बरस गयी
सावन की फुहार
अलस्सुबह,
भिगो गयी बदन
सुलगा गयी मन !
झाँक रहा है
बादल की ओट से
नन्हा सूरज,
बाहर कैसे आऊँ
कहीं भीग न जाऊँ !
भाग रहे थे
श्वेत श्याम बादल
आ जाये हाथ
धरा माँ का आँचल
ना मिला तो रो पड़े !
सुहावनी है
सावन की बयार
लाती है साथ
मधुरिम पलों की
स्मृतियाँ बारम्बार !
याद आता है
बारिश में भीगना
चलते जाना
नर्म गीली दूब पे
पाँव थकने तक !
साधना वैद
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