घृणा और जुगुप्सा के मारे दो तीन
दिन से संज्ञाशून्य होने जैसी स्थिति हो गयी है ! शर्मिंदगी, क्षोभ और गुस्से का यह आलम है कि लगता है मुँह
खोला तो जैसे ज्वालामुखी फट पड़ेगा !
यह किस किस्म के समाज में हम रह रहे हैं जहाँ ना तो इंसानियत
बची है, न
दया माया
ना ही मासूम बच्चों के प्रति ममता और करुणा का भाव ! इतना तो मान कर चलना
ही होगा कि इस तरह की घृणित मानसिकता वाले लोग जानवर ही होते हैं ! अब चिंता
इस बात की है कि प्रतिक्षण बढ़ने वाली जनसंख्या में ऐसे जानवर कितने पैदा
हो रहे हैं और कहाँ कहाँ हो रहे हैं इस आँकड़े का निर्धारण कैसे हो ! समस्या
का हल सिर्फ एक ही है कि इन जानवरों को इंसान बनाना होगा ! उसके लिये
जो भी उपाय हो सकते हैं किये ही जाने चाहिये ! सबसे पहले पोर्न फ़िल्में
और वीडियोज दिखाने वाले टी वी चैनल्स पर तत्काल बैन लगा दिया जाना चाहिये
! फिल्मों में दिखाये जाने बेहूदा आइटम सॉंग्स,
अश्लील दृश्य व
संवाद,
जो आजकल फिल्म की सफलता की गारंटी माने जाते हैं, सैंसर बोर्ड द्वारा पास ही नहीं किये जाने चाहिये !
समाज का एक अभिन्न अंग होने के नाते
महिलाओं की भी जिम्मेदारी होती है कि समाज में हर पल बढ़ते इस
मानसिक प्रदूषण
को रोकने के लिये कुछ कारगर उपाय करें ! इसलिये केवल खोखली शोहरत और धन कमाने
के लिये अभिनेत्रियों व मॉडल्स को ऐसी फिल्मों व विज्ञापनों में काम करने
से मना कर देना चाहिये जिन्हें देख कर समाज के लोगों की मानसिकता पर दुष्प्रभाव
पड़ता हो ! स्त्री एक माँ भी होती है ! अपने बच्चों को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिये एक माँ
हर संभव उपाय अपनाती है ! आज
भारतीय समाज भी ऐसे ही निरंकुश,
पथभ्रष्ट और संस्कारविहीन लोगों से भरता जा रहा
है ! महिलाओं को माँ बन कर उन्हें सख्ती से रास्ते पर लाना होगा और इसके
लिये सरकार को भी कुछ सख्त कदम उठा कर क़ानून कायदों को प्रभावी और समाजोपयोगी
बनाना होगा ! पश्चिमी
संस्कृति का जब और सारी बातों में अनुसरण
किया जाता है तो इस बात में भी तो किया जाना चाहिये कि वहाँ की
क़ानून व्यवस्था
कितनी सख्त और पुख्ता है और उसका इम्प्लीमेंटेशन कितना त्वरित और असरदार
होता है ! वहाँ
किसी व्यक्ति के खिलाफ, बलात्कार
तो बहुत बड़ी बात है, यदि ईव टीज़िंग की शिकायत भी दर्ज कर दी
जाती है तो उसे सज़ा तो भुगतनी
ही पड़ती है उसके
अलावा हमेशा के लिये उसका रिकॉर्ड खराब हो जाता है और उसे कहीं नौकरी नहीं मिलती ! हमारे देश में
विरोध करने वालों की सहायता करने की
बजाय पुलिसवाले उन पर हाथ उठाते हैं और उन्हें पैसे देकर मामला
दबाने के लिये
मजबूर करते हैं !
दामिनी
वाला हादसा जब हुआ था तब भी मैंने इस विषय पर एक पोस्ट डाली थी और अपनी ओर से कुछ
सुझाव दिये थे ! आज फिर उस आलेख का यह हिस्सा दोहरा रही हूँ ! दामिनी के साथ क्या हुआ, क्यों हुआ उसे दोहराना नहीं चाहती ! दोहराने से कोई फ़ायदा भी
नहीं है ! हमारा सारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित होना चाहिए कि जो हैवान उसके
गुनहगार हैं उनके साथ क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए ! देश की धीमी न्याय
प्रक्रिया पर हमें भरोसा नहीं है ! यहाँ कोर्ट में मुकदमे सालों तक चलते हैं और
ऐसे खतरनाक अपराधी जमानत पर छूट कर फिर उसी तरह के जघन्य अपराधों में लिप्त होकर
समाज के लिए खतरा बन कर बेख़ौफ़ घूमते रहते हैं !
