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Monday, February 25, 2013

रहिमन धागा प्रेम का




 आप जानते हैं रिश्ते चाहे कितने भी प्रगाढ़ हों बेवजह की ईर्ष्या, बेबुनियाद नफरत और मन की संकीर्णता का वायरस यदि उन पर आक्रमण कर दे तो बड़ी जल्दी बीमार हो जाते हैं, नासूर की तरह सड़ गल जाते हैं और असमय ही काल कवलित हो जाते हैं ! वह भी बिना किसी पूर्व चेतावनी के ! फिर हम चाहे कितना भी जतन कर उनकी मरहम पट्टी कर लें, सेवा टहल कर लें, दवा इलाज कर लें उन्हें बचाना नामुमकिन हो जाता है ! पता है क्यों ? 

क्योंकि रिश्ते बहुत नाज़ुक होते हैं ! रेशम की डोर से भी नाज़ुक, ताज़े खिले फूल से भी नाज़ुक, इन्द्रधनुष की आकर्षक सतरंगी छटा बिखेरते साबुन और पानी के बुलबुले से भी नाज़ुक ! ज़रा से खुरदुरे स्पर्श से रेशम की डोर जैसे टूट जाती है, ज़रा सा ज़ोर से पकड़ लो तो फूल जैसे बिखर जाता है और दूर से ही उंगली दिखा भर दो तो बुलबुला जैसे फूट जाता है वैसे ही व्यवहार में ज़रा सा अभिमान, ज़रा सा रूखापन और ज़रा सी नफ़रत की झलक मिलते ही रिश्तों की सारी गर्माहट, सारी आत्मीयता और सारी मिठास पल भर में ही तिरोहित हो जाती है और मन में घर कर लेती है एक अकथनीय पीड़ा, दम घोंट देने वाले रिश्तों की गिरफ्त से ना छूट पाने की विकलता और एक असह्य वेदना जो हर पल आपका जीना दूभर करती जाती है ! 

मैंने देखा है कुछ लोग बड़ी कुशलता से सारे रिश्तों को निभा लेते हैं ! अपने घर परिवार में, अपनी मित्र मंडली में और अपने पास पड़ोस में ऐसे लोग बड़े लोकप्रिय होते हैं और वे भी प्रतिदान में सबसे प्यार और सम्मान पाते हैं ! यदि आप भी औरों के साथ अपने संबंधों को सच में सुधारना चाहते हैं, लोगों के मन में अपने लिए प्यार और सम्मान के भाव जगाना चाहते हैं, और सबकी नज़रों में ऊँचे उठना चाहते हैं तो कुछ आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण तो आपको भी करना ही होगा और ज़रा सूक्ष्मता से उन लोगों के व्यवहार पर भी दृष्टिपात करना होगा जो इस समय बेवजह आपके आक्रोश और ईर्ष्या के पात्र बने हुए हैं !

सबसे पहले तो आप सारे पूर्वाग्रह छोड़ कर इस बात को स्वीकार करने के लिए स्वयं को तैयार करिये कि अगर सामने वाला आप से अधिक लोकप्रिय है तो उसमें कोई तो ऐसी बात है जो आपमें नहीं है ! आप खुद को क्या समझते हैं, आप स्वयं अपनी नज़रों में कितने महान, उदार और काबिल हैं इस बात का कोई महत्व नहीं है ! महत्व इस बात का है कि लोगों के मन में आपकी कैसी छवि है, वो आपके बारे में क्या सोचते हैं और अपने व्यक्तित्व में जिन सद्गुणों के होने के बारे में आप पूर्ण रूप से निश्चिन्त हैं क्या उनके बारे में आपके वे संबंधी भी उतने ही सुनिश्चित हैं जिनकी प्रशंसा पाने के लिए आप आतुर हैं लेकिन वह आपको मिल नहीं रही है ! जिनका दिल आप भी जीतना चाहते हैं लेकिन जीत नहीं पा रहे हैं ! एक बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि लोगों के मन में जगह बनाने के लिए उदारता और सहिष्णुता दोनों की ही ज़रुरत होती है ! और अगर आप में इन दोनों गुणों का अभाव है तो इन्हें विकसित करने का प्रयास करिये ! दूसरों की प्रशंसा सुन कर जलिये मत ! कोशिश करिये कि समान परिस्थिति में आप उनसे भी बेहतर व्यवहार करें ताकि आप भी वाहवाही बटोर सकें ! लोगों की मंशाओं पर शक मत करिये कि वे आपको नीचा दिखाने के लिए दूसरे की तारीफ़ कर रहे हैं बल्कि सामने वाले के उदार मन की कद्र कीजिये कि उसमें इतना बड़प्पन तो है कि वह दूसरे की प्रशंसा करने में कंजूस नहीं है ! वह दूसरों की अच्छाइयों को सकारात्मक रूप से ग्रहण करता है और उनकी कद्र करता है ! अगर आप कोशिश करें तो आप भी उसकी इस उदारता से लाभान्वित हो सकते हैं !

