लोक कथायें कहाँ से आईं और कहाँ तक पहुँचीं, उनमें कितने बदलाव हुए और
कितने नये किस्से उनमें जुड़ते गये इसका अनुमान लगाना मुश्किल है | पर इन काल्पनिक कथाओं के
कुछ नायक इतने पसंंद किये गये कि उनके गुणों से मिलते हुए यथार्थ जगत के किसी भी व्यक्ति को
उन्हीं के नाम से पुकारा जाने लगा यह उन नायकों की लोक स्वीकृति और प्रसिद्धि का
परिचायक है ! थोड़े बुद्धू पर खयाली पुलाव पकाने के आदी शेखचिल्ली भी एक उसी तरह का
और सबको हँसाने वाला एक मशहूर पात्र है !
परन्तु शेखचिल्ली का चरित्र कोई
काल्पनिक चरित्र नहीं है ! हरियाणा के किसी गाँव में एक ग़रीब परिवार रहता था !
परिवार में शेख नाम का एक बालक था ! इस बच्चे का नाम शेखचिल्ली कैसे पड़ा यह एक
रोचक कहानी है ! एक बार मदरसे में व्याकरण पढ़ाते हुए मौलवी साहेब ने बच्चों को
सिखाया कि अगर ‘लड़का’ है तो वह खाता है, रोता है और सोता है लेकिन इसके विपरीत अगर
‘लड़की’ है तो वह खाती है, रोती है, सोती है इत्यादि ! शेख ने यह बात ध्यान से सुनी
और याद कर ली ! एक दिन गाँव की एक लड़की सूखे कुए में गिर गयी ! सारा गाँव उसे
खोजने लगा ! शेख भी उसे खोजने लगा ! शेख को कुए के अंदर से लड़की के चिल्लाने की
आवाज़ सुनाई दी ! उसने सबको बुलाया देखो, ‘लड़की चिल्ली रही है !’ लोगों ने लड़की को
कुए से बाहर निकाला ! लड़की ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी पर उसे ज्यादह चोट नहीं लगी थी !
शेख ने कहा, ‘ये चिल्ली रही है पर ठीक हो जायेगी !’ लोगों ने आश्चर्य से पूछा, ‘ये
चिल्ली चिल्ली क्या कह रहे हो !’ शेख ने कहा, ‘लड़का होता तो मैं कहता चिल्ला रहा
है ! लड़की है इसलिए चिल्ली रही है !’ लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो गये और मदरसे के
सभी छात्रों के बीच बालक शेख का नाम 'शेखचिल्ली' पड़ गया ! शेखचिल्ली ने
इसका बुरा भी नहीं माना ! और वह अपने अजीब कारनामों से सबका मनोरंजन करता रहा ! आज भी
शेखचिल्ली की कहानियाँ हम सबको खूब हँसाती हैं ! कहा जाता है कि बाद में उम्रदराज़
हो जाने पर यही शेखचिल्ली फ़कीर बन गये और हरियाणा के कुरूक्षेत्र में उनका मकबरा
आज भी अच्छी हालत में मौजूद है ! उसके पास ही उनकी पत्नी का मकबरा भी बना हुआ है !
वहीं पर एक मदरसा भी है ! कहते हैं कि शेखचिल्ली इसी मदरसे में पढ़ा करते थे !
आइये शेखचिल्ली की सबसे मशहूर कहानी आज आपको सुनाती हूँ !
