काग़ज़ की कश्तियाँ
आ
गया
सावन
भर गई
साफ पानी से
घर की सड़क
आओ तैराएँ हम
काग़ज़ की कश्तियाँ
रख लें पकड़
वीर बहूटी
मखमली
प्यारी सी
डिब्बी
में
ले
आया
कितनी
ढेर सारी
मुस्कुराहटें
और थमा गया
कागज़ की कश्तियाँ
और ढेरों मस्तियाँ
चंचल हाथों में
बनने लगीं
कागज़ की
कश्तियाँ
बातों
में
दे
गया
सुंदर
उपहार
मनभावन
मधुर यादों का
विरहिन गोरी को
देखती है राह जो
खिड़की से टिकी
प्रियतम की
रिमझिम
फुहारों
संग
ही
साधना वैद
वाह! खूबसूरत सृजन!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शुभा जी ! आभार आपका !
Deleteकिश्तियों से बुनी कविता
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनीता जी ! बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteहार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र जी ! बहुत बहुत आभार आपका ! सादर वन्दे !
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी ! आपका बहुत बहुत आभार !
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