हवाएं गुमसुम क्यों हैं
रास्ते चुपचुप क्यों हैं
धूल निस्पंद क्यों है
पत्थर पिघले क्यों हैं
पेड़ खामोश क्यों हैं
पत्ते नीरव क्यों हैं
कलियाँ मुरझाई क्यों हैं
फूल अनमने क्यों हैं
फूल अनमने क्यों हैं
काँटे कुंद क्यों हैं
जड़ें उखड़ी क्यों हैं
जड़ें उखड़ी क्यों हैं
रिश्ते संकुचित क्यों हैं
शब्द कुंठित क्यों हैं
भाव छूटे क्यों हैं
बंधन टूटे क्यों हैं
हार बिखरे क्यों हैं
दीप बुझते क्यों हैं
सिलसिले टूटे क्यों हैं
देवता रूठे क्यों है ?
तमाम सारे प्रश्न हैं
ढेर सारे संशय हैं
अनगिनत भ्रम हैं
असंख्य जिज्ञासायें हैं
पर न जाने क्यों
हर दिशा चुप है
हर शै मौन है
हर आवाज़ खामोश है
हर जवाब
वक्त की पर्तों के नीचे
गहरे
वक्त की पर्तों के नीचे
गहरे
कहीं बहुत गहरे
दफ़न है !
न जाने क्यों ?
साधना वैद
No comments:
Post a Comment