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Saturday, February 22, 2020

वेदना की राह पर

  

वेदना की राह पर
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर
क्यों आज मैं एकल खड़ी !

थाम कर उँगली तुम्हारी
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे
एक अनबुझ प्यास धर !

मैं तो अमृत का कलश
लेकर चली थी साथ पर ,
फिर भला क्यों रह गये
यूँ चिर तृषित मेरे अधर !

मैं झुलस कर रह गयी
रिश्ते बचाने के लिये ,
मैं बिखर कर रह गयी
सपने सजाने के लिये !

रात का अंतिम पहर
अब अस्त होने को चला ,
पर दुखों की राह का
कब अंत होता है भला !

चल रही हूँ रात दिन
पर राह यह थमती नहीं ,
कल जहाँ थी आज भी
मैं देखती खुद को वहीं !

थक चुकी हूँ आज इतना
और चल सकती नहीं ,
मंजिलों की राह पर
अब पैर मुड़ सकते नहीं

कल उठूँगी, फिर चलूँगी
पार तो जाना ही है ,
साथ हो कोई, न कोई
इष्ट तो पाना ही है !

साधना वैद

Sunday, February 9, 2020

बंजारा मन




तुम्हारे महल के
सारे ऐशो आराम ठुकरा कर
मेरा बंजारा मन आज भी
उसी तम्बू में अटका हुआ है
जहाँ बरसों पहले
ज़मीन पर बिछी पतली सी दरी पर
मेरे हलके से शॉल को लपेट कर
हम दोनों ने दिसंबर की वो
ठिठुरती रात बिताई थी !
जाने कहाँ से तुम
मिट्टी के कुल्हड़ में गुड़ अदरक की
गरमागरम चाय ले आये थे
और हम दोनों ने
दूर समंदर की लहरों की बेताब
आवाजाही को देखते देखते
घूँट घूँट एक ही कुल्हड़ से देर तक
उस चाय को पिया था !
तेज़ सीली सीली समुद्री हवा से
ढहने को तैयार वो थर्राता हुआ तम्बू
सर्दी से कँपकपाता बदन और
एक दूसरे की आँखों में उमड़ आये
सागर की गहराइयों को नाप 
उसमें डूबने को आतुर हम और तुम !
जाने क्यों लगता है
जैसे सारी कायनात उस रात
उस तम्बू में ठहर गयी थी !
और साथ में ठहर गयी थीं
मेरी सारी चाहतें, सारी खुशियाँ,
सारी हसरतें, सारी ज़िंदगी !
जिसे मैं आज भी तलाश रही हूँ
और उसे ढूँढते ढूँढते
मेरा मन बार बार पहुँच जाता है
समंदर के किनारे लगे उसी तम्बू में
जिसका अब वहाँ दूर दूर तक
कोई अस्तित्व नहीं !


चित्र - गूगल से साभार 

साधना वैद 
 



Thursday, February 6, 2020

दहलीज पे ठिठकी यादें



आज फिर सारी रात मुझे
पदचाप सुनाई देती रही  
उन ढीठ यादों की
जो मेरी दहलीज से जाने क्यों
हटने का नाम ही नहीं लेतीं !
कभी तेज़ तो कभी धीमी
कभी आशा से भरी तो कभी
हताशा से निढाल !
ये खट्टी मीठी तीखी यादें
गाहे बे गाहे
मेरे अंतर्मन के द्वार पर
जब तब आ जाती हैं और 
कभी मनुहार कर तो
कभी खीझ कर ,
कभी मिन्नतें कर तो
कभी झगड़ कर ,
कभी खुशामद कर तो
कभी धौंस जमा कर ,
कभी बहस कर तो
कभी हक जता कर ,
कभी रोकर तो
कभी उलाहने देकर
ये यादें मेरे मन के द्वार पर
धरना देकर बैठ जाती हैं !
अंतत: किसी दुर्बल पल में
अपनी ही मरणासन्न सी लगती
जिजीविषा की तथाकथित
अंतिम इच्छा को सम्मान
देने के लिये विवश होकर
मुझे इनके दुराग्रह के आगे
हथियार डालने ही पड़ते हैं   
और मैं दरवाज़ा खोल देती हूँ !
और लो
सूखाग्रस्त सी चटकती दरकती
मेरे मन की मरुभूमि में
ये यादें अमृततुल्य बाढ़ की तरह
चारों ओर से उमड़ घुमड़
मन की हर एक शिरा में
संजीवनी का संचार कर
इसे फिर से जिला देती हैं !
और लो एक बार फिर
शुरू हो जाती है जंग
इन यादों से जिनके बिना
ना तो रहा जाता है
और ना ही जिन्हें
सहा जाता है

