बरसो मेघा
तृप्त कर दो तृषा
प्यासी है धरा
धरा प्रसन्न
प्रतिफलित आस
आये बदरा
प्यासी धरती
उमड़ घुमड़ के
आओ बदरा
देखती राह
दत्त चित्त वसुधा
उमड़े मेघा
पानी में दिखे
प्रतिबिंबित मेघा
धरा का तप
भर दो मेघा
छोटी गुल्लक मेरी
मीठे जल से
इंद्र देवता
है आभार तुम्हारा
पूजूँ पाहुन
जीवनाधार
छोटा सा जलाशय
वनचरों का
विहग वृन्द
आओ न मेरे घर
मीठा है पानी
थोड़ा है पानी
खुश हैं इंद्र देव
फिर आयेंगे
कोष छोटा है
पर दिल है बड़ा
सुस्वागतम
फ़िक्र ना करो
बाँटेंगे मिल जुल
है जितना भी
सुख न घटा
दिखा अपनी छटा
ओ काली घटा
छाये बदरा
सजाने वसुधा को
आये बदरा
बादल आये
चिर तृषित धरा
तृप्त मुस्काए
साधना वैद
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