र आते हैं ! और अगर कहीं सामने कोई दुश्मन दिखाई दे जाये तो मालिक को धूल चटाने में भी कुत्तेजी को कोई एतराज़ नहीं होता !
शहर की सफाई और रख रखाव के बारे में यहाँ के लोग कितने जागरूक और सतर्क हैं इसके कई किस्से मैंने बहू बेटे से सुने थे ! किसी संभावित घटना की प्रतीक्षा में उलझी अपनी उत्सुकता को मन में ही दबाये मेरी नज़रें उन लोगों का ही पीछा कर रही थीं ! कि एक जगह कुत्ते ने अपना काम कर दिया ! सड़क बिलकुल खाली थी ! मैंने कुछ दुष्टानंद के साथ खोजी नज़रें बेटे पर डालीं ! मेरे मन में उठती जिज्ञासा को भाँप कर वह मुस्कुराया, "अभी देखती जाओ !" और जो देखा वह सचमुच अप्रत्याशित था ! वृद्ध सज्जन ने झुक कर हाथ में पकडे हुए थैले में उस गन्दगी को उठाया और स्थान को साफ़ कर दिया ! वाकया सचमुच आँखें खोलने वाला था ! हमारे यहाँ तो शायद कुत्तों को सड़क पर ले जाया ही इसीलिये जाता है कि अपना घर आँगन साफ़ रहे ! सड़क पर कुत्ते ही क्या गाय, भैंस, घोड़े, गधे, बकरी सूअर और भी ना जाने कौन कौन यहाँ तक कि ..........सबकी गंद दिखाई दे जाती है ! ऊप्स ! मैंने तय किया था कि तुलना नहीं करूँगी लेकिन क्या करूँ दिल है कि मानता नहीं ! माना कि हम अमेरिकन्स की तरह धनवान नहीं, माना कि हमारे पास इतने संसाधन और इतना व्यवस्थित परिवेश नहीं है लेकिन क्या अपने साधारण से परिवेश को साफ़ रखने में भी पैसे खर्च होते हैं ? हमारे पास परिकथाओं से सुंदर और मनोहर भवन ना हों चौड़ी-चौड़ी सड़कें ना हों लेकिन जो भी है क्या उसे हम कूड़े कचरे और विभिन्न प्रकार की गन्दगी से बचा कर साफ़ सुथरा नहीं रख सकते ! मेरे ख्याल से व्यवस्थित और स्वच्छ रहने के लिए पैसों की नहीं बल्कि अपनी आदतों को बदलने की ज़रूरत होती है और हमें इस ओर ध्यान देना ही चाहिये ! !
साधना वैद
Followers
Wednesday, June 30, 2010
Saturday, June 26, 2010
मेरे पापा
प्रशांत और श्रेयस
मेरे छोटे से पोते प्रशांत की यह आकांक्षा है कि वह अपने पापा जैसा बनना चाहता है ! उसकी इच्छा को मैंने यहाँ शब्द देने का प्रयास किया है !
दादी मुझको पापा जैसा बनना है !
मेरे पापा कितने अच्छे जब वो घर में आते हैं,
कितने सारे खेल खिलौने, टॉफ़ी बिस्किट लाते हैं,
आते ही गोदी ले लेते मुझसे लाड़ लड़ाते हैं,
मेरी सारी बातें सुन कर कितना खुश हो जाते हैं !
'लव यू बेटा', 'लव यू जानू' पापा से ही सुनना है !
दादी मुझको पापा जैसा बनना है !
मम्मी जब गुस्सा करती हैं उनसे भी भिड़ जाते हैं,
कान पकड़ कर भैया का वो उसको भी धमकाते हैं,
कंधे पर बैठा कर मुझको घर की सैर कराते हैं,
जब भी मेरा मन करता है घोड़ा भी बन जाते हैं !
मेरे पापा सबसे अच्छे सबसे मेरा कहना है
दादी मुझको पापा जैसा बनना है !