शेखचिल्ली अपनी माँ के पास रहते थे पर कुछ काम काज नहीं करते थे ! एक
दिन गाँव की हाट में पंसारी की दूकान के पास खाली बैठे थे तभी एक अमीर आदमी दूकान
पर आया और उसने पंसारी से घड़ा भर घी खरीदा ! मदद के लिये उसने शेखचिल्ली से पूछा,
‘क्या तुम यह घड़ा मेरे घर पहुँचा दोगे ? मैं तुम्हें इसके बदले में दो सिक्के दूँगा
!’ शेखचिल्ली तुरंत राज़ी हो गये ! उन्होंने अपने सिर पर घड़ा रखवा लिया और अमीर आदमी
के पीछे-पीछे चल दिये ! आदत के अनुसार वो लगे खयाली पुलाव पकाने ! मैं तो इन पैसों
से एक अंडा खरीदूँगा ! अंडे को खूब सम्हाल के रूई पर रखूँगा ! कुछ दिन के बाद उसमें
से चूज़ा निकल आएगा ! चूज़ा बड़ा होकर मुर्गी बन जाएगा ! अब तो वह मुर्गी रोज़ अंडे
दिया करेगी ! और मेरे पास जब बहुत सारे चूज़े, मुर्गियाँ और अंडे जमा हो जायेंगे तो
मैं उनको बेच कर बकरियाँ खरीद लूँगा ! बकरियों के भी बच्चे हो जायेंगे तो मेरे पास
ढेर सारे बकरे बकरियाँ जमा हो जायेंगे ! लेकिन बड़ा आदमी बनने के लिये मुझे तो बहुत तरक्की करनी है इसलिए मैं
उनको भी बेच दूँगा और फिर मैं भैंस पालने का काम करूँगा ! भैंस के दूध में अच्छा
मुनाफ़ा है ! खूब धन जमा हो जाएगा ! माँ भी खुश हो जायेंगी और मुझे निखट्टू कहना बंद
कर देंगी ! सबसे पहले तो मैं अपने टूटे हुए घर की मरम्मत करवा के एक सुन्दर सा मकान
बनाउँगा ! पड़ोसी तो देखते ही रह जायेंगे ! और फिर तो मेरी शादी के लिये बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आने लगेंगे ! मेरी माँ ज़रूर मेरे लिये एक सुन्दर और आज्ञाकारी
पत्नी खोज लेंगी और मेरा जीवन खुशियों से भर जाएगा ! मैं रोज़ भैंसों के लिये चारा
काटने जंगल जाया करूँगा और मेरी पत्नी घर का और भैंसों का सारा काम कर दूध निकाला
करेगी ! मेरी माँ घर के बाहर बैठ कर दूध बेचा करेगी ! सोचते-सोचते शेखचिल्ली
मुस्कुरा भी रहे थे और शरमा भी रहे थे ! अब बाल बच्चे भी तो हो जायेंगे और वहीं घर के आँगन में
खेला करेंगे ! शाम को मेरे घर लौटने का इंतज़ार किया करेंगे ! जब शाम को सिर पर
भैसों के लिये चारा लाद कर मैं घर आउँगा तो बच्चे ‘अब्बा-अब्बा’ कह कर मेरे पैरों
से लिपट जायेंगे ! उन्हें गोद में लेने के लिये मैं सिर के गठ्ठर को वहीं पटक
दूँगा और उन्हें गोद में उठा लूँगा ! शेखचिल्ली अपने ख्यालों में इतने डूब चुके थे
कि चारे का गठ्ठर पटकने की जगह उन्होंने अपने सिर पर रखा घी से भरा घड़ा ही ज़मीन पर
पटक दिया ! घड़ा फूट गया और सारा घी ज़मीन पर फ़ैल गया ! अमीर ने जब यह नज़ारा देखा तो
अपना सिर पीट लिया ! शेखचिल्ली को उसने खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि, ‘तुमने तो मेरा
सारा घी मिट्टी में मिला दिया !’
शेखचिल्ली सदमे में चुपचाप खड़े थे ! डाँट सुन कर बोले, ‘तुम्हारा तो
सिर्फ घी ही मिट्टी में मिला है मेरा तो सारा घरबार, बीबी बच्चे, भैंस तबेला, सब के
सब मिट्टी में मिल गये !’
तो ऐसे थे जनाब शेखचिल्ली ! आज भी कोरे दिवास्वप्न देखने वाले और
आधारहीन कल्पना के संसार में विचरने वालों लोगों को शेखचिल्ली की उपाधि से ही नवाज़ा जाता
है ! तो कहिये कैसी रही कहानी ! मज़ा आया न आपको ?
साधना वैद
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