म्यूनिख जर्मनी का एक बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत शहर है ! द्वितीय
विश्वयुद्ध की विनाश लीला के बाद जर्मनी के अधिकांश शहर नष्टप्राय हो गये थे ! म्यूनिख
पर १९४३ से १९४५ के बीच ६६ बार बम्बार्डमेंट्स हुए और पूरे शहर का लगभग ७० प्रतिशत
हिस्सा पूरी तरह से खंडहर में परिवर्तित हो गया ! लेकिन म्यूनिख की संवेदनशील
जनता, यहाँ के कलाप्रिय वास्तुविद एवं समर्पित प्रशासनिक अधिकारियों की अदम्य
जिजीविषा और दृढ इच्छाशक्ति को साधुवाद देना होगा कि विश्वयुद्ध समाप्त हो जाने के
बाद चंद वर्षों में ही पूरे नगर का नये सिरे से कायाकल्प हो गया और इस बात का
विशेष ध्यान रखा गया कि किसी भी इमारत के भौगोलिक स्थान व उसके परम्परागत रूप रंग
आकार प्रकार में ज़रा भी परिवर्तन ना आये ! भवन निर्माण के समय इस बात का इतनी
बारीकी से ध्यान रखा गया कि स्थानीय या आस पास के शहरों के बाज़ार में अनुपलब्धता की
स्थिति में शहर के निवासियों से प्राप्त सूचनाओं व तस्वीरों से उपलब्ध साक्ष्यों
के अनुसार हू ब हू वैसा ही सामान बाहर से मंगवाया गया और उसे उसी तरह से इस्तेमाल
किया गया जैसा कि पहले किया गया था ! इसीलिये युद्ध के बाद म्यूनिख शहर पहले से भी
कहीं अधिक नया और खूबसूरत हो गया और देश के ऐतिहासिक नगरों में इसकी गिनती होने
लगी ! आज भी पर्यटन के दृष्टिकोण से म्यूनिख जर्मनी का सबसे अधिक लोकप्रिय व पसंदीदा
शहर माना जाता है !
पहली जनवरी की सुबह का हमारा पहला कार्यक्रम डकाऊ कंसंट्रेशन कैम्प जाने का
था ! होटल से हैवी नाश्ता कर हम लोग डकाऊ जाने के लिये निकल पड़े ! डकाऊ के बारे
में एकाध पैरेग्राफ में लिख देना असंभव है ! इसके बारे में विस्तार से एक पोस्ट
लिख चुकी हूँ ! आपकी सुविधा के लिये उसकी लिंक दे रही हूँ !
http://sudhinama.blogspot.in/2014/08/blog-post_8.html
डकाऊ से लोकल ट्रेन से हम Marienplatz पहुँचे
! यहाँ Two onion domed towers वाली
चर्च देखी ! Marienplatz के पूर्व में स्थित यह बेहद खूबसूरत चर्च Frauenkirche (
Church of Our Lady ) के नाम से मशहूर है ! यह शहर का प्रसिद्ध लैंडमार्क है !
पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पारम्परिक गोथिक शैली में बनी यह एक बहुत ही
भव्य व प्राचीन चर्च है ! ३२५ फीट ऊँची इसकी दोनों मीनारें म्यूनिख शहर की सबसे
ऊँची मीनारें हैं ! बताया जाता है कि जब यह चर्च बनाई जा रही थी तब धनाभाव के कारण
इन मीनारों के ऊपर की गुम्बद बनाने का कार्य स्थगित करना पड़ गया था लेकिन कई
वर्षों के बाद इज़राइल की Dome of Rock से प्रेरणा लेकर सन् १५२५ में ये दोनों अष्टकोणीय
गुम्बदें इन मीनारों के ऊपर बनवाई गयीं ! यह खूबसूरत गुम्बदें इतनी पसंद की गयीं कि बाद में देश की अनेकों चर्चों में ऐसी ही गुम्बद वाली मीनारें बनवाई गयीं
! यह चर्च अंदर से भी बहुत विशाल है !
इसके मध्य भाग में बनी हुई ऊँची ऊँची Banno मेहराबें बहुत ही खूबसूरत दिखाई देती हैं !
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हवाई हमलों में इस चर्च की आंतरिक सज्जा को बहुत
नुक्सान पहुँचा व अनेक कलाकृतियाँ नष्ट हो गयीं जिन्हें रेस्टोर करने में कई साल
लग गये !
एक और बहुत ही दिलचस्प चीज़ जो पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है वह है
डेविल का पद चिन्ह ! किवदंती के अनुसार जब इस चर्च का निर्माण किया जा रहा था तो
एक शैतान ने इस शर्त पर इसके आर्किटेक्ट की मदद करने का वायदा किया कि चर्च में
कोई भी खिड़की नहीं बनाई जायेगी ! जब भवन पूरा बन गया तो डेविल आर्किटेक्ट के साथ
चर्च के अंदर गया ! उसे यह देख कर बहुत गुस्सा आया कि चर्च के बीच से कोई भी खिड़की
तो दिखाई नहीं दे रही थी लेकिन चर्च में जाने वाले जो भी लोग वहाँ बैठे थे उन सब
पर भरपूर प्रकाश पड़ रहा था ! गुस्से में डेविल ने इतनी ज़ोर से अपना पैर पटका कि
फर्श पर उसका पद चिन्ह उभर आया जो आज भी साफ़ दिखाई देता है !
इतने खूबसूरत और प्रसिद्ध नगर के इतिहास के साथ एक दुखद घटना भी जुड़ी है
जिसका ज़िक्र करना भी ज़रूरी है ! सन् १९७२ के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स की मेजबानी
म्यूनिख ने की थी ! यहाँ इजराइल से आये ११ यहूदी खिलाड़ियों को फिलीस्तीनी
आतंकवादियों ने पहले तो बंधक बना लिया और बाद में सबको मौत के घाट उतार दिया ! इनके
साथ एक जर्मन पुलिस ऑफीसर भी मारा गया ! ओलम्पिक खेलों के इतिहास में नरसंहार की
यह पहली विरल एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी !
म्यूनिख शहर के कुछ और बहुत ही खूबसूरत स्थानों को देखने के लिये आपको मेरी
अगली पोस्ट की थोड़ी सी प्रतीक्षा करनी होगी ! आशा है आपको मेरे साथ Frauenkirche
की सैर में अवश्य आनंद आया होगा !
साधना वैद
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