होमवर्क की झंझट से पापा ही जान बचाते हैं,
चंदा, तारे, धरती, सागर सबकी बात बताते हैं,
हम सबको मेले ले जाकर झूला खूब झुलाते हैं,
दुनिया भर की सारी बातें वो ही तो बतलाते हैं,
मुझको तो पापा के जैसा ज्ञानवान ही बनना है !
दादी मुझको पापा जैसा बनना है !
पापा जब ऑफिस जाते हैं कितने अच्छे लगते हैं,
उन पर सब कपड़े फबते हैं कितने 'डैशिंग' लगते हैं,
लैप टॉप, मोबाइल लेकर जब गाड़ी में चढ़ते हैं,
मुझको हर हीरो से बढ़ कर अपने पापा लगते हैं,
उनके जैसा और न कोई मुझको वैसा बनना है !
दादी मुझको पापा जैसा बनना है !
प्रशांत की इच्छा !
साधना वैद
Tuesday, June 15, 2010
एक शाम - सांता क्रूज बीच पर
रविवार का दिन था ! और हम लोगों का उस दिन अचानक ही सांता क्रूज बीच पर जाने का प्रोग्राम बन गया ! प्रशांत महासागर का एक बहुत ही प्रसिद्धऔर रंगीन बीच जहां गुज़ारा हर लम्हा न केवल मन मस्तिष्क में मधुर यादों की अमिट छाप अंकित कर गया वरन जीवन की विविधता के अद्भुत नजारों के दर्शन से विस्मित भी कर गया !
कैसी रोमांचकारी शाम थी वह ! दो अथाह सागरों को एक दूसरे के समानांतर मैंने एक साथ हिलोरें लेते हुए देखा था ! एक सागर था प्रशांत महासागर और दूसरा था उससे भी कहीं अधिक उत्ताल तरंगों के साथ ठाठें मारता अत्यंत गतिशील और उत्साह से छलछलाता जन समुदाय का महासागर ! जहां सागर की उतावली लहरें पूर्ण आवेग के साथ किनारों को अपनी बाहें लंबी कर दूर तक छूने के प्रयास में आतुरता से बढती थीं वहीं उससे भी कहीं अधिक आतुरता से किनारों पर लगी राइड्स की पींगें उत्साह से किलकारियां मारते लोगों को बादलों को छूने के लिए प्रेरित करती आसमान के पास तक पहुँचाने में लगी हुई थीं ! मंत्रमुग्ध से सम्मोहन में डूबे इतने विशाल जन समुदाय को मैंने देखा तो पहले भी कई बार था लेकिन इतनी शिद्दत के साथ उनके इस जज्बे को महसूस पहली बार किया ! सागर के किनारे बीच पर अथाह जनसमूह उमड़ा पड़ रहा था ! लहरों के साथ खेलते, अठखेलियाँ करते, डूबते उतराते लोग, फ्रिस्बी और बीच बॉल को उछाल उसके पीछे दौड़ लगाते लोग, पतले से स्लाइडिंग बोर्ड के सहारे लहरों पर सवारी करने की मशक्कत में लगे गिरते पड़ते लोग, पैरों के ऊपर गीली रेत को जमा घरौंदे बनाते लोग, ऐसे ही निष्क्रिय धूप में नंगे बदन औंधे पड़े सूर्य की ऊष्मा से शरीर की सिकाई करते लोग या फिर खाते पीते मौज मनाते समुदी पंछियों के साथ खेलते हुए लोग ! जिधर नज़र घुमाओ कोई नया ही नज़ारा देखने को मिल जाता था !
मुझे लोगों के चहरे पढने में बहुत मज़ा आता है लेकिन इतनी गतिविधियों के बावजूद भी सारे चहरे जैसे बंद किताब की तरह थे !