भागलपुर वाले केस को आप लोग अभी तक भूले नहीं होंगे जिसमें
बारह साल पहले एक ऐसी ही साहसी और बहादुर लड़की पर गुंडों ने प्रतिरोध करने पर एसिड
डाल कर उसका चेहरा जला दिया था ! वह लड़की अभी तक न्याय के लिए प्रतीक्षा कर रही है
और उसके गुनहगार सालों से जमानत पर छूट कर ऐशो आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे हैं साथ
ही अपने गुनाहों के सबूत मिटा रहे हैं !
मेरे विचार से ऐसे गुनहगारों को कोर्ट कचहरी के टेढ़े-मेढ़े
रास्तों, वकीलों
और जजों की लम्बी-लम्बी बहसों और हर रोज़ आगे बढ़ती मुकदमों की तारीखों की भूलभुलैया
से निकाल कर सीधे समाज के हवाले कर देना चाहिए ! सर्व सम्मति से समाज के हर वर्ग
और हर क्षेत्र से प्रबुद्ध व्यक्तियों की समिति बनानी चाहिए जिनमें प्राध्यापक, वकील, जज, कलाकार, गृहणियाँ,
डॉक्टर्स, इंजीनियर्स, व्यापारी, साहित्यकार
व अन्य सभी विधाओं से जुड़े लोग शामिल हों और सबकी राय से उचित फैसला किया जाना
चाहिए और गुनहगारों को दंड भी सरे आम दिया जाना चाहिए ताकि बाकी सभी के लिए ऐसा
फैसला सबक बन सके !
ऐसे अपराधियों के माता-पिता से पूछना चाहिए कि वे अपने ऐसे
कुसंस्कारी और हैवान बेटों के लिए खुद क्या सज़ा तजवीज करते हैं ! अगर वे अपने
बच्चों के लिए रहम की अपील करते हैं तो उनसे पूछना चाहिए की यदि उनकी अपनी बेटी के
साथ ऐसी दुर्घटना हो जाती तो क्या वे उसके गुनहगारों के लिए भी रहम की अपील ही
करते ? इतनी
खराब परवरिश और इतने खराब संस्कार अपने बच्चों को देने के लिए स्वयम् उन्हें क्या
सज़ा दी जानी चाहिए ? दामिनी,
गुड़िया या इन दरिंदों की हवस का शिकार हुई उन जैसी अनेकों बच्चियों के गुनाहगारों पर
कोल्ड ब्लडेड मर्डर का आरोप लगाया जाना चाहिए और उन्हें तुरंत कड़ी से कड़ी सज़ा
मिलनी चाहिये !
लेकिन यह भी सच है कि हमारे आपके चाहने से क्या होगा ! होगा
वही जो इस देश की धीमी गति से चलने वाली व्यवस्था में विधि सम्मत होगा ! मगर इतना
तो हम कर ही सकते हैं कि इतने घटिया लोगों का पूरी तरह से सामाजिक बहिष्कार कर
दिया जाए ! सबसे ज्यादह आपत्ति तो मुझे इस बात पर है कि रिपोर्टिंग के वक्त ऐसे
गुनाहगारों के चहरे क्यों छिपाए जाते हैं ! होना तो यह चाहिये कि जिन लोगों के ऊपर
बलात्कार के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उनकी तस्वीरें, नाम, पता
व सभी डिटेल हर रोज़ टी वी पर और अखबारों में दिखाए जाने चाहिए ताकि ऐसे लोगों से
जनता सावधान रह सके ! समाज के आम लोगों के साथ घुलमिल कर रहने का इन्हें मौक़ा नहीं
दिया जाना चाहिए ! यदि किरायेदार हैं तो इन्हें तुरंत घर से निकाल बाहर करना चाहिए
और यदि मकान मालिक हैं तो ऐसा क़ानून बनाया जाना चाहिए कि इन्हें इनकी जायदाद से
बेदखल किया जा सके ! जब तक कड़े और ठोस कदम नहीं उठाये जायेंगे ये मुख्य धारा में
सबके बीच छिपे रहेंगे और मौक़ा पाते ही अपने घिनौने इरादों को अंजाम देते रहेंगे !