साधना वैद




Tuesday, February 4, 2020

ताशकंद यात्रा – ११ चिमगन माउन्टेन की सैर



२८ अगस्त की सुबह बहुत सुहानी थी ! आज कोई ट्रेन या बस पकड़ने की जल्दी नहीं थी ! आराम से नहा धोकर सुबह ब्रेकफास्ट के लिए नीचे उतरे ! सारे साथी लोग भी धीरे धीरे अवतरित हो रहे थे ! आज हमें चिमगन माउन्टेन जाना था ! पैदल चलने का कोई काम नहीं था ! इसलिए सब खुश थे और रात भर की भरपूर मीठी नींद के बाद बिलकुल तरोताज़ा थे ! नाश्ते के बाद सब बस में पहुँच गए और निश्चित समय पर बस चिमगन पहाड़ की तरफ चल पड़ी ! हर शहर का सुबह का नज़ारा अलग ही होता है और उनींदा अलसाया ताशकंद भी सुबह के इन पलों में बहुत सुन्दर लग रहा था ! एक बात यहाँ आकर बड़ी शिद्दत से महसूस हुई कि जनसंख्या अधिक ना हो तो शहरों को आसानी से साफ़ और व्यवस्थित रखा जा सकता है ! उज्बेकिस्तान का शुमार बहुत रईस देशों में नहीं है लेकिन साफ़ सफाई एक आदत है जिसे वहाँ के लोगों ने शायद इबादत की तरह अपनाया है ! कहने को तो हम भी कम धार्मिक नहीं लेकिन इस मामले में हम उनसे बहुत पीछे हैं ! बड़ी खुशी हुई देख कर कि सारे रास्ते में शहर का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जहाँ के मकान टूटे फूटे और जर्जर हों, सड़कें खराब हों या हरियाली का अभाव हो ! एक बात और विलक्षण लगी कि कहीं भी लाल बत्ती वाले ट्रेफिक सिग्नल नहीं दिखाई दिये ! ऐसा बहुत अच्छी रोड प्लानिंग से ही संभव हो पाता है और इसका सारा श्रेय रूस के इंजीनियर्स को जाता है ! सड़कों पर सिर्फ कारें और बस दिखाई देती हैं ! इसकी भी एक वजह है ! यहाँ का तापमान सर्दियों में शून्य से नीचे और गर्मियों में पचास से ऊपर रहता है इस वजह से दोपहिया या तीन पहिया वाहनों का चलाना व्यावहारिक नहीं होता ! कहीं कहीं इक्का दुक्का साइकिल सवार ज़रूर दिखे लेकिन वे मेन रोड पर नहीं होते थे ! सड़कों पर पुलिस और ट्रेफिक पुलिस ना के बराबर थी और बंदूकधारी तो बिलकुल भी नहीं !
चिमगन माउन्टेन का दो घंटे का रास्ता बहुत खुशगवार था ! सड़क के दोनों तरफ बड़े खूबसूरत फलों के पेड़ लगे हुए थे ! ग्रुप के सदस्य पूरे जोश के साथ पिकनिक के मूड में आ गए थे ! सब अन्ताक्षरी खेलने में व्यस्त हो गए ! बस में महिलाओं के कोरस की बुलंद आवाज़ गूँज रही थी ! एकाध जगह पर बस रुकी जहाँ ताशकंद के स्थानीय दुकानदार ड्राई फ्रूट्स व अन्य खाने पीने का सामान बेच रहे थे ! गाइड ने बताया यहाँ बारगेनिंग की गुंजाइश है क्योंकि ये लोग दाम बढ़ा कर बताते हैं तो ग्रुप की महिला सदस्यों को मज़ा आ गया ! सबने खूब सौदेबाजी करके बादाम की चिक्की और सूखे मेवों के पैकेट्स खरीदे !
अंतत: हम लोग ऊपर चिमगन पहाड़ पर पहुँच गए ! यह टाइन शान माउन्टेन की सबसे ऊँची चोटी है और १६०० मीटर्स की ऊँचाई पर स्थित है ! मौसम में विशेष अंतर नहीं दिखा ! ऊपर भी तापमान अच्छा खासा गर्म ही था ! यहाँ रोप वे से गहरी खाई को पार कर दूसरी तरफ और अधिक ऊँची पहाड़ी पर जाना था ! यह अनुभव सच में बहुत रोमांचक था ! देश विदेश में कई तरह की रोप वे पर बैठने का मौक़ा मिला लेकिन यहाँ की रोप वे वाकई में बहुत ही अनोखी थी ! बदहाल या कमज़ोर बिलकुल नहीं थी लेकिन इसमें सुरक्षा की व्यवस्था लगभग ना के बराबर थी ! अधिकांश