किसीकी प्रशंसा सुनने के लिए भी बड़ा दिल चाहिये ! बड़ा दिल होने के साथ-साथ उसका प्रेम से भरा होना भी लाज़िमी है ! किसीकी ज़रा सी तारीफ़ सुनी और आप तुनक कर उठ गये यह आपके मन की संकीर्णता का परिचायक है ! इससे आप और किसी का कोई नुक्सान नहीं कर रहे हैं वरन् अपने छोटे से दिल का सम्पूर्ण विस्तार बता कर स्वयं अपनी कीमत कम कर रहे हैं और यह भी कि आप सिर्फ खुद से प्रेम करते हैं ! आपके जीवन में और किसीके लिए ना तो जगह है ना ही प्यार ! आप किसी और के सद्गुणों या अच्छाई की ना तो स्वयं तारीफ़ कर सकते हैं ना ही किसी और के मुँह से सुन सकते हैं ! ऐसे वातावरण में कोई रिश्ता कभी फलफूल नहीं सकता और सम्बंधों के बीच मोटी-मोटी दीवारें खड़ी हो जाती हैं ! 

हर रिश्ते को जिलाये रखने के लिए प्रेम की गर्माहट की ज़रुरत होती है ! वरना भावनाओं और व्यवहार का ठंडापन रिश्तों की उम्र को घटा देते हैं और इतना निश्चित जानिये एक बार जो रिश्ते दम तोड़ देते हैं वे दोबारा साँस नहीं ले पाते ! किसी तरह कृत्रिम श्वास देकर उन्हें जिलाया भी जाये तो भी वे पूरी तरह से कभी स्वस्थ नहीं रह पाते ! उनकी मिठास समाप्त हो जाती है ! नतीजतन संबंधों को सुधारने की आपकी सारी कवायद सिफर हो जाती है ! निश्चित जानिये कि भविष्य में आपकी कही हर बात को सूक्ष्म छिद्रान्वेषण की कठिन प्रक्रिया से गुज़रना होगा ! छोटी-छोटी बातों में आपकी पूर्व में कही गयी कटूक्तियाँ, व्यंगबाण और ताने उलाहने स्वयमेव सामने आकर खड़े हो जायेंगे जो बिला वजह आपकी नवनिर्मित सद्भावनाओं के झीने आवरण को पल भर में ही तार-तार कर देंगे ! आपके पहले वाले संकीर्ण विचार और नकारात्मक व्यवहार के साये आपके वर्तमान के सुधरे विचार और व्यवहार की विश्वसनीयता पर सदैव प्रश्नचिन्ह लगाते रहेंगे और ऐसे में आपके पास अपने हाथ मलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा ! लेकिन आपको लगातार प्रयास करते रहने होंगे ! क्योंकि यह भी सच है कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती !

इसके लिये परम आवश्यक है कि अपने मन के कलुष को धोकर बहा दिया जाये, ‘मैं-मैं’ के धरातल से ऊपर उठ कर 'औरों' को भी अपने जीवन में शामिल किया जाये ! उन्हें भी यथोचित स्थान और सम्मान दिया जाये और मन के हर कोने से नकारात्मकता को खुरच-खुरच कर साफ़ कर अपने दिल के विस्तार को खूब बढ़ाया जाये और उसमें सिर्फ प्यार और सिर्फ प्यार ही बसाया जाये ! 

रिश्तों के महत्व को समझते हुए उन्हें प्रेम के धागों से गूँथ कर अपने हृदय से लगा कर रखिये ! उन्हें किसी भी हाल में बिखरने मत दीजिये ! ये अनमोल रिश्ते ही हमारे जीवन की कभी ना घटने वाली अनमोल पूंजी हैं जो हमें संसार में सबसे अमीर इंसान की हैसियत भी दे सकते हैं और हमारी ताकत को भी बढ़ा सकते हैं !
रहीमदास जी ठीक ही कह गये हैं ----

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय,
जोड़े से फिर ना जुड़ै, जुड़ै गाँठ पड़ि जाय !