वेशभूषा और केश विन्यास की इतनी विविधता आपने एक साथ एक ही स्थान पर इससे पहले कभी कहीं नहीं देखी होगी ! बिकनी,जींस टॉप, फ्रॉक, स्कर्ट, मिनी स्कर्ट, लौंग स्कर्ट, मिडी, खुले, ढके, छोटे, बड़े, ढीले, तंग, हर तरह के कपडे, यहाँ तक की साडी से लेकर सूट तक हर वेश में वहाँ लोग मिल जाते हैं ! आपके जेहेन में जितनी तरह की वेशभूषाओं को आप सोच सकते हैं उससे कई गुना उन्हें मल्टीप्लाई कर दीजिए तो शायद आप सही आंकड़े को छू पायेंगे ! इसी तरह केश विन्यास को ले लीजिए ! बिलकुल घुटी चाँद से लेकर कमर तक लहराते हर लम्बाई के बाल स्त्री और पुरुष दोनों के सिर पर दिखाई दे जायेंगे ! एक चोटी से लेकर असंख्य चोटियों में गुंथे बाल, जूडे से लेकर घुंघराली या सीधी लटों में कंधों पर लहराते बाल, लाल, सफ़ेद, हरे, काले या कई रंगों में स्ट्रीक्स की छटा बिखेरते बाल, या विविध रंगों के क्लिप्स, हेयर बैंड्स और क्लचर्स के अनुशासन में बंधे बाल ! बस देखते ही जाइए ! इस तिलस्म का नज़ारा कभी खत्म ही नहीं होता ! सांताक्रूज बीच पर हर देश को लोग दिखाई दे जाते हैं ! हर रंग की स्किन के लोगों का जैसे यही एक पसंदीदा स्थान है !
हैरानी की बात यह है कि सब मंत्रमुग्ध से बस चलते ही जाते हैं ! किसी की निगाहें सागर की लहरों पर टिकी हैं तो किसी की आसमान को छूती राइड्स पर ! उधर सागर की लहरों का शोर है तो इधर लोगों के हर्षोन्माद का शोर है ! उधर सागर की लहरें आपस में टकरा कर एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं इधर भी विशाल जन समुदाय हिलोरें लेता हुआ चलता है तो अनायास ही लोग एक दूसरे से टकरा जाते हैं और अगले ही पल उस महासागर में खो से जाते हैं ! बस एक विनम्र 'सॉरी' के आगे पीछे कुछ भी कहने की ज़रूरत बाकी नहीं रहती ! कोई किसीसे नाराज़ नहीं होता ! शिष्टाचार और सामंजस्य का ऐसा अद्भुत दृश्य अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता !
घूमते घामते, खाते पीते, तरह तरह की राइड्स का मज़ा लेते कब शाम बीत गयी पता ही नहीं चला ! जब घर लौटे तो दस बज चुके थे ! लेकिन रविवार की उस शाम को मैंने सांताक्रूज बीच पर मिनी विश्व दर्शन का भरपूर आनंद लिया था और उस दिन की वे विशिष्ट स्मृतियाँ मेरे मन में सदैव सजीव रहेंगी यह भी पूर्णत: निश्चित है !
साधना वैद
कैसी रोमांचकारी शाम थी वह ! दो अथाह सागरों को एक दूसरे के समानांतर मैंने एक साथ हिलोरें लेते हुए देखा था ! एक सागर था प्रशांत महासागर और दूसरा था उससे भी कहीं अधिक उत्ताल तरंगों के साथ ठाठें मारता अत्यंत गतिशील और उत्साह से छलछलाता जन समुदाय का महासागर ! जहां सागर की उतावली लहरें पूर्ण आवेग के साथ किनारों को अपनी बाहें लंबी कर दूर तक छूने के प्रयास में आतुरता से बढती थीं वहीं उससे भी कहीं अधिक आतुरता से किनारों पर लगी राइड्स की पींगें उत्साह से किलकारियां मारते लोगों को बादलों को छूने के लिए प्रेरित करती आसमान के पास तक पहुँचाने में लगी हुई थीं ! मंत्रमुग्ध से सम्मोहन में डूबे इतने विशाल जन समुदाय को मैंने देखा तो पहले भी कई बार था लेकिन इतनी शिद्दत के साथ उनके इस जज्बे को महसूस पहली बार किया ! सागर के किनारे बीच पर अथाह जनसमूह उमड़ा पड़ रहा था ! लहरों के साथ खेलते, अठखेलियाँ करते, डूबते उतराते लोग, फ्रिस्बी और बीच बॉल को उछाल उसके पीछे दौड़ लगाते लोग, पतले से स्लाइडिंग बोर्ड के सहारे लहरों पर सवारी करने की मशक्कत में लगे गिरते पड़ते लोग, पैरों के ऊपर गीली रेत को जमा घरौंदे बनाते लोग, ऐसे ही निष्क्रिय धूप में नंगे बदन औंधे पड़े सूर्य की ऊष्मा से शरीर की सिकाई करते लोग या फिर खाते पीते मौज मनाते समुदी पंछियों के साथ खेलते हुए लोग ! जिधर नज़र घुमाओ कोई नया ही नज़ारा देखने को मिल जाता था !
