दुलारे सांता
जानती हूँ मैं
बच्चों का मन रखने के
लिये
तुम आओगे ज़रूर !
अपने जादुई थैले में
दुबका कर
कुछ उपहार भी लाओगे
ज़रूर !
लेकिन सच कहना
क्या आज के बच्चों
की ‘मासूमियत’
तुम्हें अभी भी
लुभाती है ?
उनकी गंदी मानसिकता,
उनकी आपराधिक
गतिविधियां
क्या तुम्हारा कलेजा
छलनी नहीं करतीं ?
रहमदिल सांता !
कहाँ खो गये
वो भोले भाले मासूम
बच्चे
जो तुम्हारी
प्रतीक्षा में सारी रात
आँखों में ही गुज़ार
देते थे
और सुबह उठते ही
घर के कोने में सजे
क्रिसमस ट्री के
नीचे रखे
छोटे बड़े मोजों में छिपे
उपहारों को
देख कर कितने
उल्लसित हो जाते थे !
आज के बच्चे इन
उपहारों से नहीं
पिस्तौल, तमंचे,
रिवोल्वर से खेलते हैं !
उन्हें खिलौने वाली
गुड़िया नहीं
जीती जागती गुड़िया
चाहिए
जिसे नोंच कर फेंक
देने में उन्हें
अपूर्व सुख मिलता है
!
प्यारे सांता !
तुम तो जादूगर हो !
तुम कुछ करो ना !
इस क्रिसमस पर तुम
कोई उपहार लाओ न लाओ
इन बच्चों की
मासूमियत,
इनका भोलापन, इनका
बचपन
इन्हें दिलवा दो !
उम्र से पहले बड़े हो
गये
इन बच्चों को देख कर
वात्सल्य नहीं उमड़ता
सांता
इन्हें देख कर डर
लगता है !
तुमसे बस इतनी
प्रार्थना है
तुम इन्हें एक बार फिर से
बच्चा
बना दो
इस क्रिसमस पर
एक बार फिर से
तुम इन्हें
इनका भोलापन
लौटा दो !
साधना वैद
No comments:
Post a Comment