जब दंड कठोर होगा और परिवार के अन्य सदस्य भी इसकी चपेट में आयेंगे तो घर के लोग
भी अपने बच्चों के चालचलन पर निगरानी रखेंगे और लगाम खींच कर रखेंगे ! यदि इन
बातों पर ध्यान दिया जाएगा तो आशा कर सकते हैं कि ऐसी घटनाओं की आवृति में निश्चित
रूप से कमी आ जाएगी !
दामिनी
के गुनाहगारों को सज़ा देने में इतनी ढील ना बरती जाती तो शायद ऐसी घटनाओं की
पुनरावृत्ति इतनी अधिक नहीं होती और कई ‘गुड़ियाएँ’ इस दमन से बच गयी होतीं ! मेरी
इच्छा है इस आलेख को सभी लोग पढ़ें और सभी प्रबुद्ध पाठकों का इसे समर्थन मिले ताकि
इस दमन चक्र के खिलाफ उठने वाली आवाज़ इतनी बुलंद हो जाये कि नीति नियंताओं की नींद
टूटे और वे किसी सार्थक निष्कर्ष पर पहुँच सकें !
साधना
वैद
आप से पूरी तरह सहमत. व्यवस्था का दोष तो नाकारा नहीं जा सकता, लेकिन समाज को लड़कियों के प्रति अपनी सोच भी बदलनी होगी. उन परिस्थितियों से लड़ना होगा जो ऐसे हैवान पैदा करती हैं. वरना जो कल हुआ है आगे भी होता रहेगा और हम कुछ दिन शोर मचा कर चुप हो जायेंगे..आवश्यकता है सब को एकजुट होकर इसका सामना करने की..
ReplyDeleteआप से पूरी तरह सहमत ...बोलने को नया कुछ नही
ReplyDeleteकरने को बहुत कुछ ...वो सब हमें अपने बलबूते पर ही करना होगा ...हमे अपने को ..अपने समाज की सोच को बदलना होगा ..वर्ना यह सब आगे भी ऐसे ही होता रहेगा .....
शुभकामनायें हम सब को !
आज की ब्लॉग बुलेटिन भारत की 'ह्यूमन कंप्यूटर' - शकुंतला देवी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहम बदलेगें, युग बदलेगा।
ReplyDeleteसचमुच संज्ञाशून्य हैं हम सब..पूरी आम जनता ,लेकिन जिन लोगों के हाथों में शासन की बागडोर है ,जो इस व्यवस्था को बदल सकते हैं. कड़े कदम उठा सकते हैं ,उन्हें तो जैसे कोई फर्क नहीं. उनके लिए तो ये सब कैटल क्लास है ...ये सब भोगने के लिए अभिशप्त.
ReplyDeleteजनता सड़कों पर है, ठंढ में पानी की बौछार सही है, चिलचिलाती धूप में खड़ी होकर न्याय मांग रही है पर शीर्ष पर बैठे लोगों को क्या फर्क पड़ता है??
कल को आ जायेंगे वोट मांगने और ऑप्शन के अभाव में हम फिर उन्हें ही चुन कर भेज देंगे खुद पर राज करने.
एक बेहतरीन लेख के लिए बधाई | यह आवाज़ हर एक के दिल से आनी चाहिए | क्या करें हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं जहां पैसा ही सब कुछ है अब यह शराब से आयी या वाहियात फिल्मो से इनपे रोक लगाना संभव नहीं सरकार के लिए | पैसे का सवाल जो है |
ReplyDeleteरश्मि ने मेरी बात कह दी....बस!!
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 24/04/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
मन इतना डूब गया है कि प्रलाप सी स्थिति कहूँ या सूनामी की .... समझ में नहीं आता . एक तो ऐंठने वाली घटनाएँ और शब्द ............. ओह !
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सशक्त एवं सार्थकता से अपनी बात कही है आलेख में ...
ReplyDeleteमन आहत है .... इतना कि
नज़र बदली है इनकी तो,
तुम भी हौसले से
अपनी सारी नसीहते बदल डालो,
बेटी को या तो जन्म मत दो
देती हो जन्म तो
इनको नज़ाकत से पालने के सारे
पुराने नियम बदल डालो !!!
बिल्कुल सही कहा आप ने यह आवाज़ हर एक के दिल से आनी चाहिए |सादर आभार !
ReplyDeleteसभी बहुत दुखी है इस घटना से , मन में इतना आक्रोश है जो बयां नहीं किया जा सकता ............
