असमंजस की
भूलभुलैया में
उसकी आँखों पर
दुराग्रहों की
काली पट्टी बाँध
चुनौतियों की
दोधारी
पैनी तलवार पर
तुम उसे
सदा से चलाते
आ रहे हो !
उसके हिस्से
के सुख,
उसके हिस्से
के फैसले,
उसकी आँखों के
सपने,
उसके हिस्से
की महत्वाकांक्षायें,
सब दुबका के
रख लिये हैं
तुमने अपनी
कसी हुई
बंद मुट्ठी के
अंदर
जिन्हें तुम
अपनी मर्जी से
खोलते बंद
करते रहते हो !
लेकिन क्या
तुम जानते हो
तुम्हारी इन
गतिविधियों के
तूफानी थपेड़े
उसके अंतर की
ज्वाला को
धौंकनी की तरह
हवा देकर
किस तरह और
तेज़
प्रज्वलित कर
जाते हैं !
किसी दिन यह
आग
जब विकराल
दावानल का
रूप ले लेगी
तो तुम्हारे
दंभ और अहम का
यह मिथ्या
संसार
क्षण भर में
जल कर
राख हो जायेगा
!
उसे अपना जीवन
खुद जीने दो
उसे अपने
फैसले खुद लेने दो
उसे अपने सपने
खुद
साकार करने दो
!
फिर देखना
कैसी
शीतल, मंद, सुखद समीर
तुम्हारे जीवन
को सुरभित कर
आनंद से भर
जायेगी !
उसे अपनी
पहचान सिद्ध करने दो
उसे अपने चुने
हुए रास्ते पर
अपने आप चलने
दो
उसके कमरे की
सारी
बंद खिड़कियाँ
खोल कर
उसे तुम ताज़ी
हवा में
जी भर कर साँस
लेने दो !
उसे बंधनों से
मुक्ति चाहिये
उसकी
श्रृंखलाओं को खोल कर
तुम उसे उसके
हिस्से का
आसमान दे दो !
और उन्मुक्त
होकर नाप लेने दो उसे
अपने आसमान का
समूचा विस्तार
उस पर विश्वास
तो करो
जहाज के पंछी
की तरह
वह स्वयं लौट
कर अपने
उसी आशियाने
में
ज़रूर वापिस आ
जायेगी !
साधना वैद