Sudhinama
Tuesday, October 8, 2013
मैं शमा ......
जिस्म जलता रहा, मैं पिघलती रही
तम सिमटता रहा, मैं सुलगती रही
न समझ पाई किसका अंधेरा मिटा
मैं स्वयं इन अंधेरों में घुलती रही !
साधना वैद !
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