पर्यावरण दिवस पर विशेष
पेड़ है कटा
अतिक्रमण हटा
बेघर पंछी !
क्रूर मानव
हृदयहीन सोच
पंछी हैरान !
व्यर्थ हो गयी
लंबी संघर्ष यात्रा
एक पल में !
क्या मिला तुझे
उजाड़ मेरा घर
स्वार्थी इंसान !
शिखर पर
संवेदनहीनता
मौन ईश्वर !
पीर हमारी
किसीने कब जानी
हैं क्षुद्र प्राणी !
कैसे बसाऊँ
फिर अपना घर
थके पंखों से !
करता कोई
खामियाजा लेकिन
भरता कोई !
करता कोई
खामियाजा लेकिन
भरता कोई !
क्यों काटे पेड़
हुई वायु अशुद्ध
पंछी बेघर !
पेड़ केवल
देना ही जानते हैं
लेते कहाँ हैं !
साधना वैद
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