Friday, January 18, 2013

शर्मिन्दा हूँ मैं ---

एक बलात्कारी की माँ का करुण आर्तनाद है यह जो ह्रदय को चीर देता है !



आज याद करती हूँ
तो बड़ा क्षोभ होता है कि  
तुझे पाने के लिए मैंने  
कितने दान पुण्य किये थे
कितने मंदिर, मस्जिद
गुरुद्वारों में
भगवान् के सामने जाकर
महीनों माथा रगड़ा था !
वो किसलिये ?
तुझ जैसे कपूत को पाने के लिए ?
तुझे पाने के बाद
मेरी खुशी का कोई
ठिकाना न था !
मेरे पास किसी डायरी में
लेखा जोखा नहीं है कि  
तेरी एक मुस्कान पर
कितनी बार बलिहारी जाकर
मैंने तेरा माथा चूमा होगा !
तेरे रोने की एक
मद्धिम सी आवाज़ पर    
विह्वल होकर तुझे
कितनी बार अपने
कलेजे से चिपटाया होगा !
तेरे हलके से बुखार पर
अपनी हज़ार जानें तुझ पर
न्यौछावर करने की
कितनी कसमें खाई होंगी  
और रात-रात भर
बाहों के झूले में
तुझे झुला कर अपनी
कितनी रातों की नींदें
कुर्बान की होंगी !
क्या इस दिन के लिए ?  
आज धिक्कारती हूँ
मैं स्वयं को कि मैंने
तुझ जैसे दुराचारी
कपूत के लिए
अपने मन की
सारी निश्छल प्रार्थनायें,  
सारा अनमोल प्यार
और अपना सारा
वात्सल्य और ममता
यूँ ही लुटा कर  
व्यर्थ कर दीं !
आज महसूस होता है
एक बलात्कारी की माँ
कहलाने से तो अच्छा
यही होता कि
तू जन्म लेते ही
मर गया होता !
या फिर मैं
बाँझ ही रह जाती !
तुझ जैसे कुकर्मी को
जन्म देने के गुनाह
से तो कम से कम
बच जाती !
उस समय अपने
दुर्भाग्य पर कुछ दिन
रोकर चुप हो जाती
लेकिन अब जिस
दुःख का बोझ तूने
मेरे सीने पर
जीवन भर के लिये
लाद दिया है
धरती के सारे पर्वतों का
भार भी उस बोझ के सामने
फूलों सा हल्का होगा और
सारी दुनिया के सामने
मुझे लज्जित कर
जितने आँसू तूने मेरी
आँखों में भर दिये हैं
सातों सागरों का खारा पानी
भी उनके सामने
बूँद सा नगण्य होगा !
अब तू मेरे सामने
कभी न आना
क्योंकि यहाँ की अदालत
तेरा फैसला कब करेगी
मैं नहीं जानती
लेकिन अगर तू
मेरे हाथों पड़ गया तो
एक हत्यारिन माँ
होने का पट्टा
मेरे माथे पर
ज़रूर चिपक जायेगा !
फिर चाहे मुझे फाँसी हो
या उम्र कैद
तुझ जैसे व्यभिचारी को
पैदा करने का
इससे बड़ा पश्चाताप
मेरी नज़र में  
और कोई नहीं होगा
और शायद अपनी माँ की
कोख को लजाने के लिये
और किसी मासूम का जीवन
बर्बाद करने के लिये
इससे बड़ी सज़ा तेरे लिये
और कोई नहीं होगी ! 

साधना वैद 

चित्र गूगल से साभार

16 comments:

  1. एक माँ के कलेजे के टुकड़े ...

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  3. आपकी ये रचना
    सचमुच रुला गई
    सादर

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  5. शब्‍दश: मन चीत्‍कार करता है ...

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  6. लेकिन अगर तू मेरे हाथों पड़ गया तो एक हत्यारिन माँ होने का पट्टा मेरे माथे पर ज़रूर चिपक जायेगा ! फिर चाहे मुझे फाँसी हो या उम्र कैद तुझ जैसे व्यभिचारी को पैदा करने का इससे बड़ा पश्चाताप मेरी नज़र में और कोई नहीं,,,,

    लाजबाब अभिव्यक्ति,,साधना जी,,

    recent post : बस्तर-बाला,,,

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  8. कविता ने आँखें नम कर दीं |बहुत सशक्त अभिव्यक्ति |
    आशा

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  9. माँ आखिर एक महिला है और अपने ही अंश से अपने ही स्वरूप का ऐसा अपमान उसे लज्जित ही नहीं बल्कि उसके ममतत्व के टुकडे टुकडे कर गया .

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  10. सच माँ के दिल से कोई पूछे ...
    कितना दर्द देती हैं उसकी नालायक संतानें ...

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  11. संस्कारवान माँ का अंतरनाद ..... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति ।

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  12. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति....

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  13. क्या कहूँ ? सब कुछ तो उस माँ के दर्द ने बयाँ कर दिया

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  14. अत्यंत संवेदनशील और मार्मिक दिल को छू गयी यह रचना. बहुत बधाई.

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  15. तुझ जैसे व्यभिचारी को
    पैदा करने का
    इससे बड़ा पश्चाताप
    मेरी नज़र में
    और कोई नहीं होगा
    और शायद अपनी माँ की
    कोख को लजाने के लिये.

    ऐसी माँ बेचारी भी रोने के आलावा क्या कर सकती है. मन को द्रवित करती है यह कविता.

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