हमारे पड़ोस में
शर्मा जी रहते हैं ! सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त शर्मा जी निहायत ही सीधे सादे
से सज्जन इंसान हैं ! बाल बच्चे शादी विवाह के बाद अपने-अपने घरों के हो गये !
बेटियाँ ससुराल चली गयीं ! बेटा नौकरी की वजह से परदेश चला गया और वहीं बस गया ! घर
में उनके साथ रहती हैं उनकी जीवन संगिनी जिन्हें सब प्यार से शर्माइन बुलाते हैं !
शर्माइन अपने पतिदेव
से बिलकुल अलग मिजाज़ की हैं ! आखिर घर गृहस्थी चलाने के लिये किसीको तो मोर्चा
सम्हालना ही पड़ता है ! लिहाज़ा घर की बागडोर शर्माइन के हाथ में रहती है ! आलम ये
कि पत्ता भी खड़कता है तो शर्माइन की इजाज़त से ! घर में क्या लाना है, कहाँ से लाना
है, कब लाना है, कितना लाना है, कैसे लाना है, किसे लाना है सारे फैसले शर्माइन ही
लेती हैं और उनका फरमान घर में फाइनल होता है ! साल छ: महीने में जब कभी छुट्टियों
में बेटे बेटियाँ घर आते हैं तो वे भी अपनी माताजी के आदेश के अनुसार ही साँस ले
सकते हैं वरना उन्हें शर्माइन के कोप का भाजन पड़ता है ! शर्मा जी के नाती पोते अगर
हमारे यहाँ दस मिनिट को भी खेलने आ जायें तो पीछे-पीछे शर्माइन उन्हें अनुशासन का
कोई न कोई पाठ पढ़ातीं या ‘पहले यह करो फिर खेलना’ के अंदाज़ में हिदायत देतीं बुला
कर ले जातीं और बच्चे बेचारे मन मार कर चले जाते !
एक दिन शर्माइन बड़ी
खुश-खुश घर आईं !
“दीदी ! हमने आज से
साहब को सब्ज़ी लाने का काम सौंप दिया है ! रोज़ सुबह
पार्क में टहलने तो जाते ही हैं वहाँ से लौटते समय बाज़ार से सब्ज़ी भी ले आया
करेंगे ! सुबह-सुबह ताज़ी सब्ज़ी मिल जाया करेगी !” हमने सिर हिला कर उनकी बात का
अनुमोदन तो किया लेकिन यह व्यवस्था लंबे समय तक चल पायेगी इसमें हमें संदेह था
!
शर्मा जी ने अपनी
सर्विस के ज़माने में कभी कोई घरेलू काम नहीं किया ! लेकिन श्रीमती जी का मानना है
कि अब जब नौकरी पर नहीं जाना है तो घर के प्रति उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के
लिये कुछ काम तो करना ही चाहिए इसलिए यह काम उन्हें सौंपा गया है ! मरता क्या न
करता ! शर्मा जी बेचारे रोज़ सुबह लदे फदे थैला भर सब्ज़ी लेकर लौटते पार्क से !
लेकिन सब्ज़ी लाने बाद से उनके यहाँ आये दिन कोई न कोई नया शगूफा छिड़ने लगा !
एक दिन सुबह-सुबह शर्माइन झींकी झल्लाई सी खूब सारे बैंगन लेकर हमारे घर आयीं !
“दीदी ! साहब को तो कुछ समझ ही नहीं आता है ! बताइये हम कुल जमा दो लोग हैं और देखो तो ज़रा कितने सारे बैंगन खरीद लाये हैं ! कल तो लाये ही थे आज भी उठा लाये हैं ! हमने
जब टोका इतने बैंगन क्यों ले आये तो फ़ौरन कहने लगे, "अच्छे लग रहे थे तो खरीद लिये !
मेरी लाई सब्ज़ी से दिक्कत होती है तो कल से नहीं लाया करूँ ?" भला यह भी कोई बात
हुई ! सब्ज़ी तो ये ही लायेंगे !" उनके स्वर में दृढ़ निश्चय की खनक थी ! फिर थैले से बैंगन निकाल कर मुझे देते हुए बोलीं, "ये बैंगन आप बना लीजियेगा !”
“ठीक है !" मैंने बैंगन फ्रिज की बास्केट में डालते हुए कहा !
"लेकिन सुबह से शाम तक कॉलोनी में कम से कम सब्ज़ी के सात आठ ठेल वाले आते हैं तुम
शर्मा जी को क्यों परेशान करती हो ! जो चाहिए जितना चाहिए खुद ही ले लिया करो ना !”
