Thursday, January 31, 2013

दो जिद्दी पत्ते







पतझड़ की बेरहम   
मार के बाद भी
ना जाने कहाँ से
आशा और अभिलाषा के
दो जिद्दी पीले पत्ते  
सबसे ऊँचे दरख़्त की   
सबसे सूखी शाख पर
पता नहीं क्यों
अटके रह गए हैं !
मैं पेड़ के नीचे
अपना आँचल फैलाये
धूप में सिर्फ इसीलिये खड़ी हूँ
कि ज़मीन पर गिरने
की बजाय उन्हें
मैं अपने
आँचल में समेट लूँ !
चाहती हूँ कि उन्हें   
मेरे आँचल का
आश्रय मिल जाये
वरना वक्त की
निर्मम धूप में जले
ये सूखे सुकुमार पत्ते
अगर टूट कर
ज़मीन पर गिर गये
तो पैरों के नीचे
रौंदे जाकर
चूर-चूर हो जायेंगे
और उनका यह हश्र
मैं बर्दाश्त नहीं
कर पाऊँगी
और मैं
जानती हूँ कि
किसी भी पल
उनका टूट कर
झड़ जाना तय है !

साधना वैद

12 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 02/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. सुन्दर भावाव्यक्ति

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  3. जो इस दुनिया में आया है एक दिन उसका जाना तय है,,,भावपूर्ण रचना

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  4. आस कभी न टूटे...अभिलाषाएं पूरी हों....
    जतन तो करने होंगे...
    बहुत सुन्दर भाव...

    सादर
    अनु

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  5. आशा और अभिलाषा के पत्तों को रौंदने से बचाना ही होगा .... आपका अंचल इतना विस्तृत रहे कि ये जिद्दी पत्ते आप महफूज रख सकें ... बहुत सुंदर रचना

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  6. शायद कोई आस ..कोई डोर उन्हें अब भी बांधे है ......जैसे आपको ...बहुत सुन्दर ममतामयी अभिव्यक्ति

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  7. वे पत्ते जिद्दी नहीं बल्कि दृढ़ प्रतिज्ञ हैं...शायद निश्चिंत भी हैं कि झड़ भी गए तो नीचे एक ममतामयी आँचल फैला है उनके लिए !!

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  8. उन पत्तों की जिद जिजीविषा है और आपका आँचल उस जिद की विजिगीषा

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  9. चाहती हूँ कि उन्हें
    मेरे आँचल का
    आश्रय मिल जाये
    ... अनुपम भाव
    सादर

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  10. आशा और अभिलाषा दो जिद्दी पत्ते बहुत उम्दा बिम्ब और सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  11. मातृत्व के बहुत सुंदर भाव ....
    सार्थक अभिव्यक्ति ......

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