प्रेम हो ललकार हो या वेदना का संग साधना की तूलिका ने भर दिये सब रंग।।
संंवेदना की नम धरा पर' इस अनुपम काव्य संग्रह में साधना जी ने अपनी सरल
एवं विलक्षण प्रतिभा से जीवन के हर आयाम को151 कविताओं में समेट लिया है।
कवितायें सरल शब्दों में होने से पाठक बडी सरलता से उन्हें हृदयंगम कर सकता
हे परन्तु भाव इतना सशक्त होता है कि पढते समय अचानक रुक कर सोचना पड़ता
है हतप्रभ हो जाते है - उनका भाव जानकर। यह लेखिका की बिलक्षण प्रतिभा का
कमाल है। कविताओं का विषय चाहे नारी हो , माँ हो,परिवार हो, प्रक्रति
हो, समाज प्रणय या स्वयं भगवान हों, बड़े गरिमामय शब्दों में एक कुशल कलाकार
की तरह बड़े संवेदनशील शब्दो में सजा कर उन्हे जनमानस के सामने परोसना
साधनाजी की विशेषता प्रतीत होती है। अपनी हर कविता में उनके अपने दृढ
निश्चयी व्यक्तित्व की छाप देखने को मिली है। जैसा कि पुस्तक के शीर्षक से
ही विदित होता है - हर कविता में संवेदनाओं का गुबार है - शिकायत है तो
सहमति भी है, प्रेम है तो ललकार भी है -तकरार है तो समर्पण भी है।
साधनाजी को मै बहुत करीब से तो नही जानती हूँ पर मुझे उनकी हर कविता में
उनके उत्कृष्ट व्यक्तित्व की छाप देखने को मिली और शायद इसीलिये कवितायें हृदय को बहुत करीब से छूती हुई प्रतीत हुई। कुल मिलाकर यह काव्य
संग्रह एक अनुपम पुस्तक है जिसे हमारे हाथो मे बहुत पहले होना चाहिये था।
जीवन के हर पड़ाव के व्यक्ति के लिये यह परम उपयोगी है। मैं इस धरोहर की
सफलता के लिये हृदय से ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ एवं आशा करती हूँ कि
इसी प्रकार के और नये काव्य संग्रह जनमानस को पढने के लिये उपलब्ध होते रहें -
यह मेरा प्रेमपूर्ण आग्रह है प्रिय साधनाजी से। मिथिलेश सक्सेना रिटायर्ड व्याख्याता (अँग्रेजी साहित्य) |
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