“नहीं, उन्हें भी तो
घर का कुछ काम करना चाहिए ! सब्ज़ी तो वो ही लायेंगे !” शर्माइन का जवाब था !
“तो उन्हें बता दिया
करो कि कितनी लाया करें !” हमने भी सलाह ठोक दी !
दो दिन बाद फिर
सुबह-सुबह शर्माइन अवतरित हुईं !
“अब क्या हुआ ?“
हमारा सवाल था !
“आपकी सलाह के अनुसार
हमने साहब को बता दिया कि हमारे यहाँ थोड़ी सब्ज़ी बनती है इसलिए बैंगन वगैरह दो से
ज़्यादह नहीं लाया करें ! तो आज तो इन्होंने कमाल ही कर दिया ! सब्ज़ी के थैले में दो
आलू, दो टिंडे, दो करेले, दो परवल, दो गाजर, दो टमाटर यानि कि हर सब्ज़ी दो की
संख्या में है और जब हमने पूछा यह क्या है तो फिर वही रट “तो कल से सब्जी ना लाऊँ !”
किसी तरह हँसी रोक
कर हमने कहा, “कोई बात नहीं मिक्स्ड वेजीटेबिल बना लो !”
“और बना कर सारी की
सारी महरी को दे दूँ क्योंकि साहब तो उसे चखेंगे भी नहीं !” शर्माइन का चिढ़ा हुआ
जवाब था !
“तो अब तो बख्श दो
उन्हें !” हमने फिर धीरे से अपनी सलाह सरका दी !
“अजी नहीं ! सब्ज़ी
तो वो ही लायेंगे ! हम भी पीछे हटने वालों में से नहीं हैं ! कभी कुछ सीखेंगे कि
नहीं ?”
शर्मा जी की सब्ज़ी
खरीदने की क्लास रोज़ इसी तरह चलती रही और रोज़ कोई न कोई मज़ेदार किस्सा सामने आता
रहा !
दीवाली आने को थी !
सभी घरों में त्यौहार से पहले के काम छिड़े हुए थे ! साफ़ सफाई भी चल रही थी ! मौसम
बदल रहा था ! गरम कपड़े बॉक्स से निकालने थे ! लिहाफ गद्दों को धूप लगानी थी !
शर्मा जी के यहाँ राज मज़दूरों का काम भी फैला हुआ था ! ऐसे में एक दिन शर्मा जी बाज़ार
से ताज़ी-ताज़ी छोटी जड़ों वाली ढेर सारी थैला भर मैथी ले आये ! शर्माइन का मूड बहुत
खराब ! अब इसे साफ़ करने के लिये कौन जान मारेगा ! मौसम की पहली मँहगी सौगात ! ना
तो देते बन रही थी ना ही फेंकते ! इतनी महीन मैथी साफ़ करने का टाइम भी नहीं था
उनके पास ! दो तीन दिन तक ऐसी ही फ्रिज में पड़ी रही ! एक दिन कुछ जोश चढ़ा तो
मुरझाई मैथी से बमुश्किल सौ सवा सौ ग्राम ही साफ़ कर पाईं ! अगले दिन घर में जो
बेलदारनी काम कर रही थी उसे मैथी साफ़ करने के काम में लगा दिया गया ! सारा दिन
धीरे-धीरे कछुए की रफ़्तार से बेलदारनी ने जो मैथी साफ़ करके थाली में दी उसका वज़न
मुश्किल से सौ ग्राम से अधिक नहीं रहा होगा ! और सूरत ऐसी कि उसे देख कर खाने की
इच्छा ही मर जाए ! अंतत: मौसम की पहली मैथी कूड़ेदान के हवाले कर दी गयी !
शर्माइन का मलाल
देखने लायक था ! मैथी बड़ी मँहगी पड़ी और थाली में परोसी भी नहीं जा सकी ! शर्माइन
का चेहरा उतरा हुआ था लेकिन उनके साहब के चहरे पर पूरी बत्तीस इंच की मुस्कान फ़ैली हुई थी !
उन्हें एक फ़ायदा जो हो गया था कि सब्ज़ी लाने की आफत से उनका पीछा स्थायी रूप से छूट
गया था ! कई बार सोचती हूँ यह शर्मा जी की सोची समझी साज़िश थी या सचमुच ही उनके
भोले भाले अनाड़ी व्यक्तित्व की एक बानगी !
साधना वैद
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