दूर
क्षितिज तक
रेलगाड़ी
की
समानांतर
पटरियों जैसे
साथ-साथ
चलते रिश्ते
मैंने
भी खूब निभाये हैं,
जिन
पर सवार होकर
जाने
कितने मुसाफिर
अपने
गंतव्य तक
पहुँच
गये लेकिन
पटरियाँ
ताउम्र उसी तरह
एक
दूसरे को
छुए
बिना लोगों को
मंजिल
तक
पहुँचाने
का ज़रिया
बनी
रहीं !
रंग
बिरंगे उलझे धागों
में
से सिरे ढूँढने की
कोशिश
की तरह
मैंने
तमाम उलझे
रिश्तों
को भी
पूरे
मनोयोग से
सुलझाने
की
कोशिश
में
अपना
सारा जीवन
लगा
दिया
वांछित
फल
कभी
मिला तो
कभी
नहीं मिला
लेकिन
ज़िंदगी ज़रूर
एक
अनवरत कोशिश
बन
कर रह गयी !
वर्षों
से
वक्त
की गर्द से
धुँधलाये,
सँवलाये,
बदरंग
रिश्तों को
लगन
और मेहनत
सद्भावना
और प्यार
के
लेप से
घिस
माँज कर
मैंने
चमकाने की
चेष्टा
की है !
रिश्ते
तो शायद ज़रूर
कुछ
चमक गये हों
लेकिन
इस कोशिश में
मेरा
चेहरा कुम्हला कर
कब
बेरंग हो गया
इसका
तो कभी
होश
ही नहीं रहा !
बस
अब यही कामना है
थकी
हुई नज़र,
टूटा
हौसला
और
थमती साँसें
मन
की झुर्रियों को
इतना
न बढ़ा दें
कि
उस पर
किसी
रिश्ते का नाम
चिपकने
से ही
इनकार
कर दे
और
रिश्ते सँवारने का
मेरा
हर प्रयास
विफल
हो जाये !
साधना
वैद
मैंने तमाम उलझे रिश्तों को
पूरे मनोयोग से सुलझाने की कोशिश में
अपना सारा जीवन लगा दिया
रिश्ते निभाना बहुत बड़ी कला है …
सुंदर भावप्रद कविता है आपकी …
आदरणीया साधना जी
सादर प्रणाम !
आशा है सपरिवार स्वस्थ सानंद हैं
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
thaki saansen
ReplyDeletejhurriyon ki mahin lakiren
is sukun mein rahti hain
ki swarnim suraj baantne mein
manzil ka pata dene mein main swarthi nahi hui ....
आपका यह प्रयास विफल नहीं होगा .... बहुत सुंदर भाव रचना के .... रिश्तों की चमक बरकरार रहे ...
ReplyDeleteबहुत ही सही तुलना की है पटरियों से रिश्तों की त सुन्दर और भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
बहुत गहन और सुंदर भाव हैं .....आप के मन की झुर्रियां सुलझे हुए मुलायम रेशम की तरह है साधना जी चमक और कोमलता दोनों से परिपूर्ण ....तभी तो आपका काव्य भी उज्ज्वल है ...
ReplyDeleteबधाई इस रचना के लिए .....
प्रयास सफल ही होगा !
ReplyDeleteमन तो जानता ही होगा !
शुभकामनायें !
कुछ रिश्ते होते हैं
ReplyDeleteजो हर रिश्ते को सहेजते हैं
बचाते हैं बिखरने से
उनका होना ही
सब कुछ होता है
...
कुछ रिश्ते
तपस्वी होते हैं
एक साधना जो निरन्तर
तप में लीन रहती है
बस आप उसी तपस्वी की भांति हैं ...
सादर
बहुत गहन सुंदर भाव की रचना,,,,
ReplyDeleterecent post...: अपने साये में जीने दो.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबस अब यही कामना है
थकी हुई नज़र,
टूटा हौसला
और थमती साँसें
मन की झुर्रियों को
इतना न बढ़ा दें
कि उस पर
किसी रिश्ते का नाम
चिपकने से ही
इनकार कर दे
बहुत सुन्दर भाव साधना जी...
सादर
अनु
bahut sunder bhaav sanjoye hain aur naye upma/prateekon ka prayog rachna ko saraahneey bana raha hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत गहन और भावपूर्ण रचना...बहुत सुंदर...
ReplyDeleteरिश्ते निभाना भी एक कला है और अक्सर कई इम्तिहानों से गुज़रना पड़ता है....! आपने बहुत खूबसूरती से उसकी गहनता को प्रस्तुत किया है...
ReplyDelete~सादर !!!
बहुत खूब ...
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