हे
प्रभु
जब
तुमने नारी को बनाया
तो
क्यों उसे इतना कोमल
कमनीय
बनाया कि
इस
निर्मम संसार में
चहुँ
ओर पसरे दरिंदों से
अपनी
रक्षा करने में
वह
कमज़ोर पड़ जाती है ,
और
फिर जीवनपर्यंत एक
अकथनीय
वेदना और
शर्मिंदगी
के बोझ तले
अपने
ही मन के गह्वर में
कहीं
गहराई तक नीचे
गढ़
जाती है !
तुमने
जब उसका
करुणा
से ओत-प्रोत
अत्यंत
कोमल ह्रदय
बनाया
था तो साथ ही
उसमें
हिमालय सा अटल
अडिग
और वज्र सा कठोर
निर्णय
लेने का हौसला भी
दिया
होता ताकि वह
अविचलित
हो
अपने
अपराधियों का
सटीक
न्याय कर पाती ,
और
हर आताताई को
अपने
समक्ष
घुटने
टेकने के लिए
विवश
कर पाती !
तुमने
जब उसके नयनों में
बहाने
के लिए
अगाध
प्यार, ममता और
करुणा
का गहरा सागर
भर
दिया तो उसके
नैनों
के तरकश में
अनवरत
रूप से चलने वाले
अक्षय
अग्नेयास्त्र भी
क्यों
नहीं भर दिये
कि
वह हर पापी को उसके
पाप
का दण्ड वहीं दे
न्याय
कर पाती ,
और
ऐसे कई असुरों को
अपने
अग्निबाणों से
भस्म
कर इस धरा को
पापियों
से मुक्त कर पाती !
तुमने
जब संसार के
सबसे
बड़े वरदान
मातृत्व
का सुख उठाने के लिए
उसके
शरीर में कोख बनाई
तो
क्यों नहीं उसके शरीर में
ऐसी
शक्तिशाली
विद्युत
तरंगें भी डाल दीं
कि
गंदे इरादों से उसे स्पर्श
करने
वालों को छूते ही
कई
हज़ार वोल्ट का
झटका
लग जाता
और
वह वहीं का वहीं
ढेर
हो जाता ,
और
यह संसार एक
हिंसक
एवं आक्रामक
आदमखोर
पशु के बोझ से
उसी
वक्त हल्का हो जाता !
बोलो
प्रभु
मानते
हो ना
भूल
तो तुमसे भी हुई है !
है
ना?
साधना
वैद