जगहों पर रोप वे में बंद दरवाज़े वाले केबिन में बैठने की व्यवस्था होती है ! उसमें भी सीट बेल्ट बाँधने की अनिवार्यता होती है ! केबिन में बैठने के लिए रोप वे के स्टेशन पर ट्रॉली रुकती है ! सवारी उसमें बैठती हैं ! दरवाजों को कायदे से लॉक किया जाता है उसके बाद ट्रॉली आगे बढ़ती है ! लेकिन यहाँ ऐसे कोई इंतजाम नहीं थे ! केबिन के स्थान पर ट्विन चेयर्स वाली खुली सीट्स थीं ! जैसे ही खाली सीट आने वाली होती है आपको निश्चित स्थान पर खड़ा कर दिया जाता है ! रोप वे चलती रहती है रुकती नहीं ! सीट के आते ही आपको कूद कर पल भर में उस पर सवार हो जाना होता है ! दो सहायक आपकी मदद के लिए उस जगह पर खड़े होते हैं ! अगर आप चूक गए तो ट्रॉली आगे बढ़ जाती है आपके बिना ! कई बार उसके धक्के से लोग गिर भी जाते हैं ! हमारे ग्रुप की नीलिमा मिश्रा जी ऐसे ही गिर गयीं थीं ! यह तो प्रभु की कृपा रही कि उन्हें अधिक चोट नहीं लगी और वे शीघ्र ही मुस्कुराते हुए वहाँ से उठ गयीं ! सुरक्षा के नाम पर सीट बेल्ट का विकल्प मात्र लोहे की एक छड़ होती है जिसे कुर्सी पर बैठने के बाद आपको स्वयं ही अटकाना होता है ! हमारे लिए तो यह भी एक रोमांचक अनुभव था !
खैर लम्बे क्यू से गुज़र कर जब हमारा नंबर आया हम लोग अपनी सीट पर आराम से बैठ गए और रोप वे पर सवारी कर दूसरी पहाडी के शीर्ष पर पहुँच गए ! गहरी खाई के ऊपर से ऐसे गुज़रने में बड़ा मज़ा आ रहा था ! पहाड़ी के दूसरे छोर पर विशेष कुछ नहीं था ! सारा एडवेंचर बस रोप वे की राइड का ही था ! लेकिन वहाँ सबने खूब तस्वीरें खींचीं और खिंचवाईं ! हर लम्हे का आनंद लिया ! आधा घंटा वहाँ रुक कर हम लोग रोप वे से ही नीचे आ गए !
यहाँ से हम लोगों को लंच के लिए जाना था ! झील के किनारे कई बड़े खूबसूरत रिसॉर्ट्स बने हुए हैं ! वहीं चारवाक आरामगाह हमारे लंच का वेन्यू था ! सब कुछ बिलकुल तैयार था ! देख कर हैरानी हुई वहाँ भारतीय पर्यटकों के और भी कई ग्रुप्स थे ! इतने दिनों में यह पहला स्थान देखा जहाँ अच्छी खासी भीड़ थी और वाश रूम्स के आगे लम्बी क्यू लगी थी ! खाना स्वादिष्ट था और हम सबने उसका भरपूर आनंद लिया ! उसके बाद झील के किनारे घूमने के लिए चल दिए !
चिमगन माउन्टेन पर एक बहुत ही विशाल और खूबसूरत झील है ! जाड़ों के मौसम में जब यहाँ खूब बर्फ गिरती है तो यहाँ स्कीइंग भी खूब की जाती है ! इस स्थान को उज्बेकिस्तान का स्विट्ज़रलैंड भी कहा जाता है ! तरह तरह के एड्वेंचर स्पोर्ट्स यहाँ किये जाते हैं ! यहाँ पैरा ग्लाइडिंग और अनेक तरह के वाटर स्पोर्ट्स की व्यवस्था भी है ! इस झील का नाम चारवाक झील है ! जिसका अर्थ होता है चार बाग़ ! इस्लामी संस्कृति में अनेक सुन्दर स्थानों का नाम चार बाग़ रखा जाता है ! वास्तव में यह मान्यता है कि जन्नत में खूब हरियाली से परिपूर्ण चार बगीचे हैं जिनके बीच में सुन्दर नहर बहती है ! कुरआन शरीफ में इन चार बागों और बीच में बहने वाली नहर की खूब प्रशंसा की गयी है ! श्रीनगर का शालीमार बाग़, लखनऊ का चार बाग़, ताजमहल और हुमायूँ के मकबरे में इसी पैटर्न पर बने हुए बगीचे और बीच में बहता पानी इसी परिकल्पना को साकार करते हैं ! एक बात जो उज्बेकिस्तान में नोट की वह यह थी कि पुरानी सुन्दर और ऐतिहासिक इमारतों