मुझे लोगों के चहरे पढने में बहुत मज़ा आता है लेकिन इतनी गतिविधियों के बावजूद भी सारे चहरे जैसे बंद किताब की तरह थे !
वेशभूषा और केश विन्यास की इतनी विविधता आपने एक साथ एक ही स्थान पर इससे पहले कभी कहीं नहीं देखी होगी ! बिकनी,जींस टॉप, फ्रॉक, स्कर्ट, मिनी स्कर्ट, लौंग स्कर्ट, मिडी, खुले, ढके, छोटे, बड़े, ढीले, तंग, हर तरह के कपडे, यहाँ तक की साडी से लेकर सूट तक हर वेश में वहाँ लोग मिल जाते हैं ! आपके जेहेन में जितनी तरह की वेशभूषाओं को आप सोच सकते हैं उससे कई गुना उन्हें मल्टीप्लाई कर दीजिए तो शायद आप सही आंकड़े को छू पायेंगे ! इसी तरह केश विन्यास को ले लीजिए ! बिलकुल घुटी चाँद से लेकर कमर तक लहराते हर लम्बाई के बाल स्त्री और पुरुष दोनों के सिर पर दिखाई दे जायेंगे ! एक चोटी से लेकर असंख्य चोटियों में गुंथे बाल, जूडे से लेकर घुंघराली या सीधी लटों में कंधों पर लहराते बाल, लाल, सफ़ेद, हरे, काले या कई रंगों में स्ट्रीक्स की छटा बिखेरते बाल, या विविध रंगों के क्लिप्स, हेयर बैंड्स और क्लचर्स के अनुशासन में बंधे बाल ! बस देखते ही जाइए ! इस तिलस्म का नज़ारा कभी खत्म ही नहीं होता ! सांताक्रूज बीच पर हर देश को लोग दिखाई दे जाते हैं ! हर रंग की स्किन के लोगों का जैसे यही एक पसंदीदा स्थान है !
हैरानी की बात यह है कि सब मंत्रमुग्ध से बस चलते ही जाते हैं ! किसी की निगाहें सागर की लहरों पर टिकी हैं तो किसी की आसमान को छूती राइड्स पर ! उधर सागर की लहरों का शोर है तो इधर लोगों के हर्षोन्माद का शोर है ! उधर सागर की लहरें आपस में टकरा कर एक दूसरे में विलीन हो जाती हैं इधर भी विशाल जन समुदाय हिलोरें लेता हुआ चलता है तो अनायास ही लोग एक दूसरे से टकरा जाते हैं और अगले ही पल उस महासागर में खो से जाते हैं ! बस एक विनम्र 'सॉरी' के आगे पीछे कुछ भी कहने की ज़रूरत बाकी नहीं रहती ! कोई किसीसे नाराज़ नहीं होता ! शिष्टाचार और सामंजस्य का ऐसा अद्भुत दृश्य अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता !
घूमते घामते, खाते पीते, तरह तरह की राइड्स का मज़ा लेते कब शाम बीत गयी पता ही नहीं चला ! जब घर लौटे तो दस बज चुके थे ! लेकिन रविवार की उस शाम को मैंने सांताक्रूज बीच पर मिनी विश्व दर्शन का भरपूर आनंद लिया था और उस दिन की वे विशिष्ट स्मृतियाँ मेरे मन में सदैव सजीव रहेंगी यह भी पूर्णत: निश्चित है !
