बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है,
मुझको जैसे कोई अपना,
कुछ कहने को मिल जाता है !
पहरों कमरे की खिड़की से
तुझको ही देखा करती हूँ ,
तेरे रंग से तेरे दुःख का
अनुमान लगाया करती हूँ !
यूँ उमड़ घुमड़ तेरा छाना
तेरी पीड़ा दरशाता है ,
बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है !
तेरे हर गर्जन के स्वर में
मेरी भी पीर झलकती है,
तेरे हर घर्षण के संग-संग
अंतर की धरा दरकती है !
तेरा ऐसे रिमझिम रोना
मेरी आँखें छलकाता है ,
बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है !
कैसे रोकेगा प्रबल वेग
इस झंझा को बह जाने दे ,
मत रोक उसे भावुक होकर
अंतर हल्का हो जाने दे !
धरिणी माँ का आकुल आँचल
व्याकुल हो तुझे बुलाता है ,
बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है !
हैं यहाँ सभी तेरे अपने
झरने, नदिया, धरती, सागर ,
तू कह ले इनसे दुःख अपना
रो ले जी भर नीचे आकर !
तेरा यूँ रह-रह कर रिसना
इन सबका बोझ बढ़ाता है
बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है !
तेरे आँसू के ये मोती
जब खेतों में गिर जायेंगे ,
हर एक फसल की डाली में
सौ सौ दाने उग जायेंगे !
धरती माँ का सूखा आँचल
तेरे आँसू पी जाता है !
बादल तेरे आ जाने से
जाने क्यूँ मन भर आता है ,
मुझको जैसे कोई अपना
कुछ कहने को मिल जाता है !
साधना वैद
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