के साथ साथ रूसी सिविल इंजीनियरिंग और टाउन प्लानिंग के संयुक्त प्रयास ने इन स्थानों की खूबसूरती और उपयोगिता में चार चाँद लगा दिए हैं ! यह झील भी रूसी इंजीनियर्स की काबलियत का अद्भुत नमूना है ! आस पास के पर्वतों से निकलने वाली नदियों के जल को एक बड़े बाँध द्वारा रोक कर इस झील का निर्माण किया गया है ! एक तो पहाड़ी नदियों का शुद्ध जल और सर्दियों में पड़ी हुई बर्फ के पिघल जाने पर जो स्वच्छ जल मिलता है उसीसे इस अथाह गहराई वाली झील को बनाया गया है ! बाँध से नदियों का प्रवाह इस तरह नियंत्रित किया जाता है कि पूरे वर्ष उज्बेकिस्तान की नदियों में पानी का प्रवाह सम रूप में बना रहता है, पूरे देश में भरपूर हरियाली रहती है और फलों के बाग़ बगीचों और फसलों के लिए भी पानी की ज़रा भी कमी नहीं रहती !
ग्रुप के काफी सदस्य झील के किनारे पहुँच चुके थे ! झील का बिलकुल साफ़ नीला पानी हमें आमंत्रित कर रहा था ! आस पास कोई बोट दिखाई नहीं दे रही थी ! बड़ी देर तक झील के किनारे टहलते रहे ! झील के पास एक छोटा सा स्विमिंग पूल भी है ! दूर पहाड़ी पर पैरा ग्लाइडिंग हो रही थी ! पवन चक्कियाँ चल रही थीं ! झील में दूर तक स्पीड बोट्स चल रही थीं उन्हें देखते रहे ! हम सबका मन था बोटिंग करने का लेकिन कोई बोट इतनी बड़ी नहीं थी कि सब एक साथ बैठ जाते ! एक बार में बोट वाला आठ लोगों को ले जा रहा था ! तब सबने यही तय किया कि बारी बारी से ही जाएँ ! हम लोगों का नंबर जब आया लौटने का समय हो गया था ! फिर भी इस सुख से वंचित रहना नहीं चाहते थे ! अंतिम बैच में हम छ: लोग ही बचे थे ! पहले तो बोट वाला दो लोगों का इंतज़ार करता रहा फिर हमारी समय सीमा को देख वह हम छ: लोगों को ही ले गया ! उस स्पीड बोट में बहुत मज़ा आया ! कानों में सीटियाँ बज रही थीं ! लौट कर किनारे तो हम समय से आ गए थे लेकिन हमारी बस ऊपर रोड पर थी ! ढेर सारी सीढ़ियाँ थीं चढ़ने के लिए ! धीरे धीरे तो हम एवरेस्ट तक चढ़ जाएँ लेकिन जल्दी जल्दी चढ़ने में साँस फूल जाती है ! प्यास के मारे गला सूख रहा था ! फ़िक्र हो रही थी कि सब इंतज़ार कर रहे होंगे ! उसी दिन शाम को सम्मलेन का तीसरा सत्र होना भी तय हुआ था ! कहीं उसके लिए देर ना हो जाए यह चिंता भी थी ! ग्रुप के बाकी चार लोग हमसे बहुत कम आयु के थे ! सब फटाफट ऊपर चढ़ गए ! सबसे लेट हम ही पहुँचे ! लेकिन बड़ा अच्छा लगा हमें देखते ही हमारे गाइड सबसे पहले हमें पिलाने के लिए पानी लेकर आये और फिर हमें बस में चढ़ने में भी हेल्प की ! लौटते समय शहर में हम दूसरे रास्ते से आये ! यहाँ सड़क के दोनों ओर दूर तक काले कवर से ढके हुए फलों के पेड़ थे ! हमें लगा ये अंगूर की बेलें होंगी ! अमेरिका में नापा वैली में इतनी ही ऊँचाई के अंगूर के बगीचे देखे थे ! लेकिन गाइड ने बताया कि ये सेव के पेड़ हैं और उन्हें इस तरह इसलिए ढका जाता है ताकि पक्षी फलों को खराब ना करें !
यहाँ से होटल जाना था ! फ्रेश होकर शाम के ताशकंद सम्मलेन के समापन सत्र के लिए तैयार होकर फिर से हमें ऑस्कर होटल जाना था ! तो चलिए घूमने का सिलसिला आज का यहीं समाप्त करते हैं ! अगली कड़ी में आपको समापन सत्र की कुछ झलकियाँ दिखाउँगी ! तब तक के लिए विदा दीजिये !
नमस्कार एवं शुभ रात्रि !