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर।
एक के बाद एक काण्ड होते चले जा रहे हैं और दूसरे दिन के में अख़बार में आप फिर दो चार घटनाएँ देख सकते है . क़ानून का खौफ दरिंदों के मन में रह ही नहीं गया है और अधिकतर मामलों के निर्णय फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा करने की बात अभी तक नहीं हुई .जिनके जुर्म साबित है उन्हें दंड के साथ ऐसा स्थायी निशान भी दंड में देना चाहिए जिससे वे छूटने के बाद भी बलात्कारी होने के दंश को झेलते रहें और समाज उनसे सावधान रहे.
ReplyDeleteसार्थक लेख !!
ReplyDeleteसामाजिक बहिष्कार की आपकी बात से सहमत हूँ
ReplyDeleteसहमत हूँ...बेहद सार्थक आलेख...
ReplyDeleteइस तूफ़ान में उम्मीद का दिया फिर भी जलाए हुए हूँ..
सादर
अनु
साधना जी बिल्कुल सही कहा हम सब भी यही चाहते हैं मगर हमारे चाहने से अभी कुछ हो नही रहा …………क्या ये बात सरकार या देश के नुमाइन्दे नहीं जानते ? वो सब जानते हैं मगर उनमे से खुद भी बहुत से ऐसे हैं जो ऐसे ही मामलों मे लिप्त होंगे या उनके बच्चे लिप्त होंगे तो वो क्यों ऐसा करने लगे और अपने ही पैर पर कुल्हाडी मारने लगे अब तो हमें ही कुछ करना होगा सबसे पहले तो अपराधिक छवि वालों को सत्ता मे आने से रोकना होगा ताकि वो सही निर्णय लेने मे सक्षम हों उसके बाद उन निर्णयों को लागू करा सकें तब जाकर तस्वीर बदल सकती है ………यूँ तो हम सभी अपनी अपनी तरह से कोशिशें कर रहे हैं और समझदार लोग अपने घर से ही कर रहे हैं मगर उससे समाज नही सुधर रहा क्योंकि कानून का डर भी उतना ही जरूरी है और वो इस वक्त कहीं नही है अगर है तो ईमानदार और सच्चे आदमी को है कानून का डर और उस पर ही उनका भी जोर चलता है बाकि अपराधी तो ऐश करता है और कर रहा है ………………इसलिये हमें प्रत्येक बात की जड तक पहुँचना होगा तभी बदलाव आ सकता है वरना तो इस वक्त इस राजतंत्र के हमाम मे सारे ही नंगे सत्तालोपुप बैठे हैं जिनसे कोई उम्मीद नहीं।
ReplyDeleteआज की ज्वलंत समस्या पर सार्थक सोच लिए लेख |इस के लिए सामाजिक चेतना जरूरी है |बिना स्व अनुशासन के इस प्रकार की विकृतिया समाज में गन्दगी के अलावा कुछ नहीं देती |ऐसी वारदातों के खिलाफ समाज को ही कठोत कदम उठाने हों गे |
ReplyDeleteआशा
विचारणीय लेख .... ज़रूरी है न्याय प्रक्रिया तीव्र गति से हो और कानून का सख्ती से पालन ...गुनहगारों को ऐसी सज़ा मिले की फिर गुनाह करने से पहले लोग सोचें .... और यह काम व्यवस्था में रहने वाले लोग ही कर सकते हैं .... हम आप जैसे लोग गुहार लगा सकते हैं .... आज नारी स्वतत्व की लड़ाई लड़ रही है .... आदि काल से नारी का शोषण हो रहा है तब शायद उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी की सामने खुल कर आवाज़ उठा सके ...ज़रूरी है अपने वजूद की और अस्मिता की तलाश ...
ReplyDeleteसार्थक लेख
हर सडे गले मोर्चे पर एक साथ बदलाव के लिए लड़ाई लड़नी है...पर कहते हैं कि जबतक बदलाव का पहला सही कदम नहीं उठाया जाएगा तब तक कुछ सही नहीं होता। कुछ समय के लिए सबकुछ ठीक हो जाता है पर ज्यादा दिन नहीं होते .. घूमफिर कर हम लोग वहीं पहुंच जाते हैं।
ReplyDeleteआप से पूरी तरह सहमत ..
ReplyDeleteमेरा भी विचार कुछ आपके जैसे है अब हुछ मामले जनता के हवाले कर देना चाहिए
ReplyDeletelatest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
sarthak lekh ..bahut badhiya
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