खुशियों का संसार सुहाना टूट गया,
जनम-जनम का बंधन पल में छूट गया,
जिसके नयनों में मीठे सपने रोपे थे
पलक मूँद वह जीवन साथी रूठ गया !
मन के देवालय की हर प्रतिमा खण्डित है ,
जीवन के उपवन की हर कलिका दण्डित है,
जिसकी हर मंजिल में जीवन की साँसें थीं
चूर-चूर हो शीशमहल वो टूट गया !
साधना वैद
No comments:
Post a Comment