साधना वैद

Saturday, February 1, 2020

ताशकंद यात्रा – १० आ अब लौट चलें



बुखारा से अब ताशकंद लौटने का समय आ गया था ! पो ए कलान कॉम्प्लेक्स से बाहर निकलते ही हमारे गाइड महोदय हमें लंच के लिए एक ओपन एयर रेस्टोरेंट में ले गए ! सब खूब थके हुए थे और प्यासे थे ! यह रेस्टोरेंट एक खूब चौड़ी सी हाइवे के किनारे था ! हाइवे के दूसरी ओर एक बड़ी सी किले की दीवार जैसी थी ! हमारे गाइड ने बताया कि पुराना सिल्क रूट दीवार के उस तरफ से गुज़रता है ! मेरी कल्पना में माल असबाब से लदे ऊँटों, घोड़ों, अनगिनत व्यापारियों और सैनिकों के काफिले उभरने लगे जो कभी अतीत में सदियों तक इस रास्ते से गुज़रे होंगे ! कभी व्यापार के लिए, कभी लूट के लिए तो कभी युद्ध के लिए ! यह हाइवे इसी सिल्क रूट के समानांतर बनाया गया है आवागमन के लिए ! बहुत मन था कि उस ओर जाकर उस पुरानी सिल्क रूट पर कुछ कदम चल कर आऊँ लेकिन समय कम था ! खाने के बाद होटल से सामान भी उठाना था और स्टेशन भी पहुँचना था ! हमारी ट्रेन दिन की ही थी ! ग्रुप के कुछ सदस्य बहुत थक गए थे ! यहाँ बस को पास ही बुला लिया गया था तो बड़ी राहत की साँस ली सबने ! दिन चढ़ रहा था ! गर्मी भी बहुत हो गयी थी ! होटल से अपना सामान उठा हम लोग समय से स्टेशन पहुँच गए !
बुखारा से विदा लेने का समय आ गया था ! इस अल्पावधि के छोटे से मुकाम के बाद भी इस शहर से एक अनचीन्हा सा लगाव मन में हो गया था ! आपको एक बात और बताऊँ ‘बुखारा’ शब्द की उत्पत्ति ‘विहारा’ शब्द से हुई है ! ‘विहार’ शब्द महात्मा बुद्ध के स्थान को कहते हैं ! ‘विहारा’ शब्द कालान्तर में बदलते बदलते ‘बुखारा’ हो गया ! मघोक ए अत्तार मस्जिद की बुनियाद में बौद्ध मंदिर के अवशेष भी मिले हैं इससे इस बात का आभास तो मिलता ही है कि कभी इस स्थान पर बौद्ध धर्म का ध्वज भी अवश्य ही फहराया होगा !
उज्बेकिस्तान के तीन शहर हम देख चुके थे ! तीनों शहरों की खूबसूरत इमारतें, साफ़ सुथरी सड़कें और साफ़ सुथरे रेलवे स्टेशन देख कर दिल प्रसन्न हो गया ! इसका एक महत्वपूर्ण कारण कदाचित यह भी है कि वहाँ जनसंख्या का अंधाधुंध विस्तार नहीं है, लोग जागरूक हैं, अपने शहर अपने देश से प्यार करते हैं और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं ! स्टेशन पर बिलकुल भी भीड़ नहीं थी ! एक बड़े से शेड में यात्रियों के बैठने के लिए कई बेंचें सलीके से लगी हुई थीं ! जब तक हमारी ट्रेन प्लेटफार्म पर नहीं आई स्टेशन पर खड़ी दूसरी ट्रेन्स और वहाँ की गतिविधियों को मैं कैमरे में कैद करती रही ! कुछ ही देर में हमारी ट्रेन भी अपने प्लेटफार्म पर आ खड़ी हुई ! हमारे गाइड ने ठीक समय पर हमें हमारे कम्पार्टमेंट तक पहुँचाया ! डिब्बे के बाहर रेलवे के दो कर्मचारी प्रवेश द्वार पर