Sunday, July 13, 2014

निर्वासन





हृदय के द्वार पर

बड़ा सा ताला लटका है,

नज़रें किसी और

लक्ष्य पर टिकी हैं

इसीलिये कोई भी संवाद

स्थापित करने में

नाकाम हैं,  

जुबां खामोश है  

शब्द जैसे कहीं

गुम हो गये हैं,

कलम की स्याही

कदाचित सूख गयी है,

और निब या तो

टूट गयी है

या घिस कर

 खराब हो गयी है,

इसीलिये शायद

   ना कोई सन्देश है  

   ना कोई आश्वासन  

 ना कोई आहट है 
ना कोई दस्तक

ना कोई पुकार है

ना कोई आमंत्रण

ना कोई संकेत है

ना कोई दिलासा

कुछ है तो बस

विक्षुब्ध हृदय की चिंता

आशंकित मन की बचैनी

अवमानना के दंश से

घायल मन की घुटन

और

तिरस्कार का गरल

पी लेने के बाद

मृतप्राय अवसन्न

संज्ञाशून्य अस्तित्व !

तुम्हीं कहो

इसे निर्वासन

ना मानूँ

तो और क्या मानूँ !





साधना वैद

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