साधना वैद
Wednesday, June 2, 2010
ऐसा क्यों होता है !
ऐसा क्यों होता है
जब भी कोई शब्द
तुम्हारे मुख से मुखरित होते हैं
उनका रंग रूप, अर्थ आकार,
भाव पभाव सभी बदल जाते हैं
और वे साधारण से शब्द भी
चाबुक से लगते हैं,
तथा मेरे मन व आत्मा सभी को
लहूलुहान कर जाते है !
ऐसा क्यों होता है
जब भी कोई वक्तव्य
तुम्हारे मुख से ध्वनित होता है
तुम्हारी आवाज़ के आरोह अवरोह,
उतार चढ़ाव, सुर लय ताल
सब उसमें सन्निहित उसकी
सद्भावना को कुचल देते है
और साधारण सी बात भी
पैनी और धारदार बन
उपालंभ और उलाहने सी
लगने लगती है
और मेरे सारे उत्साह सारी खुशी को
पाला मार जाता है !
ऐसा क्यों होता है
तुमसे बहुत कुछ कहने की,
बहुत कुछ बाँटने की आस लिये
मैं तुम्हारे मन के द्वार पर
दस्तक देने जब आती हूँ तो
‘प्रवेश निषिद्ध’ का बोर्ड लटका देख
हताश ही लौट जाती हूँ
और भावनाओं का वह सैलाब
जो मेरे ह्रदय के तटबंधों को तोड़ कर
बाहर निकलने को आतुर होता है
अंदर ही अंदर सूख कर
कहीं बिला जाता है !
और हम नदी के दो
अलग अलग किनारों पर
बहुत दूर निशब्द, मौन,
बिना किसी प्रयत्न के
सदियों से स्थापित
प्रस्तर प्रतिमाओं की तरह
कहीं न कहीं इसे स्वीकार कर
संवादहीन खड़े रहते हैं
क्योंकि शायद यही हमारी नियति है !
साधना वैद
जब भी कोई शब्द
तुम्हारे मुख से मुखरित होते हैं
उनका रंग रूप, अर्थ आकार,
भाव पभाव सभी बदल जाते हैं
और वे साधारण से शब्द भी
चाबुक से लगते हैं,
तथा मेरे मन व आत्मा सभी को
लहूलुहान कर जाते है !
ऐसा क्यों होता है
जब भी कोई वक्तव्य
तुम्हारे मुख से ध्वनित होता है
तुम्हारी आवाज़ के आरोह अवरोह,
उतार चढ़ाव, सुर लय ताल
सब उसमें सन्निहित उसकी
सद्भावना को कुचल देते है
और साधारण सी बात भी
पैनी और धारदार बन
उपालंभ और उलाहने सी
लगने लगती है
और मेरे सारे उत्साह सारी खुशी को
पाला मार जाता है !
ऐसा क्यों होता है
तुमसे बहुत कुछ कहने की,
बहुत कुछ बाँटने की आस लिये
मैं तुम्हारे मन के द्वार पर
दस्तक देने जब आती हूँ तो
‘प्रवेश निषिद्ध’ का बोर्ड लटका देख
हताश ही लौट जाती हूँ
और भावनाओं का वह सैलाब
जो मेरे ह्रदय के तटबंधों को तोड़ कर
बाहर निकलने को आतुर होता है
अंदर ही अंदर सूख कर
कहीं बिला जाता है !
और हम नदी के दो
अलग अलग किनारों पर
बहुत दूर निशब्द, मौन,
बिना किसी प्रयत्न के
सदियों से स्थापित
प्रस्तर प्रतिमाओं की तरह
कहीं न कहीं इसे स्वीकार कर
संवादहीन खड़े रहते हैं
क्योंकि शायद यही हमारी नियति है !
साधना वैद
Subscribe to:
Posts
(
Atom
)