यूँ तो सारी दुनिया में तो बाल दिवस २० नवंबर को मनाया जाता है ! परन्तु भारत में यह महत्वपूर्ण दिन १४ नवंबर को मनाया जाता है जो हमारे लोकप्रिय नेता श्री जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन है ! नेहरू जी को बच्चों से बहुत प्यार था और वो उनके विकास व हित के प्रति सदैव बहुत चिंतित रहते थे ! बाल दिवस को एक लोक प्रिय उत्सव की तरह सारे देश में मनाया जाता है ! स्कूलों में जलसे होते हैं, बच्चों को पिकनिक के लिये पार्कों या मनोरंजन स्थलों पर ले जाया जाता है और इस बहाने बच्चे “चाचा नेहरू” को भी याद कर लेते हैं ! पण्डित नेहरू यह मानते थे कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं इसलिए उन पर ध्यान देना और उनकी बेहतरी के लिये प्रयत्न करना हमारा सबसे प्रमुख कर्तव्य होना चाहिये ! आइये देखें कि पण्डित नेहरू की मृत्यु के ४७ सालों के बाद हम इस प्रयास में कितने सफल हो पाये हैं !
एक अरब से ऊपर की आबादी वाले हमारे देश में लगभग पैंतालीस करोड़ बच्चे हैं ! पर दुःख की बात है कि प्रतिदिन दस हज़ार बच्चों की मृत्यु कुपोषण और डायरिया जैसी साधारण बीमारियों से हो जाती है ! हर वर्ष बीस लाख बच्चे अपनी पहली वर्षगाँठ मनाने से पूर्व ही काल कवलित हो जाते हैं ! प्रति दिन एक करोड़ बच्चे सर पर छत के अभाव में आधा पेट खाना खाकर सड़कों पर ही रात गुजारने के लिये मजबूर होते हैं ! हमारे संविधान के द्वारा मिले हुए शिक्षा के बुनियादी अधिकार से ये बच्चे वंचित रह जाते हैं ! दुनिया के सबसे अधिक कामकाजी बच्चे हमारे देश में हैं जो दयनीय स्थितियों में बहुत कम दिहाड़ी पर बारह-बारह घण्टे काम करने के लिये विवश हैं ! प्रतिवर्ष पैतालीस हज़ार बच्चे लापता या गुम हो जाते हैं और पेशेवर अपराधियों के हत्थे चढ़ जाते हैं ! इस संख्या में पाँच से पन्द्रह वर्ष की लड़कियों की संख्या भी शामिल है जो निश्चित रूप से चिंता का विषय है !
बचपन, जिसमें बच्चा खेल खेल में ही अपने आसपास की दुनिया को खोजता है, कौतुहल के साथ समाज के नियमों और कायदों को सीखता है, संस्कारों को ग्रहण करता है, और मानवीय संवेदनाओं को अपने मन में अनुभव करता है, समाज में रह कर एक दूसरे के साथ सामंजस्य के साथ जीना सीखता है, शिक्षा ग्रहण कर अपना ज्ञान बढ़ाता है और उचित पौष्टिक आहार एवं खेलकूद के साथ अपनी शारीरिक एवं मानसिक शक्ति को विकसित करता है, ऐसे स्वस्थ बचपन को जीने के बाद ही वह एक योग्य और ज़िम्मेदार नागरिक बनता है जिस पर हम गर्व भी कर सकते हैं और अपने देश के सुंदर भविष्य के प्रति निश्चिन्त भी हो सकते हैं ! लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में जिस हाल में भारत के अधिकाँश बच्चे जी रहे हैं और उन पर जो कुछ आज बीत रहा है उसके बाद यदि उनका विकास हमारी अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो रहा है तो क्या यह हमारे देश का दुर्भाग्य नहीं है ?
