Monday, August 6, 2012

आदत

आँखों के दरीचों में
वक्त की सुनामी और
गहन तीव्रता से आये भूकंप
के बाद भी एक
नन्हा सा, नाज़ुक सा ख्वाब
पलकों की ओट में
कहीं अटका रह गया है !
डरती हूँ
तुम्हारी उपेक्षा की आँच
कहीं इसे झुलसा कर
नष्ट ना कर दे 
और मेरी आँखों के ये दरीचे
कहीं फिर से
सूने ना हो जाएँ !
आजकल सन्नाटों की आशंका
मुझे बहुत डरा जाती है
क्योंकि मुझे
संशय और दुविधाओं के साथ  
जीने की आदत
जो पड़ गयी है ! 
साधना वैद

19 comments:

  1. गहन अर्थ लिए हुए रचना...
    सुन्दर !!
    सादर
    अनु

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  2. सुनामी और भूकंप के बाद भी कोई ख्वाब टिका रहे तो उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता ...सन्नाटा तूफान से पहले की शांति होता है .... :):) मन की दुविधा को बखूबी बयान किया है

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  3. डरती हूँ
    तुम्हारी उपेक्षा की आँच
    कहीं इसे झुलसा कर
    नष्ट ना कर दे
    और मेरी आँखों के ये दरीचे
    कहीं फिर से
    सूने ना हो जाएँ !

    हम्म...
    बड़ी मुश्किल से बचा के रखे हैं अब तक...!
    खूबसूरत..!

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  4. गहरा अर्थ छिपा है इस रचना में |बहुत सुन्दर |
    आशा

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  5. मन की दुविधा को बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया है साधना जी ..सुन्दर रचना

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  6. तूफान के बाद या पहले के सन्नाटे भयभीत करते ही हैं !
    दुविध्ग्रस्त मन को बयान करती भावपूर्ण कविता !

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  7. एक ख्वाब अटका रह ही जाता है , लेने लगता है विस्तार .... फिर डर !
    दुविधा ही जीवन है

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  8. वक्त की सुनामी और
    गहन तीव्रता से आये भूकंप
    के बाद भी एक
    नन्हा सा, नाज़ुक सा ख्वाब
    पलकों की ओट में
    कहीं अटका रह गया है
    अब उस ख़्वाब का कोई
    कुछ नहीं बिगाड़ सकता !
    उसे पूरा होना ही होगा !

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  9. गहन अर्थ लिए हुए रचना

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  10. संवेदनशील रचना ...

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  11. बहुत - बहुत सुन्दर
    गहनता लिए बेहतरीन अभिव्यक्ति...
    :-)

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  12. सुन्दर,गहन, भावपूर्ण.

    श्रीकृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  13. bimar thi isliye itne dino se apki post nahi padh saki. maafi chaahti hun.

    bahut sunder varnan kiya hai man ki duvidha ka, aur bimbo/prateekon ka sunder prayog hai.

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  14. आज 14/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  15. होने और ना होने के बीच अटकी जिंदगी का सच

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  16. तुम्हारी उपेक्षा की आँच
    कहीं इसे झुलसा कर
    नष्ट ना कर दे
    और मेरी आँखों के ये दरीचे
    कहीं फिर से
    सूने ना हो जाएँ !

    bahut hi sundar aur prabhavshali rachana .....sadar badhai

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