साधना वैद  
    

Friday, February 22, 2013

नहीं जानती



नहीं जानती
ज़िंदगी की बेहिसाब
बेरहमियों के लिए उसका
शुक्रिया करूँ या फिर
कभी कभार भूले भटके
बड़ी कंजूसी से
भीख की तरह
दिये गये
मेहरबानियों के
चंद टुकड़ों के लिये  
उसका सजदा करूँ !
फिर लगता है
बेरहमियों के लिये
शुक्रिया ज्यादह ज़रूरी है  
क्योंकि उन्होंने
आत्मा पर चोट करते
मेहरबानियों के उन
छोटे-छोटे टुकड़ों का
मोल तो मुझे
समझा दिया ! 

नहीं जानती
आँखों की झील में आई
सुनामी में अपने
नन्हें-नन्हें सुकुमार सपनों के
असमय डूब जाने के
खतरे का हौसला रख
सामना करूँ
या फिर उन्हें
यूँ ही मर जाने दूँ और
नये सपनों की
नई पौध को
दोबारा से रोप दूँ
ताकि
सपनों की नयी फसल
एक बार फिर से
लहलहा उठे !
फिर लगता है
सुनामी का सामना  
करना ही ठीक रहेगा  
कम से कम मेरे सपने
तूफ़ान का सामना
करने के लिए
तैरना तो सीख जायेंगे !

नहीं जानती
सामने पीने के लिये
धरे गये
विष और अमृत के
दो प्यालों में से पहले
कौन सा प्याला उठाऊँ  
लबालब भरे विष के प्याले
को पहले पी डालूँ
या फिर
मधुर अमृत की
दो बूँदों से अपने
प्यास से चटकते
कंठ को पहले तर कर लूँ !
हाथ तो अमृत की ओर ही
बढ़ना चाहते हैं
फिर लगता है
पहले विष पी लेना
ही ठीक रहेगा
प्याले भर विष की कड़वाहट
अमृत की उन दो बूँदों का मोल
कई गुना बढ़ा जायेगी
जो जीवन की
मधुरता से मेरा परिचय
पहली बार ही सही 
कम से कम
करवा तो देंगी  
और साथ ही
जीवन के सत्य,
शिव और सुन्दर से भी
मेरा साक्षात्कार
ज़रूर हो जायेगा
ऐसा मुझे विश्वास है !

साधना वैद


Tuesday, February 19, 2013

उपहार






याद है
वर्षों पूर्व
दिया था 
एक लैम्प का
तुमने मुझे
यह उपहार,
जी जान से
उसे आज तक
सँजो कर रखती
आई हूँ मैं
हर बार !

वक्त की गर्द ने
फीकी कर दी है
उसकी सूरत,
अब वो बन कर
रह गया है
केवल एक
खंडहर सी मूरत ! 

हर बार छूने से
उसका कोई हिस्सा
टूट कर
गिर जाता है,
और मेरा
आकुल मन
उसे जोड़ने को
फेवीकोल की ट्यूब ले  
दौड़ा चला
जाता है !

जगह-जगह से जुड़ा
और समय की मार से
फीका पड़ चुका
यह जीर्ण शीर्ण
खंडित लैम्प
मेरे मन
और आत्मा
पर भी आघात
करता था,
और उसका यह
जर्जर रूप
मेरी आँखों को भी
हर बार
खटकता था ! 

फिर एक दिन
जी कड़ा कर मैंने
उस लैंप की
जर्जर हो चुकी
रूखी फीकी
साज सज्जा का
बाह्य आवरण   
उतार फेंकने के लिए  
अपने मन को 
मना लिया,
और स्वयं को
उसके भौतिक स्वरूप
के मोह से
मुक्त कर लेने का
दृढ़ संकल्प
अपने मन में
बना लिया !

जैसे-जैसे लैम्प की
ऊपरी परतें
उतरती गयीं 
मेरे मन का
अवसाद भी
घटता गया,
और अन्दर से
उसका जो रूप  
निकल कर
सामने आया  
उसे देख
मेरे मन का
विस्मय भी
हर पल
बढ़ता गया !
  
कई बार हाथों से
गिर कर
अनेकों बार
टूट कर फिर
जुड़-जुड़ कर
लैंप की ज्योति
जो बिलकुल मद्धम
पड़ गयी थी,
अब ऊपरी
जरा जीर्ण  
गंदी परतें
उतरते ही
बिलकुल नयी सी
चमक गयी थी !

सारे मिथ्या
आडम्बरों से
मुक्त हो 
वह ज्योति
अन्दर से जैसे
नयी ऊर्जा ले
पुनर्जीवित हो 
एक बार फिर से 
निकल आयी है,
और ऐसा लगता है
उसकी यह 
शांत धवल
उज्जवल रोशनी
मेरे मन के
कोने-कोने को
पावन कर   
दिव्य आलोक से  
जगमगाने के लिए
एक बार फिर 
चली आई है !


साधना वैद