हमें बाल दिवस अवश्य मनाना चाहिये ! यह हमारा महत्वपूर्ण पर्व है लेकिन इस दिन सबसे अधिक विमर्श इस बात पर ही होना चाहिये कि इन वंचित बच्चों के लिये हम, हमारी सरकार और हमारी सामाजिक संस्थाएं क्या कर सकती हैं और क्या कर रही हैं ! यद्यपि यह समस्या गरीबी से जुड़ी हुई है तथापि हमारे गरीब देश में जो भी संसाधन उपलब्ध हैं उसका बड़ा हिस्सा यदि इन बच्चों के बेहतर विकास के ऊपर खर्च किया जाये और उचित नियंत्रण रख इसे भ्रष्टाचार रूपी दानव के चंगुल में जाने से बचा लिया जाये तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है ! यह ऐसी मेहनत होगी जिसका फल निश्चित रूप से बहुत मीठा होगा और तब बाल दिवस को हम सही अर्थों में एक राष्ट्रीय पर्व की तरह मना सकेंगे !
साधना वैद
Nice post.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट...आप के द्वारा उठाई गयी बातें विचारनीय है
ReplyDeleteबहुत दुःख होता है जिनके जन्मदिवस पर ये दिन मनाया जाता है न तो उन्होंने न ही उनके वंशजों ने इस समस्या पर ध्यान दिया..
nyi saargarbhit jaankari ke liyen shukriya .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeletebahut sunder vicharneey post.
ReplyDeleteham sabhi naagrik jo vitteey roop se kuchh sahayta kisi ki kar sakte hain to kyu na kisi ek gareeb bacche ka kharch vahan karne ki jimmedari lekar samaj me aisi gareeb bacchho ke sahayak bane.
sab mil kar prayas karenge to ye samasya kuchh had tak samapt ho jayegi.
बहुत सारगर्भित और विचारणीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteयह हमारा महत्वपूर्ण पर्व है लेकिन इस दिन सबसे अधिक विमर्श इस बात पर ही होना चाहिये कि इन वंचित बच्चों के लिये हम, हमारी सरकार और हमारी सामाजिक संस्थाएं क्या कर सकती हैं और क्या कर रही हैं !
ReplyDeleteआंकड़ों के साथ प्रस्तुत एक सार्थक लेख ...विचारणीय मुद्दा उठाया है .. प्रयास तो निश्चय ही किये जा रहे हैं पर वो आवश्यकता से काफी कम हैं ..
एक विचारणीय पोस्ट,जो सोचने पर मजबूर कर देती हे कि भारत तो गाँव में बसता हे. पर क्या ये गाँव भी भारत में बसते हें? देर तो हो चुकी हे, पर फिर भी हम इस दिशा में सकारात्मक प्रयास कर सकते हें और हमें यह करना ही होगा.
ReplyDeleteविचारणीय एवं आवश्यक विमर्श!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट और सही मुद्दा |श्रेष्ठ लेखन कला |
ReplyDeleteबधाई |
आशा
सार्थक चिंतन प्रस्तुत करती पोस्ट!
ReplyDelete----
कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ...सार्थक व सटीक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजबतक...इन बच्चों को दो जून भरपेट खाना..और प्रारम्भिक शिक्षा मयस्सर नहीं...काहे का बाल-दिवस..
ReplyDeleteशर्म आती है... एक तरफ तो हमारा देश प्रगति के रोज नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है...और दूसरी तरफ अपने दूधमुहें बच्चों का ख्याल भी नहीं रख पा रहा...
बहुत ही विचारोत्तेजक आलेख....
सार्थक और विचारणीय आलेख...
ReplyDeleteसादर बधाई...
साधना जी.
ReplyDeleteआपने संवेदन शील मानवीय विषय को उठाया,
जो की विचारणीय है और चिंतन की आवश्यकता है,
मेरे नये पोस्ट में स्वागत है.....
सरकारी प्रयास तो अपनी गति से चलते है उन पर हमारा बस् नही पर आम आदमी अपने गिलहारी जैसे प्रयास तो कर ही सकता है । कम से कम अपनी सीमित सेवाओ और साधनो से इन लाडलो का कुछ भला तो हो ही जायेगा ।
ReplyDeleteयदि एक समर्थवान किसी एक बच्चे को भी समर्थ बना सके आज के दिन तो ये दिन मनाना सफल है ...
ReplyDeleteBahut sundar vichar hain aapke, kash is bhaart main in bachhon ke liye kuchh achha ho pata
ReplyDeleteVijay Saxena