चुस्त दुरुस्त बड़ी पाबंदी से खड़े हुए थे और लोगों को ऊपर चढ़ने में और उनका सामान चढ़ाने में सहायता कर रहे थे ! यह दृश्य बड़ा सुखदाई था ! अपने देश की याद आ गयी जहाँ रेल के डिब्बे से उतरते चढ़ते समय एक आम यात्री को किस तरह धक्का मुक्की का सामना करना पड़ता है ! जनरल कम्पार्टमेन्ट्स की दशा तो और भी शोचनीय होती है ! वहाँ भी यदि हर डिब्बे के सामने इसी तरह यात्रियों की सहायतार्थ रेलवे के एक दो कर्मचारी खड़े हो जाया करें तो यात्रियों को कितनी सुविधा हो जाया करे और अनेकों अप्रिय स्थितियों से बचाव भी हो जाया करे ! बेरोज़गारी की समस्या में भी शायद कुछ कमी आये ! भारत विशाल देश है और यहाँ का रेलवे का नेटवर्क भी उतना ही बड़ा है !
शीघ्र ही हमें उस डिब्बे से उतरना पडा ! रेलवे के टीटी ने हमारे टिकिट को देख कर बताया कि हमारे ग्रुप का रिज़र्वेशन दूसरे डिब्बे में था ! बिना किसी हाय तौबा के बड़े आराम से उतर कर हम अपने नियत डिब्बे में चढ़ गए और अपने अपने कूपों में आराम से बैठ गए ! यात्रा लम्बी थी लेकिन इसके बाद भी सब उत्साहित थे, खुश थे और जोश में थे क्योंकि इतने दिनों के बाद यह पहला मौक़ा मिला था ग्रुप के लोगों को जब वे एक दूसरे के साथ को भरपूर एन्जॉय करने वाले थे क्योंकि ट्रेन में इसके अलावा अन्य कोई काम था ही नहीं करने के लिए ! ट्रेन बुखारा से चल पड़ी थी !
यह ट्रेन भी बहुत साफ़ सुथरी और आरामदेह थी ! छ: छ: यात्रियों के कूपे थे ! हमारे ग्रुप के सभी साथी पाँच कूपों में समा गए ! हमारे कूपे में रायपुर की मधु सक्सेना जी, चंद्रकला त्रिपाठी जी और जगदलपुर से आई हुईं सुषमा झा जी और उनके पतिदेव श्री राजेन्द्र झा जी थे ! सफ़र में सहयात्री अगर हम ख़याल और हमनज़र और हम शौक मिल जाएँ तो वक्त कब और कैसे गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता ! चंद्रकला जी का व्यक्तित्व बहु आयामी है ! बहुत ही सरल स्वभाव और विलक्षण प्रतिभा की स्वामिनी हैं वे ! साहित्य सेवा के साथ साथ उन्होंने समाज सेवा के लिए भी अपने जीवन का बहुत समय बिताया है ! उनके अनुभवों को सुन कर कोई भी इंसान सामाजिक समस्याओं के निवारण हेतु अपना सक्रिय योगदान देने के लिए बहुत प्रेरणा ले सकता है ! लोक गीतों और लोक कथाओं का उनके पास बड़ा ही समृद्ध खज़ाना है ! उनकी मधुर ओजमयी आवाज़ आज भी कानों में गूँजती है ! उनके साथ बिताये वो चंद घंटे मेरे लिए बहुत ही अनमोल हो गए क्योंकि उनसे बहुत कुछ नया सुनने और सीखने को मिला ! मधु सक्सेना जी जितनी अच्छी वक्ता हैं, कवियित्री हैं. और कुशल संचालिका हैं उतनी ही अच्छी गायिका भी हैं ! सुषमा झा जी तो बहुत ही बढ़िया गाती हैं इसमें कोई संदेह ही नहीं है ! संगीत का थोड़ा बहुत शौक मुझे भी है ! ताशकंद तक की यात्रा अपने