तिनका-तिनका चुन कर
मैंने
एक बनाया सुन्दर नीड़
नोंच-नोंच कर फेंका
तुमने
और बढ़ाई मेरी पीर !
मेरा सुख संसार रौंद
कर
बोलो तुम क्या पाओगे
,
मेरे बच्चों के रोदन
से
क्या तुम पिघल न
जाओगे ?
काठ काँच के नकली
पंछी
क्यों तुमको ललचाते
हैं
उनके नकली रूप रंग से
क्यों सब भरमा जाते
हैं !
घर के हर कोने-कोने
में
उन्हें सजा कर रखते
हो’
लेकिन जीवित विहग
वृन्द को
दूर भगाते रहते हो !
है तुमको यदि प्यार
प्रकृति से
हमको भी बस जाने दो
अपने घर आँगन में
हमको
जी भर कर कुछ गाने
दो !
द्विगुणित हो जायेगी
शोभा
खिल जाएगा घर संसार
मेरी मधुरिम स्वर
लहरी से
होगा प्राणों में
संचार !
सर्वश्रेष्ठ रचना हो
प्रभु की
फिर क्यों छोटा हृदय
प्रदेश
वृहद् विशाल
तुम्हारे घर में
वर्जित है क्यों
हमें प्रवेश ?
साधना वैद
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