तुम सुनो ना सुनो
सुबह की प्रभाती
दिन का ऊर्जा गान
साँझ का सांध्य गीत
रात्रि की लोरी
हमें तो रोज़ ही
गाना है
यह हमारी आदत है
तुम अनसुना कर देते
हो
या इन्हें सुन कर भी
इनका कोई असर नहीं
लेते
यह तुम्हारी फितरत
है !
तुम्हीं कहो ग़लत
कौन है
तुम या हम
कि हमारे इतने मीठे
इतने सुरीले
इतने मधुर गीत
यूँ ही अनसुने
हवाओं में बिखर कर
व्यर्थ हो जाते हैं और
कितने ही कातर प्राण
स्पंदित होने से
वंचित रह जाते हैं?
साधना वैद
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