अनुभवों को एक दूसरे के साथ साझा करते, गीतों ग़ज़लों को सुनते सुनाते कब समाप्त हो गयी पता ही नहीं चला ! बीच बीच में सब दूसरे कूपों के सहयात्रियों की खोज खबर भी ले रहे थे ! मधु जी, नीलिमा मिश्रा जी, यास्मीन मूमल जी, सुषमा झा जी ने एक से बढ़ कर एक खूबसूरत गीत सुनाये ! राजेन्द्र झा जी और हमारे पतिदेव आदर्श श्रोता की भूमिका निभाते रहे ! इतने कलाकार हों तो श्रोताओं का होना भी लाजिमी हो जाता है ! छ: घंटे की वह यात्रा बहुत ही सुखद बीती ! टिट बिट्स खाते पीते, हँसते गाते हम रात के दस बजे के करीब ताशकंद पहुँच गए !
स्टेशन पर हमारे ताशकंद के चुस्त दुरुस्त गाइड मोहोम्मद ज़ियाद अपनी बस के साथ हमारी अगवानी के लिए उपस्थित थे ! बस में बैठने के बाद सबको थकान का अनुभव होने लगा था ! बाहर की खुशगवार हवा मीठी थपकी का काम कर रही थी ! और सबको नींद आने लगी थी ! लेकिन यही तय हुआ कि पहले डिनर के लिए जायेंगे उसके बाद ही होटल जायेंगे ताकि आराम से सो सकें ! खाने का मेरा तो वशेष मूड नहीं था लेकिन ग्रुप में आप अपने ही मूड के अनुसार नहीं चल सकते सबका ख़याल रखना होता है ! स्टेशन से डिनर वाले होटल का रास्ता बड़ा लंबा लग रहा था ! शायद इसलिए भी कि बड़ी ज़ोर से नींद आ रही थी ! खैर अंतत: हम पहुँच ही गए होटल ऑस्कर जहाँ हमें डिनर के लिए जाना था ! सब कुछ बिलकुल तैयार था ! जाते ही खाना सर्व कर दिया गया ! खाना देखते ही जैसी हर्ष ध्वनि सबके गले से निकली मेरी नींद भी उड़ गयी ! सबकी बाछें खिली हुई थीं ! बिलकुल विशुद्ध भारतीय विधि से बनाया हुआ खाना था वह भी अत्यंत स्वादिष्ट जैसे अपने घर में अपनी रसोई में ही बना हुआ हो ! स्वादिष्ट तड़के के साथ अरहर की पीली दाल, गोभी आलू की सब्जी, मटर पनीर की सब्जी, पतली पतली रोटियाँ, प्लेन चावल, छाछ, गुलाब जामुन ! इनके अलावा और भी कई चीज़ें ! इतने दिनों के बाद अपने देश का स्वाद मिला आत्मा तृप्त हो गयी ! सबने छक कर खाना खाया ! हम लोगों के ग्रुप के लिए विशेष तौर पर एक भारतीय शेफ से यह खाना बनवाया गया था ! सच में मज़ा आ गया !
खाना खाने के बाद तो बस एक ही तलब लगी थी कि जल्दी से सो जाएँ ! होटल ऑस्कर से हमारा होटल ग्रैंड प्लाज़ा अधिक दूर नहीं था ! जल्दी ही हम लोग वहाँ पहुँच गए ! अगले दिन सुबह चिमगन माउन्टेन जाने का कार्यक्रम था ! जल्दी उठना भी था और सुबह की तैयारी भी करनी थी ! तो बिना वक्त गँवाए सब अपने अपने कमरों में पहुँच गए ! तो चलिये आज के संस्मरण को मैं भी यहीं विराम देती हूँ ! जल्दी ही फिर आपसे मुलाक़ात होगी अगली कड़ी में जब हम चलेंगे चिमगन माउन्टेन और वहाँ खूब सारी एडवेंचर एक्टिविटीज करेंगे भी और लोगों को करते हुए देखेंगे भी ! तो दोस्तों अभी विदा लेती हूँ आपसे !
शुभ रात्रि !


साधना वैद